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छोटी शुरुआत के बाद से श्रीकांत का सफर असाधारण रहा है

श्रीकांत के पिता जिला स्तर के क्रिकेटर थे और वो श्रीकांत को हमेशा क्रिकेट खेलने के लिए प्रोत्साहित करते थे  

वी कृष्णस्वामी
भारत
Published:


श्रीकांत की जीत का जश्न मनाता उनका परिवार 
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श्रीकांत की जीत का जश्न मनाता उनका परिवार 
(Photo: PTI)

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रावुलापेलम आंध्र प्रदेश का एक छोटा सा अनजान शहर है, जहां ज्यादातर किसान बसते हैं. लेकिन किसानों के इसी शहर से एक लड़का निकलकर विश्वस्तरीय बैडमिंटन खिलाड़ी बनेगा, ऐसा किसी ने नहीं सोचा था. ये लड़का है किदांबी श्रीकांत, जिसने 22 अक्टूबर को डेनमार्क ओपन सुपर सीरीज जीतकर अपना नाम देश के महान बैडमिंटन खिलाड़ियों में जुड़वा लिया है. एक छोटे से शहर से निकलकर विश्वस्तरीय बैडमिंटन खिलाड़ी बनने वाले श्रीकांत आज भारतीय और अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन जगत के चहेते हैं.

श्रीकांत के पिता जिला स्तर के क्रिकेटर थे फोटो:(Photo: Harsh Sahani/The Quint)

श्रीकांत का परिवार बेहतर भविष्य की तलाश में रावुलापेलम से गुंटूर आ गया था. उनके पिता जिला स्तर पर क्रिकेट खेलते थे और अपने बच्चों को हमेशा किसी ना किसी खेल से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करते थे.

श्रीकांत के बड़े भाई नंदगोपाल बैडमिंटन खेलना चाहते थे और जब उनमें इसका हुनर दिखा तो उन्हें अपना करियर बनाने के लिए विशाखापत्तनम भेज दिया गया, जहां वो स्पोर्ट्स अकेडमी ऑफ आंध्र प्रदेश के लिए चुने गए थे. साल भर बाद श्रीकांत भी उनके साथ आ गए. जब उनके पहले कोच, सुधाकर रेड्डी खम्मम चले गए, तो दोनों लड़के भी वहां चले गए. फिर जब गुंटूर में बैडमिंटन कोर्ट के साथ नया स्टेडियम बना, वो लोग वापस लौट आए.

श्रीकांत ने बैडमिंटन चुना  (फोटो: Harsh Sahani/The Quint)

मुश्किल वक्त का साथी

2004-2005 के आसपास, नंदगोपाल को भारत के राष्ट्रीय प्रशिक्षक पुलेला गोपीचंद ने चुन लिया था. उनकी अकेडमी अभी भी शुरुआती दौर में थी और गोपीचंद ने खिलाड़ी के रूप में हाल ही में संन्यास लिया था. 2008-2009 तक अकेडमी खड़ी नहीं हो पाई थी.

जब नंदगोपाल को चुना गया और श्रीकांत को नहीं तो वो अकेला महसूस करने लगे और उनका खेल कमजोर होता गया. करीब 6 महीने बाद उनके पिता ने गोपीचंद से श्रीकांत को भी प्रशिक्षण देने की गुजारिश की. नंदगोपाल की तरह, श्रीकांत भी अपने करियर की शुरुआत में डबल्स पर फोकस करते थे.

श्रीकांत और उनके भाई नंदगोपाल(फोटो:Instagram)
2008-2009 तक, श्रीकांत हैदराबाद में गोपीचंद अकेडमी के पूर्णकालिक छात्र बन चुके थे. और यहीं से उनका असली सफर शुरू हुआ. अगर कोर्ट पर गोपीचंद उनके शिक्षक थे, तो कोर्ट के बाहर नंदगोपाल.

2011 तक गोपीचंद ने श्रीकांत में सिंगल का खिलाड़ी बनने की क्षमता देख ली थी. नंदगोपाल ने अपने छोटे भाई को गोपीचंद की सलाह मानने के लिए प्रोत्साहित किया और उसके बाद तो सब कुछ तो इतिहास है.

श्रीकांत मुश्किल दौर में मदद के लिए अपने भाई के शुक्रगुजार हैं. नंदगोपाल ने एक भाई के साथ अभिभावक की भूमिका भी निभाई.

