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ढाई सालों से भी लंबे समय तक चली जांच के बाद एक्टिविस्ट-पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या की छानबीन कर रही स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम (SIT) ने मई 2020 में अपनी फाइनल चार्जशीट दायर की.
मामला कोर्ट में सुनवाई के लिए तैयार है लेकिन जांच का एक पहलू अभी भी अधूरा है- हत्या में इस्तेमाल हुई पिस्तौल. जांच में सामने आया था कि गौरी लंकेश की हत्या में एक 7.65mm की देसी पिस्तौल का इस्तेमाल हुआ था. हालांकि, जांच के दौरान हथियार का नामो-निशान नहीं मिला.
2019 में SIT को हथियार को ठिकाने लगाने वाले शख्स शरद कालसकर की हिरासत मिली. उसने टीम को बताया कि पिस्तौल को महाराष्ट्र की वसई झील में फेंक दिया गया है. झील से पिस्तौल बरामद करने के लिए एक एजेंसी की मदद ली गई. लेकिन, कई महीनों की कोशिश के बाद SIT ने बिना पिस्तौल के ही सुनवाई के लिए जाने का फैसला किया है.
ये देसी पिस्तौल तर्कवादियों को निशाना बनाए जाने की साजिश को साबित करने का एक अहम सुराग है. पिस्तौल गौरी लंकेश, एमएम कलबुर्गी और गोविंद पंसारे की हत्याओं के बीच का लिंक है.
हत्या की रात गौरी लंकेश के घर से बरामद हुई गोली और उसके खाली शेल को फॉरेंसिक एनालिसिस के लिए भेजा गया था. अपने शक को पुख्ता करने के लिए SIT ने फॉरेंसिक टीम से कहा था कि वो कलबुर्गी और पंसारे मर्डर केस की गोली और खाली शेल से उन्हें मिला कर देखें.
एक SIT अफसर ने बताया, "हर हथियार बुलेट पर एक अलग तरह का निशान छोड़ता है. उदाहरण के लिए हथियार की फायरिंग पिन कोई एक निशान बनाती है. ऐसा ही निशान उस हथियार से फायर हुई हर बुलेट पर मिलता है."
फॉरेंसिक टेस्ट से पता लगा कि कलबुर्गी, पंसारे और लंकेश की हत्या में एक ही हथियार का इस्तेमाल हुआ था.
गौरी लंकेश की हत्या के दस दिन बाद एक आरोपी सुधन्वा गोंधलेकर बेंगलुरु गया था और उसने दूसरे आरोपी सुरेश से हत्या में इस्तेमाल हुई पिस्तौल ली थी. सुरेश ने गोली चलाने वाले शख्स को कथित रूप से सीगेहल्ली में एक किराये के मकान में पनाह दी थी.
कालसकर का कबूलनामा कहता है, "हमने तीन पिस्तौलों के बैरल हटाने और उन्हें फेंकने का फैसला किया. बाकी के पार्ट्स से दूसरे हथियार बन सकते थे. हमने इन्हें एक बैग में डाला और वैभव राउत के साथ उसकी गाड़ी में बैठकर गया और 23 जुलाई 2018 को मुंबई-नासिक हाईवे पर एक नदी में फेंक दिया. बाकी के पार्ट्स मैंने वैभव राउत को दिए, जिसने उन्हें अपने नालासोपारा स्थित घर में रखा."
एक वरिष्ठ SIT अफसर ने कहा कि उन्होंने पिस्तौल को ढूंढने में पूरी कोशिश की है लेकिन ये मुश्किल काम था. अफसर ने कहा कि जब से कालसकर ने उसे झील में फेंका था, तब से तीन तेज मॉनसून आ चुके हैं और इसकी खोज भूसे में सुईं ढूंढने जैसी है.
उन्होंने कहा, "क्योंकि ये तीन हत्याओं से जुड़ा था, हथियार की खोज कर्नाटक पुलिस, महाराष्ट्र पुलिस और सीबीआई ने मिलकर की. लेकिन एक समय पर आकर आपको रुकना पड़ता है. हमें विश्वास है कि हमारे पास इस मामले में कन्विक्शन के लिए पर्याप्त सबूत हैं."
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