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नीतीश कुमार से सीनियर और उनके राजनीतिक साथी जॉर्ज फर्नांडिस नहीं रहे. जब कभी नीतीश कुमार या जॉर्ज फर्नांडिस के नाम पर कोई बायोपिक बनेगी या किताब लिखी जाएगी तो उसमें दोनों के लंबे साथ का जिक्र जरूर होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि आज नीतीश कुमार जिस जेडीयू के मुखिया हैं उसके फाउंडर जॉर्ज फर्नांडिस ही थे. लेकिन कहानी थोड़ी लंबी और बहुत दिलचस्प है.
बात 1974 की है जब देश में इंदिरा गांधी के खिलाफ कई संगठन एक हो रहे थे. तब नीतीश कुमार जयप्रकाश नारायण से प्रेरित होकर जेपी मूवमेंट से जुड़े थे. इसके साथ ही नीतीश की एक्टिव पॉलीटिक्स में एंट्री हो गई. इसी समय नीतीश की मुलाकात कर्पूरी ठाकुर, राम मनोहर लोहिया, वीपी सिंह और जॉर्ज फर्नांडिस जैसे राजनीति के दिग्गजों से हुई. नीतीश और जॉर्ज फर्नांडिस मिलकर एक के बाद एक कई ऐसे तीर चलाएं जिससे बिहार की राजनीति ही पलट गई.
ऐसे तो जॉर्ज फर्नांडिस ने अपने करियर की शुरुआत एक अखबार में प्रूफ रीडर से की थी. फिर सोशलिस्ट पार्टी और ट्रेड यूनियन के आंदोलनों से जुड़े. राजनीति में आए समता पार्टी का गठन किया, एनडीए में शामिल हुए और केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कई अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाली. लेकिन राजनीतिक जिंदगी में फर्नांडिस सबसे ज्यादा नीतीश कुमार के साथ ही रहे और अकेले भी उनकी वजह से हुए.
ऐसे तो दोनों कई मंच और जगहों पर साथ दिखे लेकिन पहली बार 1994 में दोनों ने अपनी पार्टी खड़ी की. जॉर्ज ने 1994 में नीतीश कुमार समेत कुल 14 सांसदों के साथ जनता दल से नाता तोड़कर जनता दल (जॉर्ज) बनाया जिसका नाम अक्टूबर 1994 में समता पार्टी पड़ा.
जॉर्ज रक्षा मंत्री के तौर पर कभी सियाचिन में तो कभी दिल्ली की हवा में थे लेकिन इस दौर में नीतीश कुमार बिहार में अपनी जमीन मजबूत करते रहे थे.
साल 2000 में बीजेपी की मदद से नीतीश कुमार 8 दिन के लिए ही सही बिहार के सीएम की कुर्सी तक पहुंच गए. ये जॉर्ज का ही साथ था कि नीतीश कुमार 2003 में बीजेपी से गठबंधन तोड़कर जनता दल यूनाइटेड बना सके. और देखते देखते जॉर्ज फर्नांडिस की छवि ने नीतीश को 2005 में बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया.
लेकिन 2007 में ऐसा वक्त आया जब नीतीश कुमार ने जॉर्ज फर्नांडिस को ही पार्टी अध्यक्ष पद से हटा दिया और शरद यादव को जेडीयू का अध्यक्ष बना दिया. यहीं से जॉर्ज राजनीति में किनारे होने लगे. जिस पार्टी को जॉर्ज ने बनाया था उसी पार्टी में अध्यक्ष का चुनाव वो अप्रैल 2006 में शरद यादव के हाथों हार गए. बता दें कि करीब एक साल या डेढ़ साल पहले शरद यादव की पार्टी का समता पार्टी में विलय हुआ था.
हालांकि बाद में जेडीयू ने उन्हें राज्यसभा से सांसद बनाया. लेकिन तब सवाल उठाने वालों ने पूछा कि लोकसभा में टिकट देने लायक नहीं समझा तो फिर राज्यसभा में क्यों भेजा?
इसके बाद मानो नीतीश कुमार अपने राजनीतिक साथी को भूल ही गए और फिर देखते देखते जॉर्ज फर्नांडिस अपनी सेहत की वजह से सार्वजनिक जीवन से भी किनारे हो गए.
जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार की राजनीति को समझने वाले पत्रकार मनोज कुमार कहते हैं कि जिस तरीके से केंद्र सरकार अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर योजनाएं चला रही हैं क्या बिहार में नीतीश जॉर्ज के नाम पर कोई योजना नहीं चला सकते? लोहिया के नाम पर यूपी में योजनाएं चलती है तो बिहार में नीतीश क्या जॉर्ज साइकिल योजना, जॉर्ज सस्ता खाना योजना, जॉर्ज सड़क योजना, जॉर्ज ग्रामीण बस सेवा शुरू नहीं कर सकते. स्कूल, कॉलेज, पुल, अस्पताल के नाम क्या जॉर्ज के नाम पर नहीं हो सकता?
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