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ग्लोबल हंगर इंडेक्स: भारत सरकार की आपत्ति कितनी जायज? एक्सपर्ट्स बोले- सहमत नहीं

भारत सरकार ने ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट पर सवाल उठाए हैं.

अनुराग कुमार
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की रैकिंग 101वीं है.</p></div>
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ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की रैकिंग 101वीं है.

फोटोः अल्टर्ड बाई द क्विंट

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ग्लोबल हंगर इंडेक्स (Global Hunger Index) में भारत को इस साल 101वां स्थान मिला है.  कुल 116 देशों में भारत की इतनी नीचे रैंकिंग को लेकर सरकार सवालों के घेरे में हैं. सरकार ने रिपोर्ट को बनाने के तरीके पर सवाल उठाते हुए, इसे खारिज कर दिया. हालांकि एक्सपर्ट्स  सरकार के तर्क को जायज नहीं मानते. उनका कहना है कि डेटा को लेकर भारत सरकार की आपत्ति सही नहीं है.

कैसे तैयार हुई रिपोर्ट

कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्ट हंगर हिल्फे नाम की संस्थाओं ने अलग-अलग स्त्रोतों जैसे फूड ऐंड ऐग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन, यूनिसेफ, WHO,वर्ल्ड बैंक, कॉम्प्रिहेंसिव नैशनल न्यूट्रिशन सर्वे आदि से प्राप्त किए गए डेटा के आधार पर यह रिपोर्ट तैयारी की है. इस रिपोर्ट में 4 पैमानों पर सभी देशों को परखा गया है, जिसके बाद सभी देशों की रैकिंग तय की गई है.

सभी देशों को इन पैमानों पर परखा गया

  •  अल्पपोषण (Undernourishment) - जिन्हें पर्याप्त पोषक आहार नहीं मिला हो.

  •   चाइल्ड वेस्टिंग (Child Wasting) - वैसे बच्चे जो अपनी लंबाई के हिसाब से काफी पतले हो. जिनका वजन कम गया हो या फिर बढ़ नहीं रहा.

  • चाइल्ड स्टंटिंग (Child Stunting)- वैसे बच्चे जो अपनी उम्र के हिसाब से शरीरिक रूप  से छोटे रहे गए हों या जिनकी लंबाई उम्र के हिसाब से विकसित नहीं हुई हो.

  • 5 साल तक के बच्चों की मत्यु दर (Under 5 Mortality)- 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मत्युदर.

इस रिपोर्ट में पर्याप्त पोषण और आहार मिलने के मामले में भारत की स्थिति को गंभीर की श्रेणी में रखा गया है. भारत को कुल 27.5 प्वाइंट मिले हैं.

रिपोर्ट में भारत की क्या स्थिति?

  • भारत की 15.3%  आबादी अल्पपोषित है.

  • 5 साल तक के 17.3% बच्चे वेस्टेड की श्रेणी में है, यानी उनका वजन कम है.

  • 5 साल तक के 34.7 % बच्चे स्टंटेड की श्रेणी में है, यानी वो उम्र के हिसाब से उनकी लंबाई कम है.

  • 3.4 % बच्चों की 5 साल से पहले मौत हो जाती है.

भारत सरकार ने रिपोर्ट पर क्यों जताई आपत्ति?

भारत सरकार ने इस रिपोर्ट पर सवाल उठाए हैं. खासकर अल्पपोषण से जुड़े डेटा कलेक्शन के तरीकों पर. केंद्र सरकार का आरोप है कि अल्पपोषण लिए फूड ऐंड ऐग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (FAO) के डेटा का इस्तेमाल किया गया है, जिसमें टेलिफोन पोल भी शामिल है.

सरकार का तर्क है कि अल्पपोषण पता करने का वैज्ञानिक तरीका लंबाई और वजन मापना है, जबकि ऐसा करने की जगह FAO के टेलिफोन पोल के आंकड़ों पर भरोसा करके ही अल्पपोषण की रिपोर्ट तैयार कर दी गई .

साथ ही भारत सरकार ने इस रिपोर्ट में पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना, आत्मनिर्भर भारत योजना जैसी कल्याणकारी योजनाओं के असर की अनदेखी करने का भी आरोप लगाया है.
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क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट में अल्पपोषण का डेटा अंतरराष्ट्रीय डेटा बेस से लिया जाता है, यह आमतौर पर अलग-अलग देशों की सरकारों के द्वारा भेजा जाता है. इसलिए यह रिपोर्ट सरकारें जो पहले डेटा दे चुकी हैं, उसी के आधार पर तैयार की गई है.
पूर्णिमा मेनन, सीनियर रिसर्च फेलो, इंटरनैशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टिट्यूट

उन्होंने कहा कि जिस टेलिफोन पोल (Gallup Poll) का हवाला दिया जा रहा है, उसका इस्तेमाल अल्पपोषण के डेटा  के लिए किया ही नहीं गया है. इसके लिए जो सार्वजनिक तौर पर डेटा उपलब्ध है, केवल उसका इस्तेमाल किया गया है.

