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गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में इंसेफेलाइटिस से बच्चों की मौत की खबर एक बार फिर 'सुर्खियां' बनी है. हम 'सुर्खियां' इसलिए कह रहे हैं क्योंकि गोरखपुर समेत पूरे पूर्वांचल में हर साल इस बीमारी के सैंकड़ों बच्चे शिकार हो जाते हैं. लेकिन मौत की 'चीखें' कभी-कभी ही खबर या राजनीति के लिए मुद्दा बन पाती है.
जानते हैं इस बीमारी और इसके आंकड़ों से जुड़ी कुछ खास जानकारी.
मॉनसून और पोस्ट मॉनसून यानी जुलाई से अक्टूबर के दौरान ये बीमारी अपने चरम पर होती है. सरकारी आंकड़ों से इतर कई दूसरी रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछले 3 दशक में करीब 50 हजार बच्चे इस बीमारी के शिकार हुए हैं.
नेशनल वेक्टर बॉर्न डिजिज कंट्रोल प्रोग्राम के आंकड़ें बताते हैं कि
वहीं उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की हालत तो बदतर है, हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक,
गोरखपुर का बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज, आसपास के दूसरे जिलों के लिए एकमात्र सहारा है. महाराजगंज, देवरिया, कुशीनगर, सिद्धार्थनगर समेत पूर्वांचल के 13 जिलों और बिहार के 5-6 जिलों के इंसेफेलाइटिस शिकार बच्चे गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज में ही इलाज के लिए आते हैं.
यहां इंसेफेलाइटिस के इलाज के लिए खास सुविधा है जो आसपास के दूसरे 'पिछड़े' जिलों में नहीं है. जुलाई से अक्टूबर के बीच जब इंसेफेलाइटिस अपने चरम पर होता है तो कई बार BRD मेडिकल कॉलेज में एक बेड पर कई बच्चों का इलाज करना पड़ा है.
ऐसे में साफ है कि बच्चों का समुचित इलाज यहां तो संभव नहीं है. ऐसा नहीं है कि ये दिक्कतें अभी शुरू हुई हैं. पिछले कई दशक से ये बीमारी और अस्पतालों में चल रही लापरवाही जस की तस बनी हुई है.
इंसेफेलाइटिस जिसे आमतौर पर दिमागी बुखार के नाम से भी जाना जाता है, ये वायरल डिजिज है. उत्तर प्रदेश में ज्यादातर बच्चों की मौत AES से ही हुई है. मॉनसून में मच्छरों के जरिए ये बीमारी तेजी से फैलती है. वायरस के संक्रमण से दिमाग के बाहरी हिस्सों में सूजन आ सकती है. जिससे तेज बुखार, सिरदर्द या झटकों जैसी समस्याएं दिखने लगती है.
इस बीमारी की सबसे खराब बात ये है कि कई केस में मरीज बच जाने के बाद भी पैरालिसिस या कोमा के शिकार हो जाते हैं , मतलब मरीज बच भी जाए तो जिंदा ही रहता है, जी' नहीं पाता.
साल 1978 में पहली बार इंसेफेलाइटिस को रिपोर्ट किया गया था. लेकिन सरकार की नींद टूटी साल 2005 में जब करीब 1400 बच्चों की मौत इस बीमारी से हो गई थी. इसके बाद साल 2006 में उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और असम के 11 सबसे संवेदनशील जिलों में बड़ें पैमाने पर इंसेफेलाइटिस वैक्सीनेशन प्रोग्राम चलाया गया. अब भी लगातार इस बीमारी से निपटने के 'प्रयास' किए जा रहे हैं, लेकिन लगातार होती मौतों से ये तो साफ है कि इन 'प्रयासों' खामियां हैं.
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