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सरकार का नारा है-बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ. लेकिन इस देश में जिन हालात में बेटियों को पढ़ाया जा रहा है, वो शर्मसार कर देगा. एक स्कूल/कॉलेज की जिम्मेदारी होती है कि वो इन बेटियों को पढ़ाए और उन्हें आगे बढ़ाए, लेकिन तब आप क्या कहेंगे जब शिक्षा के ये पवित्र स्थान उन बेटियों को अशुद्ध मानते हों. गुजरात, जिसका विकास मॉडल खूब वाहवाही लूट चुका है, उसी गुजरात से ऐसी खबर सामने आई है जो विकास से कोसों दूर है.
ये घटना भुज के श्री सहजानंद गर्ल्स इंस्टीट्यूट में पढ़ने वाली 68 लड़कियों के साथ हुई है. द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, ये पूरा मामला हॉस्टल के बाहर गार्डन में मिले एक इस्तेमाल किए हुए सैनिटरी पैड के कारण शुरू हुआ. कॉलेज प्रशासन को शक हुआ कि ये पैड किसी लड़की ने बाथरूम से फेंका है.
हॉस्टल वॉर्डन ने प्रिंसिपल को इसकी जानकारी दी और सभी लड़कियों को समन किया. प्रिंसिपल ने लड़कियों से कहा कि वो खुद कबूल लें कि ये किसने किया है. जिन लड़कियों को पीरियड्स हो रहे थे वो सामने भी आईं, लेकिन प्रिंसिपल का शक खत्म नहीं हुआ. एक-एक कर सभी लड़कियों को वॉशरूम ले जाया गया और उन्हें अपने अंडरगार्मेंट्स उतारकर साबित करने के लिए कहा गया.
इंस्टीट्यूट की डीन पल्ला झाड़ते हुए कहती हैं कि ये हॉस्टल का मामला है. इसका यूनिवर्सिटी/कॉलेज से कुछ लेना-देना नहीं हैं. वो कहती हैं कि सबकुछ लड़कियों की मर्जी से हुआ है, किसी ने उनके साथ जबरदस्ती नहीं की. किसी ने उन्हें नहीं छुआ.
अपनी वेबसाइट में कॉलेज ने खूब बड़ी-बड़ी बातें लिखी हैं कि इंस्टीट्यूट का मिशन भारतीय मूल्यों के आधार पर ग्लोबल स्टैंडर्ड्स एजुकेशन देना है. वेबसाइट पर लड़कियों की शिक्षा को लेकर भी खूब बड़ी-बड़ी बातें की गई हैं. मॉडर्न, साइंटिफिक और वैल्यू बेस्ड एजुकेशन के जरिए लड़कियों को इंपावर करना, लेकिन ये बातें केवल वेबसाइट तक हैं.
असल में तो हॉस्टल में रहने वाली लड़कियों की जिंदगी इसके ठीक उलट है क्योंकि. असल में तो इन लड़कियों के कंधों पर पुराने पड़ चुके नियम-कायदे लाद दिए गए हैं. पीरियड्स में लड़कियां बेसमेंट में हॉस्टल के कमरे में रहने को मजबूर होती हैं. वो किचन या उस जगह नहीं जा सकतीं, जहां पूजा होती है. उन्हें अपना अलग सामान रखना होगा और पीरियड्स खत्म होने के बाद कमरा साफ करना होगा. और इतना ही नहीं, पीरियड्स में इन्हें क्लास में आखिरी बेंच पर बैठना होगा.
ये नियम-कायदे एक एजुकेशनल इंस्टीट्यूट के हैं. जहां बच्चों को बराबरी सिखाई जाती है, उन्हें आगे बढ़ना सिखाया जाता है. ऐसे स्कूल-कॉलेजों में बच्चे क्या सीखेंगे, जो सदियों पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं.
पीरियड्स के प्रति जागरुकता फैलाने को लेकर सरकार से लेकर कई एनजीओ काम कर रहे हैं. इस टैबू टॉपिक पर बॉलीवुड के बड़े एक्टर्स में शुमार अक्षय कुमार ‘पैडमैन’ जैसी फिल्म बना रहे हैं. पैड्स से लेकर पीरियड शब्द को आम बनाने की तमाम कोशिशें की जा रही हैं, लेकिन आज भी समाज में लड़कियों का शरीर माहवारी में अपवित्र ही रहता है, ताज्जुब है.
तो इससे कि पहले बेटियां पढ़ाईं जाए, उन्हें बचा लिया जाए. इस दकियानूसी, सड़-गल चुकी मानसिकता से और ऐसे शिक्षकों से.
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