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सिख धर्म के संस्थापक, गुरु नानक, अपने बेटों को उत्तराधिकारी बनाने के पक्ष में नहीं थे. उनका सबसे छोटा बेटा लक्ष्मण दास उतना आध्यात्मिक नहीं था,जबकि बड़े बेटे का धर्म के प्रति झुकाव अपने पिता से ज्यादा था.
कहा जाता है कि गुरुनानक शायद अपने बचपन के दोस्त और जन्म से मुसलमान मरदाना को अपना उत्तराधिकारी बनाते, अगर उनकी अकाल मृत्यु न हो गई होती. मरदाना गुरु नानक की कई आध्यात्मिक यात्राओं में उनकी साथी थे. बगदाद में मरदाना की अचानक मृत्यु से दुखी गुरु नानक करतारपुर चले गए और आखिरी 17 साल वहीं रहे. तभी उनकी मुलाकात भाई लेहना से हुई, जो अंततः उनके उत्तराधिकारी बने.
वाराणसी, हरिद्वार, मक्का और बगदाद जैसे दुनिया के कई शहरों की तीन दशक तक यात्रा करने के बाद गुरु नानक सन 1521-22 में करतारपुर आए.
माना जाता है कि वर्तमान सीमावर्ती शहर में अपने परिवार के साथ नानक एक छोटे से जमीन के टुकड़़े पर काम करते थे. उन्हें ये जमीन उनके एक भक्त ने दिया था. शाम को गुरु नानक अपने उपदेशों और गीतों के साथ अनुयायियों के एक बड़े समूह को संबोधित करते थे. इसके बाद सामुदायिक भोज यानि लंगर होता था.
Source: हारून खालिद और ट्रांक्वबार प्रेस की किताब 'वॉकिंग विद नानक' से लिया गया का एक हिस्सा
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