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बीजेपी ने गुजरात शहरी निकाय चुनावों में एक बार फिर सभी छह कॉर्पोरेशन का नियंत्रण ले लिया है. पार्टी ने अहमदाबाद, सूरत, वडोदरा, राजकोट, जामनगर और भावनगर कॉर्पोरेशन में आसान जीत हासिल की. टैली ये है:
अहमदाबाद की फाइनल टैली अभी नहीं आई है. Zee 24 Kalak के मुताबिक, शाम 6:30 बजे तक 192 सीटों में से बीजेपी 160 सीटों पर आगे चल रही थी, कांग्रेस 15 और AIMIM 8 सीटों पर आगे थी.
इन नतीजों के संबंध में पांच जरूरी सवाल पूछने जरूरी हैं.
सूरत में बीजेपी ने 93 सीटें जीती हैं, AAP ने 27 और कांग्रेस ने एक भी नहीं. ये दिखाता है कि शहर में AAP मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई है.
ये AAP का गुजरात की राजनीति में पहला बड़ा कदम है और ये जीत पार्टी को नेशनल पार्टी बनने के लक्ष्य के और नजदीक ले जाती है. नेशनल पार्टी बनने के लिए चार राज्यों में स्टेट पार्टी के तौर पर पहचान मिलनी चाहिए. AAP को दिल्ली और पंजाब में ये पहचान मिली हुई है.
अब गोवा जिला परिषद में एक जीत और सूरत में जीत के बाद AAP के मौके और बढ़ गए हैं.
एक बड़ा फैक्टर पाटीदार अनामत आंदोलन समिति (PAAS) के समर्थन का है. PAAS गुजरात में पाटीदार समुदाय के लिए आरक्षण मांगता रहा है. PAAS के प्रतिनिधि कांग्रेस से नाराज थे क्योंकि पार्टी ने उनके सुझाए कई उम्मीदवारों को चुनाव में नहीं उतारा था. कहा जा रहा है कि समिति ने कांग्रेस और बीजेपी के खिलाफ जाने के लिए AAP को समर्थन दिया.
AAP के गुजरात कन्वेनर गोपाल इटालिया पहले PAAS और उसके पूर्व नेता हार्दिक पटेल के साथ काम कर रहे थे. पटेल अब कांग्रेस में हैं.
इसके अलावा सूरत में व्यापारियों के बीच GST को लेकर बीजेपी के खिलाफ काफी गुस्सा है.
हालांकि, कांग्रेस इस हालात को अपने पक्ष में मोड़ने में नाकाम रही. ऐसा लगता है कि कांग्रेस का एंटी-बीजेपी वोटों को अपने पक्ष में न कर पाना AAP के लिए काम कर गया.
AAP ने रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिस में भ्रष्टाचार जैसे स्थानीय मुद्दों पर लगातार प्रदर्शन भी किया था.
AIMIM अहमदाबाद में सिर्फ 21 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और पार्टी कुछ समर्थन जुटाने में कामयाब भी रही. स्टोरी लिखे जाने तक पार्टी 8 सीटों पर आगे चल रही थी.
पार्टी ज्यादातर जमालपुरा और मकतमपुरा वॉर्ड्स की सीटों पर आगे चल रही है.
ये महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका मतलब है कि अहमदाबाद के मुस्लिमों के बीच कांग्रेस का समर्थन कुछ हद तक टूटकर AIMIM के पाले में आ गया है. कम से कम कॉर्पोरेशन लेवल तक तो यही हालात दिखते हैं.
ये उस पार्टी के लिए काफी अच्छा है जो गुजरात में पहली बार चुनाव लड़ रही है.
पूरी तरह नहीं. ऐतिहासिक रूप से गुजरात में बीजेपी का बड़े शहरों पर कब्जा रहा है. 2017 विधानसभा चुनावों में भो कांग्रेस ने ग्रामीण गुजरात के कई हिस्सों में बीजेपी से बेहतर प्रदर्शन किया था. वो बीजेपी के शहरी गुजरात के गढ़ ही थे, जिन्होंने उस चुनाव में पार्टी को जीत दिलाई थी.
ऐसा लगता है कि कांग्रेस इस समय गुजरात में 2017 विधानसभा चुनावों के समय से पहले के मुकाबले कमजोर है.
अपने सबसे खराब प्रदर्शन में भी कांग्रेस गुजरात में वोट शेयर का अच्छा हिस्सा ले जाती है और मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा नहीं खोती है. अब शायद AAP इसे चुनौती दी और मुस्लिम-बहुल इलाकों में पार्टी को AIMIM से चुनौती मिल सकती है.
शहरी गुजरात में, हां. इस क्षेत्र में पार्टी काफी समय से अजेय है और हालिया नतीजे दिखाते हैं कि पार्टी का असर कमजोर नहीं हुआ है. हालांकि, ग्रामीण गुजरात में बीजेपी के लिए चुनौती अभी भी है और ये अभी भी बदली नहीं है.
अभी के लिए ये कह पाना मुश्किल है कि कांग्रेस 2017 के चुनावों जैसी फाइट दे पाएगी. ये जानना भी जरूरी है कि बीजेपी ने 2017 चुनावों में पाटीदार आंदोलन की वजह से भी सीटें गंवाई थी, जो कि अब शांत हो चुका है.
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