भारत सरकार की प्रतिक्रिया पर मेनन कहती हैं, ''ये भारत पर केंद्रित रिपोर्ट नहीं है, यह एक ग्लोबल रिपोर्ट है. अलग-अलग सरकारें इसपर अलग तरीके से प्रतिक्रिया देती हैं. मुझे लगता है कि हमें इसे समस्या मानकर इसपर काम करने की जरूरत है.''

पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना और आत्म निर्भर भारत जैसी योजनाओं की अनदेखी के भारत सरकार के आरोपों पर पूर्णिमा कहती हैं, ''हो सकता है उन योजनाओं का असर हुआ. लेकिन इसका क्या असर हुआ इसको जानने के लिए कोई डेटा ही मौजूद नहीं है. जब तक सार्वजनिक तौर पर डेटा उपलब्ध नहीं होगा तो इसका असर पता करना मुश्किल है. NSSO ने आखिरी बार 2011-12 में फूड और कंजप्शन से जुड़े सर्वे का डेटा जारी किया था''

ग्लोबल हंगर इंडेक्स में आंकड़ों को संकलित करने में अगर पुरानी पद्धति ही अपनाई गई है और दूसरे देशों के आंकडों के संकलन में भी भारत वाली पद्धति ही इस्तेमाल हुई है तो सरकार की आपत्ति गलत है.
सोमपाल शास्त्री, पूर्व कृषि मंत्री

शास्त्री कहते हैं, ''कोरोना महामारी की वजह से संकट तो आया है, खासकर गरीबों पर. बेरोजगारी काफी बढ़ गई है, शहरों में काम करने वाले प्रवासियों के काम छूटे हैं और बड़ी संख्या में वापस गांवों को लौटे हैं. किसानों की खेती पर भी संकट बढ़ा है. गरीबों की आय घटी है और खर्च बढ़ा है. खाद्यान की उपलब्धता, क्रय शक्ति  भी कम हुई है. भूखमरी और कुपोषण की समस्या से सबसे ज्यादा प्रभावित गरीब वर्ग ही है.''

दिल्ली का अंबेडकर यूनिवर्सिटी में लिबरल स्टडीज की प्रोफेसर डॉ. दीपा सिन्हा द क्विंट से बातचीत में कहती हैं, ''FAO की द्वारा इस्तेमाल आप पद्धति पर सवाल उठा सकते हैं, लेकिन ये वो सवाल नहीं हो सकते जो सरकार उठा रही है. दीपा कहती हैं कि FAO पिछले कई सालों से अल्पपोषित आबादी की गणना एक ही पद्धति से कर रही है.''

डॉ. सिन्हा का कहना है कि FAO के तरीके की आलोचना होती है, लेकिन ये आलोचना अंडरकाउंटिंग से जुड़ी है. कई एक्सपर्ट्स ऐसा महसूस करते हैं कि भूखमरी को मापने के लिए FAO के द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला कैलरी कटऑफ इस्तेमाल करते हैं, वह काफी कम है. कभी भी कटऑफ के ज्यादा अनुमान का आरोप उसपर नहीं लगा है.

आगे का रास्ता

अब सवाल उठता है कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स के विभिन्न इंडिकेटर्स पर अगर भारत की स्थिति इतनी खराब है तो इसमें सुधार के लिए क्या कदम उठाने की जरूरत है?

पूर्णिमा मेनन कहती हैं, ''ग्लोबल हंगर इंडेक्स में बच्चों में कुपोषण एक बड़ी समस्या है. इसकी कई वजहें होती हैं, मां का कमजोर होना, सैनिटाइजेशन की दिक्कत, गरीबी, जेंडर से जुड़ी समस्या, केवल न्यूट्रिशन प्रोगाम्स से इनमें सुधार नहीं हो सकता है, इसके लिए सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों, महिला सशक्तिकरण जैसी कई चीजों पर काम करने की जरूरत है.''

उन्होंने कहा, ''ऐसा नहीं है कि इस तरह के कार्यक्रम नहीं हैं, लेकिन इन कार्यक्रमों को हर परिवार तक पहुंचाने की जरूरत है. साथ ही समस्या के समाधान के लिए लॉन्ग टर्म नजरिए की जरूरत है.''  

वहीं सोमपाल शास्त्री कहते हैं, ''कुपोषण और भूखमरी की समस्या का कोई एक समाधान नहीं है. इसके लिए  कृषि के स्थायित्व के उपाय की जरूरत है. रोजगार कैसे बढ़े , इसपर विचार करना होगा. साथ ही  गरीबों की जो जरूरतें हैं, चाहे खाद्यान की हों या फिर स्वास्थ्य की , उसके लिए व्यापक प्रबंध करने होंगे. सरकार को पूरी अर्थनीति पर समग्र विचार की जरूरत है.''

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