बलात्कार का मुआवजा बस कुछ किलो गेंहू और चावल?

आखिर एक रेप पीड़ित को मिलने वाले उचित मुआवजे की परिभाषा क्या है?

आकांक्षा कुमार
भारत
Updated:


गांव के बुजुर्ग एक पंचायत में भाग लेते हुए. (फोटो: रॉयटर्स)
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गांव के बुजुर्ग एक पंचायत में भाग लेते हुए. (फोटो: रॉयटर्स)
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भले ही दिल्ली में 29 दिसंबर 2012 को हुए पैरामैडिकल की छात्रा के गैंगरेप के बाद देश भर में महिला सुरक्षा को लेकर लोगों में गुस्सा देखा गया हो पर महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के मामले में तब से अब तक शायद ही कुछ बदला है.

इसका ताजा उदाहरण देखने को मिला उत्तर प्रदेश में. यहां बलात्कार के बाद एक महिला के लिए 20,000 रुपये और कुछ किलो चावल का मुआवजा काफी समझा गया.

इस तरह के उदाहरण न सिर्फ हमारे देश की पितृसत्तात्मक मानसिकता को दिखाते हैं बल्कि यह भी दिखाते हैं कि इस देश में अपनी सुविधा के अनुसार कानून से खेलना कितना आसान है.

दिल्ली में दिसंबर 29, 2012 को विरोध प्रदर्शन के दौरान फटा हुआ पोस्टर थामे एक प्रदर्शनकर्ता. (फोटो: रॉयटर्स)

जनवरी 2013 में जस्टिस वर्मा कमेटी रिपोर्ट ने लिंग आधारित हिंसा पर कई सुझाव दिए थे. आईपीसी के सेक्शन 376 की व्याख्या करते हुए, मुआवजे के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है:

“सब सेक्शन 2 में दिए गए अपवादों को छोड़ कर जो भी बलात्कार का दोषी होगा उसे कम से कम 7 साल का कठोर कारावास दिया जाएगा, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है. इसके अलावा उसे पीड़ित को मुआवजा भी देना होगा, जो कम से कम पीड़ित के उपचार के खर्चे के बराबर होना चाहिए.”
(सौजन्य: PRS Legislative)

बलात्कार पीड़ित को मुआवजा

सवाल यह है कि आखिर ‘उचित मुआवजे’ की परिभाषा क्या है?

ये कुछ मामले हैं जिनमें सिर्फ पीड़ित का मुंह बंद करने और अपराध को रफा-दफा करने भर के लिए मुआवजा दिया गया.

1) बलात्कार का आरोप हटाने के एवज में 50 किलो गेहूं और 50 किलो चावल (14 नवंबर 2015): यह मुआवजा लखनऊ के पास पारा में हुई घटना के बाद पुलिस ने एक मानसिक रुप से बीमार बलात्कार पीड़ित महिला के लिए तय किया. यह घटना राष्ट्रीय अखबारों की सुर्खियों तक नहीं पहुंची, सिर्फ क्षेत्रीय अखबारों ने इसे जगह दी थी.

2) पंचायत ने कहा, ‘20,00 के बदले में आरोप वापस ले लो’ (13 नवंबर 2015): उत्तर प्रदेश के अमरोहा की एक पंचायत ने 13 नवंबर को निर्णय लिया कि पीड़िता के लिए 20,000 का मुआवजा काफी होगा, और पीड़िता को इस पैसे के बदले अपना आरोप वापस ले लेना चाहिए. बलात्कार नवंबर की 9 तारीख को हुआ था और पंचायत ने 4 दिन के भीतर मामला सुलझा लिया.

दिल्ली में दिसंबर 29, 2012 को विरोध प्रदर्शन के दौरान प्लैकार्ड थामे लोग. (फोटो: रॉयटर्स)

3) नाबालिग के बलात्कार की कीमत 50,000 रुपए (जनवरी 4, 2013): उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के मौली गांव की पंचायत ने एक 13 साल की लड़की को 50,000 देकर मामला सुलझा लेने के लिए कहा. यहां तक कि स्थानीय पुलिस भी लड़की के बचाव के लिए आगे नहीं आई. जब लड़की के परिजनों ने बड़े पुलिस अधिकारियों से सीधे संपर्क किया, तब कहीं जा कर एफआईआर दर्ज हो सकी.

