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पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और एडवोकेट प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को राफेल डील को लेकर बड़ा दावा किया है. उन्होंने कहा कि राफेल डील में अपने पक्ष में फैसला लेने के लिए केंद्र ने कोर्ट को धोखा दिया है.
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाबी हलफनामे में इन याचिकाकर्ताओं ने कहा कि राफेल डील में 14 दिसंबर, 2018 के फैसले पर पुनर्विचार होना चाहिए, क्योंकि केंद्र ने कई अहम जानकारियां छिपाकर ये फैसला हासिल किया है.
उधर, केंद्र ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राफेल मामले की सुनवाई के दौरान कथित तौर पर अदालत को गुमराह करने के लिए अज्ञात सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर दायर याचिका पूरी तरह गलत आधार पर टिकी है.
पूर्व केंद्रीय मंत्रियों की ओर से दायर याचिका पर दिए गए जवाबी हलफनामे में केंद्र ने कहा कि अदालत में झूठे बयान देने और तथ्यों को दबाने के आरोप “ गलत” और “निराधार” हैं.
जवाबी हलफनामे में कहा गया है कि सरकार कोर्ट को अभी भी सारी जानकारी नहीं दे रही है और इस तरह वह तथ्यों को छिपा रही है. याचिकाकर्ताओं ने इस डील से संबंधित सारी जानकारी कोर्ट के सामने पेश करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है.
हलफनामे में कहा गया है-
पूर्व मंत्रियों और प्रशांत भूषण ने केंद्र के जवाब में ये हलफनामा दाखिल किया है. सरकार ने पिछले हफ्ते कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा था कि दिसंबर, 2018 के फैसले में ऐसी कोई गलती नहीं है जिसके लिए इस पर पुनर्विचार किया जाए.
केंद्र ने कहा था कि याचिकाकर्ता फैसले पर पुनर्विचार की आड़ में कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और आधी अधूरी जानकारी का सहारा लेकर सारे मामले को फिर से नहीं खुलवा सकते क्योंकि पुनर्विचार याचिका का दायर बहुत ही लिमिटेड है.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के 14 दिसंबर, 2018 के फैसले पर पुनर्विचार के लिए दायर याचिकाओं पर सुनवाई करेगी. कोर्ट ने फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने की डील में कथित अनियमितताओं की जांच के लिए यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, प्रशांत भूषण की याचिका खारिज कर दी थी. याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि वो ऐसी जानकारी सामने लाए हैं, जिससे पता चलता है कि इस खरीद में कई कठिनाइयां थीं.
याचिकाकर्ताओं के हलफनामे में कहा-
याचिकाकर्ताओं ने राफेल डील में उनकी चार अक्टूबर, 2018 की शिकायत पर केंद्रीय जांच ब्यूरो को कार्रवाई करने का निर्देश देने का अनुरोध किया था. हलफनामे में कहा गया है कि उनके इस अनुरोध पर विचार नहीं किया गया और याचिका इसलिए खारिज कर दी गयी कि मानो वो इस सौदे को रद्द करने या इसकी समीक्षा करने का अनुरोध कर रहे थे.
हलफनामे के अनुसार संविधान पीठ के फैसले में कहा गया है कि यदि शिकायत में पहली नजर में संज्ञेय अपराध का पता चलता है तो अनिवार्य रूप से एफआईआर दर्ज करके मामले की जांच करनी होगी.
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