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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के गाजियाबाद (Ghaziabad) में कुत्ते के काटने से 14 साल के बच्चे की तड़प-तड़पकर मौत हो गई. AIIMS से लेकर तमाम बड़े हॉस्पिटलों ने उसको लाइलाज घोषित कर दिया. बुलंदशहर में एक वैद्य को दिखाकर लौटते वक्त बच्चे ने एम्बुलेंस में अपने पिता की गोद में दम तोड़ दिया. पीड़ित फैमिली ने कुत्ता पालने वाली महिला के खिलाफ लापरवाही से मौत का मुकदमा दर्ज कराया है.
ये मामला विजयनगर थाना क्षेत्र का है. यहां चरण सिंह कॉलोनी में याकूब का परिवार रहता है. याकूब मजदूरी करते हैं और उनका बेटा शाहवेज (14) कक्षा आठ में पढ़ता था. 1 सितंबर को बेटे को तमाम परेशानी आनी शुरू हो गई.
उसको पानी देखने से डर लगने लगा.
उसने खाना-पीना बंद कर दिया.
कभी-कभी भौंकने जैसे आवाजें भी मुंह से निकलने लगीं.
बच्चे के पिता याकूब के मुताबिक 1 सितंबर को अचानक उनके बेटे की हरकतें कुछ अजीब हो गईं. वो बात-बात पर जीभ निकालने लगता था. फिर अजीब हरकतें करने लगता था. शरीर को अजीब तरीके से मोड़कर बैठने लगा. तबियत ज्यादा बिगड़ने पर उसे पहले गाजियाबाद के एक अस्पताल लेकर गए.
बच्चे के दादा मतलूब अहमद ने बताया कि हमने पोते से जब पूछा तो उसने बताया कि करीब डेढ़ महीने पहले पड़ोस में रहने वाली आंटी के कुत्ते ने उसको काट लिया था. डर की वजह से उसने ये बात घर पर नहीं बताई. इस वजह से बच्चे को तुरंत उचित इलाज नहीं दिया जा सका. जब बच्चे में लक्षण दिखने शुरू हो गए, तब हमें पता चला.
अब इस मामले में बच्चे के दादा मतलूब अहमद ने कुत्ता पालने वाले परिवार के सदस्यों- सुनीता, आकाश, शिवानी और रासी के खिलाफ IPC सेक्शन-289 और 304ए के तहत थाना विजयनगर में केस दर्ज कराया है. इसमें आरोप लगाया गया है कि इन सब की लापरवाही की वजह से कुत्ते ने उनके पोते को काटा और उसकी जान चली गई.
ACP निमिष पाटिल ने बताया कि
स्वास्थ्य मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022 में हर दिन औसतन 5,739 लोगों को कुत्तों ने काटा.
अगर पूरे देश के स्तर पर इसके बारे में बात की जाए तो 2019 से 2022 के बीच आवारा कुत्तों के काटने के करीब 1.6 करोड़ मामले दर्ज किए गए.
2019 की पशुधन गणना रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लगभग 1.53 करोड़ आवारा कुत्ते सड़कों पर घूम रहे हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में रेबीज से होने वाली मौतों का 36 फीसदी हिस्सा भारत में है और 30 से 60 फीसदी मामले और मौतें 15 साल से कम उम्र के बच्चों की होती हैं.
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