4) बलात्कार करने वाले ने शादी से इनकार किया तो पंचायत ने दी 30,000 रुपए देने की ‘सजा’ (मार्च 22, 2010): उत्तर प्रदेश के ही रामपुर जिले के बाहपुरी गांव की पंचायत ने बलात्कार पीड़िता के लिए 30,000 का जुर्माना मुकर्रर किया. अपराधी ने जब पीड़िता से विवाह करने से इन्कार कर दिया तो पंचायत ने मामले को 30,000 में निपटाने का फरमान सुना दिया.

नवंबर 14, 2015 को क्षेत्रीय अखबारों में दर्ज हुए बलात्कार के मामले. (फोटो/ग्राफिक्स: द क्विंट)
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5) बिहार पंचायत का फरमान, पीड़िता को दोबारा करनी होगी शादी (जुलाई 11, 2011): बिहार के जमुई जिले में एक पंचायत ने गैंगरेप की शिकार महिला को 1 लाख रुपए का मुआवजा दिए जाने का आदेश किया और पीड़िता को अपने पति को तलाक देकर इस्लामिक तरीके से दोबारा शादी करने का फैसला सुनाया.

(फोटो: रॉयटर्स)

ताकि पीड़ित वापस एक बेहतर जिंदगी जी सके...

पुलिस की ढिलाई की ओर इशारा करने के अलावा ये घटनाएं ये भी साफ करती हैं कि जब हमारे समाज के बुजुर्ग रेप जैसे अपराध पर फैसला देने उतरते हैं, तब न्याय जैसा शब्द अक्सर अपने अर्थ खो बैठता है.

सामाजिक पंचायतों के ऐसे फैसलों के बाद अक्सर स्थिति को काबू में लेने के लिए कोर्ट को मामला अपने हाथ में लेना पड़ता है.

2014 में बीरभूम जिले में एक ‘शालिशी’ (पश्चिम बंगाल में पंचायत लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द) एक महिला के बलात्कार का आदेश सिर्फ इसलिये दिया क्योंकि उसे अपने आदिवासी समाज के बाहर के किसी व्यक्ति से प्यार हो गया था.

बाद में सुप्रीम कोर्ट ने मामले में हस्तक्षेप करते हुए न सिर्फ इस तरह की पंचायतों की खबर ली थी बल्कि राज्य सरकार की भूमिका पर भी सवाल उठाए थे.

पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले का गांव जहां पंचायत के आदेश पर 13 व्यक्तियों ने 24 जनवरी, 2014 को एक महिला का बलात्कार किया. (फोटो: रॉयटर्स)

कोर्ट ने कहा,

“अंत में, वह सवाल जिस पर कोर्ट को विचार करना चाहिये, यह है कि, क्या राज्य की पुलिस इन घटनाओं को होने से रोक सकती थी. और इसका जवाव निश्चित रूप से ‘हां’ है. राज्य का कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करे; और आर्टिकल 21 में साफ है कि सभी नागरिकों को अपनी पसंद से विवाह का हक है. इस तरह के अपराध, राज्य की अपने नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करने की अक्षमता और अयोग्यता का प्रमाण हैं.”
एक प्रदर्शन में भाग लेते स्कूली बच्चे. (फोटो: रॉयटर्स)

एक दशक पहले, 2005 में मुजफ्फरनगर में 28 वर्षीय इमराना का उसके ससुर ने बलात्कार किया था. इस पर पंचायत ने फरमान जारी किया था कि, क्योंकि वह अपने पति के पिता के साथ ‘सोई है’, तो अब उसका वर्तमान पति उसका बेटा होगा और ससुर उसका पति.

मुजफ्फरनगर में 30 जून 2005 को मीडिया के सामने इमराना. (फोटो: रॉयटर्स)

कोई नहीं जानता कितनी इमारानाओं को इसी तरह का त्रासदी से गुजरना होगा, और कब तक हमारे समाज के बुजुर्ग एक बलात्कार पीड़िता को न समझने की गलती करते रहेंगे.

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Published: 26 Nov 2015,08:45 PM IST

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