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पश्चिम बंगाल की 30 वर्षीय जोइता मंडल की पहचान आज देश की पहली 'किन्नर' यानी ट्रांसजेंडर जज के तौर पर है. जोइता का जीवन में हार न मानने का जज्बा दिखाता है कि वह अपने संघर्ष से सबक लेकर समाज को एक नई सीख दे रही हैं. जोइता वृद्धाश्रम के संचालन के साथ रेड लाइट इलाके में रह रहे परिवारों की जिंदगियां बदलने में लगी हैं.
जोइता के इस सेवा और समर्पण भाव को देखते हुए पश्चिम बंगाल सरकार ने उनका सम्मान करते हुए उन्हें लोक अदालत का न्यायाधीश नामांकित किया है. इस तरह वे देश की पहली 'किन्नर' न्यायाधीश हैं. मध्य प्रदेश की व्यावसायिक नगरी इंदौर में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने आईं जोइता ने कई मुद्दों पर और खासकर किन्नर समाज और रेड लाइट इलाके में रहने वाले परिवारों की समस्याओं पर खुलकर चर्चा की. साथ ही अपने जिंदगी के उन पलों को भी साझा किया, जब उन्होंने कई रातें रेलवे स्टेशन और बस अड्डों पर गुजारी थी.
जोइता अपने बीते दिनों को याद करते हुए बताती हैं कि वे भी अपने को आम लड़की की तरह समझती थीं. बचपन इसी तरह बीता, जब उम्र 18 साल के करीब थी, तब उनका भी मन दुर्गा पूजा के वक्त सजने संवरने का हुआ, वे ब्यूटी पार्लर जा पहुंचीं, लौटकर आई तो घर के लोग नाराज हुए, वे उसे लड़का मानते थे. उस वक्त उन्हें इतना पीटा गया कि वे चार दिन तक बिस्तर से नहीं उठ सकीं और इलाज के लिए डॉक्टर के पास भी नहीं ले जाया गया.
जोइता बताती हैं कि दिनाजपुर में हर तरफ से मिली उपेक्षा के बाद उन्होंने किन्नरों के डेरे में जाने का फैसला किया और फिर उनके साथ रहते हुए वही सब करने लगीं जो आम किन्नर करते हैं, यानी बच्चे के पैदा होने पर बधाई गीत गाना, शादी में बहू को बधाई देने जाना. इस तरह उनके नाचने-गाने का दौर शुरू हो गया. लेकिन इन सबके बावजूद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी.
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जोइता 14 अप्रैल 2014 को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का जिक्र करते हुए कहती है, "उस फैसले ने किन्नर समाज की जिंदगी में नई रोशनी लाई है. इस फैसले में उन्हें भी समाज का अंग मानते हुए महिला, पुरुष के साथ तीसरा जेंडर माना गया. इस फैसले ने लड़ने के लिए और ताकत दी. यह फैसला हमारे लिए किसी धार्मिक ग्रंथ से कम नहीं था. इसलिए मैंने उसे दिल में समा लिया."
जोइता ने अपने अभियान को जारी रखा. एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें ताकत दी तो आठ जुलाई 2017 का दिन उनके लिए ऐतिहासिक साबित हुआ, जब पश्चिम बंगाल सरकार ने उन्हें लोक अदालत का न्यायधीश नियुक्त कर दिया. जोइता कहती हैं कि उन्होंने हालात से हारना नहीं सीखा. वह हर मुसीबत को अपने लिए सफलता का नया रास्ता मानती हैं.
आज उन्हें इस बात का कतई मलाल नहीं है कि वे किन्नर हैं. जहां लोग उनका मजाक उड़ाते थे, आज उसी इलाके से जब वे सफेद कार से निकलतीं हैं, तो गर्व महसूस करती हैं.
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