श्रीकांत के भाई नंदगोपाल ने हमेशा उनका साथा दिया (फोटो: Harsh Sahani/The Quint)

उपलब्धियों की लंबी सूची

2 9 मार्च 2015,  नई दिल्ली में योनेक्स सनराइज इंडिया मेन्स ओपन बैडमिंटन  फाइनल जीतने के बाद किदंबी श्रीकांत गोल्ड मेडल दिखाते हुए (फोटो:AP)

श्रीकांत ने 2011 कॉमनवेल्थ यूथ गेम्स में पुरुषों के और मिक्स्ड डबल्स में रजत पदक हासिल किए, और उसी साल, ऑल इंडिया जूनियर सिंगल्स और डबल्स के खिताब जीते. एक साल बाद, 2012 लंदन ओलिंपिक्स में जब सायना नेहवाल कांस्य पदक जीतने वाली पहली भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी बनीं और परुपल्ली कश्यप पुरुषों के सिंगल्स क्वॉर्टरफाइनल में पहुंचने वाले पहले भारतीय पुरुष, तो श्रीकांत ने दुनिया के नंबर एक जूनियर खिलाड़ी को हराकर मालदीव में एक खिताब जीता.

2013 उनके लिए यादगार साल था. उन्होंने थाई ओपन ग्रां प्री जीता. साथ ही कश्यप को हराकर राष्ट्रीय चैंपियन बने, और सिर्फ 20 साल की उम्र में उनके लिए बड़ी संभावनाएं जग गईं. वो इंडियन ओपन के फाइनल में और मलेशियन ओपन के सेमीफाइनल में पहुंचे.

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लेकिन सब कुछ आसान नहीं रहा. जुलाई 2014 में, गोपीचंद अकेडमी के वॉशरूम में किदांबी बेहोश पाए गए. उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां पता चला कि उन्हें मस्तिष्क ज्वर है. इससे सवाल उठने लगे कि क्या वो दोबारा खेल पाएंगे. हालांकि, तीन महीने के भीतर वो फिट हो गए.

उन्हें ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए टीम में चुना गया, जहां वो सिंगल्स के क्वॉर्टरफाइनल में और मिक्स्ड डबल्स के सेमीफाइनल में पहुंचे. उसी साल नवंबर में, उन्होंने चाइना ओपन सुपर सीरीज में लिन डैन को हराकर अपने विश्वस्तरीय खिलाड़ी होने का सबूत दिया.

अगले दो साल उनके लिए अपने खेल को मजबूती देने के थे. उन्होंने 2015 में स्विस ओपन और इंडियन ओपन सुपर सीरीज जीते. दोनों बार, उन्होंने विक्टर एक्सेलसेन को हराया था, जो अब विश्व चैंपियन हैं. 2016 में वो रियो ओलिंपिक्स के क्वॉर्टरफाइनल में पहुंचे जहां वो लिन डैन से हार गए. इसी साल, उन्होंने दक्षिण एशियाई खेलों और सैयद मोदी इंटरनेशनल में स्वर्ण पदक जीते.

लेकिन, 2017 वो साल रहा जहां उन्होंने अपना असली दमखम दिखाया. वो सिंगापुर सुपर सीरीज के फाइनल में पहुंचे जहां वो अपने साथी भारतीय खिलाड़ी साई प्रणीत से हार गए. लेकिन श्रीकांत ने इंडोनेशिया सुपर सीरीज और ऑस्ट्रेलियाई ओपन के खिताब जीत लिए.

किदांबी की उपलब्धियां  (फोटो: Harsh Sahani/The Quint)

और फिर आया डेनमार्क सुपर सीरीज का खिताब, जिसके बाद एक साल में ही तीन सुपर सीरीज के खिताब उनके नाम हो गए. उन्होंने इस दौरान विश्व बैडमिंटन के दिग्गज खिलाड़ियों को हराया है. लिन डैन से ली चॉन्ग वी तक, सॉन वान हो से विक्टर एक्सेलसेन और ली ह्युन-इल तक. अब सवाल है विश्व चैंपियनशिप और ओलिंपिक्स में सही लय हासिल करने का.

हर जीत के बाद वैसे तो उन्हें फोन और सोशल मीडिया पर सैकड़ों संदेश मिलते हैं, लेकिन क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर से मिले बधाई संदेश से उनके हौसले बुलंद हो जाते हैं.

2012 में 240वीं रैंकिंग से वो अब टॉप 10 खिलाड़ियों में पहुंच चुके हैं, जहां उनकी सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग 3 की रही है. लेकिन अभी भी काफी दूरी उन्हें तय करनी है- मसलन एक वर्ल्ड टाइटल, एक ऑल-इंग्लैंड खिताब, और जाहिर तौर पर एक ओलिंपिक मेडल, गोल्ड हो तो और भी बेहतर.

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