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ये कहते हुए उस्मान का दर्द छलक आता है.
उम्र के चौथे दशक में चल रहे उस्मान एक सफल कारोबारी हैं. श्रीनगर और अनंतनाग में उनके आउटलेट हैं. उनका का भाई जम्मू-कश्मीर पुलिस में अधिकारी है. वो बताते हैं, "भाई की नौकरी के कारण पारिवारिक समारोहों में हमें गद्दार कहा जाता था. हमारे परिवार ने ऐसे अपमानों को बर्दाश्त किया. आज हम नहीं जानते कि उन रिश्तेदारों से क्या कहा जाए.”
कश्मीर घाटी में कई उस्मान हैं, जो आर्टिकल 370 और 35A को रद्द करने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के भारत सरकार के एकतरफा फैसले से निराशा महसूस करते हैं. उन्हें अपनी सुरक्षा का भी डर है.
राशिद (बदला हुआ नाम) एक सरकारी अधिकारी हैं और उनका एक पोस्ट-ग्रेजुएट बेटा है. वो बताते हैं, “मैं ऑफिस आने से डरता हूं. इन युवा लड़कों ने बड़ों के लिए सभी तरह के सम्मान खो दिए हैं.”
उनके साथ काम करने वाले मुनीर (बदला हुआ नाम) ने कहा, "पिछले हफ्ते मुझे खनियार में छह लड़कों के एक ग्रुप ने रोक लिए था. वे हड़ताल को सही साबित करने के लिए मेरी स्कूटी में आग लगाना चाहते थे. गनीमत से, उनमें से एक ने मुझे पहचान लिया और दूसरों से कहा कि मुझे जाने दें. जैसे मैंने मुश्किल से 200 मीटर पार किया, मुझे एक सीआरपीएफ चेकपोस्ट पर रोक दिया गया. मैंने अपनी चाबियां उन्हें सौंप दीं और कहा, लड़के मेरी स्कूटी में आग नहीं लगा सके, तो आप ऐसा क्यों नहीं करते? वे हंसे और मुझे जाने दिया.”
जम्मू कश्मीर पुलिस में एसपीओ के पद पर तैनात वहीद (बदला हुआ नाम) ने बताया, “जिस तरीके से यह फैसला लिया गया और लागू किया गया, उससे हमें दुख पहुंचा है. जरा सोचिए, 4 अगस्त को हमने रात का खाना खाया और बिस्तर पर सोने चले गए और अगली सुबह हम टीवी पर देखते हैं कि हमारा राज्य दो संघ शासित प्रदेशों में बंट गया है और हम अपना विशेष दर्जा खो चुके हैं! क्या हमें इसमें हिस्सा लेने या यहां तक
कि यह जानने का अधिकार नहीं था कि हमारे राज्य में क्या किया जा रहा है?”
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जम्मू और कश्मीर पुलिस के एसपीओ अक्सर आतंकी मुठभेड़ों की अग्रिम मोर्चे पर होते हैं और अपने समुदाय के भीतर उनकी ज्यादा नेकनामी नहीं होती है. उन्हें अक्सर 'गद्दार' और 'दुश्मन का सहयोगी' करार दिया जाता है. आतंकी संगठनों ने कई बार उन्हें और उनके परिवारों को निशाना बनाया. जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवानों को हिजबुल मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयबा की ओर से पोस्टरों के जरिए ड्यूटी करने के खिलाफ चेतावनी दी गई है.
लश्कर के पोस्टर में कहा गया है कि भारत जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवानों का गलत इस्तेमाल करता है."जब भी भारत घाटी में कोई बड़ी कार्रवाई करना चाहता है, तो आपके हथियार छीन लिए जाते हैं."
वहीद ने इस तरह की अफवाहों को खारिज किया, “नहीं, हमारे हथियार नहीं छीने गए. हम हमेशा आतंकियों की तरह अपनी बंदूकों के साथ नहीं घूमते. हमारे हथियारों को पुलिस स्टेशन में रखा जाता है. जब हम ऑपरेशन के लिए जाते हैं, तो हमें हथियार जारी किए जाते हैं.”
शोपियां में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का कहना है, “2016 के दमल हंजीपोरा की घटना के बाद, हमारे हथियारों की सुरक्षा के लिए कई सावधानियां बरती गई हैं. सीआरपीएफ और सेना पुलिस थानों की सुरक्षा के लिए वहां मौजूद हैं.” 2016 में, एक भीड़ ने दक्षिण कश्मीर के दमल हंजिपोरा में पुलिस स्टेशन पर धावा बोल दिया था और पुलिस के हथियार लूट लिए थे.
तबरेज (बदला हुआ नाम) श्रीनगर के जिला कलेक्ट्रेट से बाहर निकलने के लिए तैयार हो रहे हैं. अजान ने पहले ही संकेत दे दिया है कि शुक्रवार की नमाज अदा करने का समय आ गया है. तबरेज ने अपने सहयोगी को नमाज के लिए बाहर जाते हुए बताया कि वह अपने नियमित डाउनटाउन वाले मस्जिद के बजाय पास की छोटी मस्जिद में जाना चाहता है.
तबरेज ने कहा, "आज थोड़ा डर है. शर्ट और ट्राउजर पहनने से लोगों को शक होता है कि ये सरकरी आदमी है. उसका सहयोगी आरिफ (बदला हुआ नाम), एक आसमानी नीले रंग का पठानी सूट पहने हुए है. वह कहते हैं, "मैंने पिछले एक महीने से ट्राउजर नहीं पहनी"
जब जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवानों के परिवारों की सुरक्षा के बारे में सवाल किया गया, तो दक्षिण कश्मीर के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कहते हैं, “मैंने अपने जूनियर साथियों से कहा है कि जब उनके गांवों में सामूहिक विरोध प्रदर्शन की स्थिति हो, तो उनके परिवार के सदस्यों को घर के अंदर रहने के बजाय प्रदर्शन में शामिल होना चाहिए.
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