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ईमानदारी का दावा करने वाली पार्टियों को क्यों पसंद आते हैं ‘दागी’

गुजरात चुनाव के पहले चरण के चुनाव में कुल 78 दागी उम्मीदवारों के लिए होगी वोटिंग

अंशुल तिवारी
भारत
Updated:
राजनीतिक दल दागियों को टिकट क्यों देते हैं?
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राजनीतिक दल दागियों को टिकट क्यों देते हैं?
(फोटोः Quint Hindi)

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चुनावों में जब जीत दांव पर लगी हो तो राजनीतिक पार्टियां कोई जोखिम नहीं लेती हैं. भले ही उम्मीदवार दागी हों लेकिन अगर उनमें जीतने की संभावना है तो राजनीति में नैतिकता की दुहाई देने वाली पार्टियां उन्हें टिकट देने में कोई गुरेज नहीं करतीं. गुजरात में भी कुछ ऐसा ही दिख रहा है. 9 दिसंबर को गुजरात में पहले चरण का चुनाव होना है और यह देखना खासा दिलचस्प है कि पहले फेज के लिए किस पार्टी ने कितने दागियों पर दांव खेला है.

गुजरात : पहले चरण के चुनाव में उतरेंगे 78 दागी उम्मीदवार

गुजरात चुनाव के पहले चरण में दाखिल हलफनामों के मुताबिक इस बार कुल 78 उम्मीदवार ऐसे हैं, जिनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं. इनमें हत्या, हत्या की कोशिश, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध शामिल हैं.

पहले चरण के चुनाव में दागियों पर दांव लगाने के मामले में कांग्रेस अव्वल है. कांग्रेस ने पहले चरण के लिए कुल 86 उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें 23 फीसदी उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर मामले चल रहे हैं.

आंकड़े ADR से लिए गए हैंक्विंट हिंदी 

दागियों पर दांव लगाने की जरूरत क्यों ?

आखिर राजनीतिक पार्टियों को सामने ऐसी क्या मजबूरियां होती हैं कि वे दागियों का दामन नहीं छोड़ पाती हैं. आंकड़ों के आईने में देखें, तो दागियों पर दांव लगाने की परंपरा कोई नई नहीं है. चुनाव दर चुनाव ये चलन देखने में आता है. खास बात ये है कि सत्ताधारी दल से ज्यादा विपक्षी दल दागियों पर दांव लगाते हैं. ये समझना भी दिलचस्प है कि विपक्षी दलों की रणनीति में ये कैसे अहम है?

दरअसल, दागियों को मैदान में उतारने के पीछे राजनीतिक दलों का खास मकसद होता है.विपक्षी दल किसी भी तरह सरकार बनाना चाहते हैं. पहले से काबिज सरकार को उखाड़ फेंकना चाहते हैं. उनका बहुत कुछ दांव पर लगा होता है. गुजरात में बीजेपी 22 साल से सत्ता में  है. कांग्रेस किसी भी तरह बीजेपी के इस वर्चस्व को तोड़ना चाहती है. ऐसे में बेदाग छवि वाले उम्मीदवारों के मुकाबले बाहुबल और धनबल से लैस उम्मीदवार कांग्रेस को चुनाव जिता सकते हैं तो फिर उसके लिए उन्हें टिकट  देने में उसे हिचकिचाहट  क्यों हो.

पहले भी दागियों पर लगता रहा है दांव

पहले भी कई चुनावों में दागियों पर दांव लगाने की मिसालें खूब देखी गई हैं. अगर इसी साल अलग-अलग राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो तस्वीर काफी हद तक साफ हो जाती है.

उत्तर प्रदेशः गंभीर अपराधों में शामिल 15 फीसदी उम्मीदवारों ने लड़ा चुनाव

इसी साल हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अलग-अलग दलों ने गंभीर अपराधों के आरोपी 704 उम्मीदवारों पर दांव लगाया. इन उम्मीदवारों पर बलात्कार, हत्या, हत्या की कोशिश, अपहरण, सांप्रदायिक दंगे भड़काने, चुनावी हिंसा से जुड़े मामले चल रहे हैं.

इस चुनाव में उतरे बीएसपी के कुल 400 में से 123, बीजेपी के 383 में से 100, समाजवादी पार्टी के 307 में से 88, आरएलडी के 276 में से 48, कांग्रेस के 114 में से 25 दागी थे.

यूपी में दागी उम्मीदवार उतारने की होड़ क्विंट हिंदी
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पंजाबः 7 फीसदी उम्मीदवार गंभीर अपराधों में थे शामिल

पंजाब विधानसभा चुनाव में उतरे 1145 उम्मीदवारों में से 77 उम्मीदवार ऐसे थे, जिनके खिलाफ हत्या, बलात्कार और अपहरण जैसे गंभीर मामले चल रहे थे.

पंजाब भी आपराधिक छवि वाले उम्मीदवार उतारने के ट्रेंड में पीछे नहीं. क्विंट  हिंदी 

उत्तराखंडः चुनाव मैदान में उतरे थे गंभीर आपराधिक मामलों के 54 आरोपी

उत्तराखंड में कुल उम्मीदवारों में से 54 उम्मीदवारों ने शपथ पत्र में अपने ऊपर गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए थे. इनमें बीजेपी के 70 में से 10, कांग्रेस के 70 में से 12, बीएसपी के 69 में से 6, यूकेडी के 55 में से 3 और एसपी के 20 में से 2 उम्मीदवार शामिल थे.

उत्तराखंड में भी आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों से परहेज नहीं क्विंट हिंदी 

लड़ाई बेदाग दिखने की और दागों से ही गुरेज नहीं

हर राजनीतिक दल खुद को बेदाग होने का दावा करता है और विरोधी दलों को अपराधियों का अड्डा साबित करने पर तुला होता है. लेकिन इस दाग-बेदाग की लड़ाई में जनता से असली बात छिपा ली जाती है. और चुपके से पार्टियों के उम्मीदवारों की लिस्ट में दागियों की एंट्री हो जाती है.

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Published: 06 Dec 2017,05:13 PM IST

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