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  H-1B वीजा : कटौती की तो भारत का नहीं अपना घाटा करेगा अमेरिका

अमेरिकी H-1B वीजा कैप की खबरों से भारतीय आईटी कंपनियों में चिंता की लहर है लेकिन अमेरिका को भी आएगी मुश्किल 

दीपक के मंडल
भारत
Updated:
अमेरिका ने H-1B वीजा पर कैप लगाने  की खबरों का खंडन किया है
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अमेरिका ने H-1B वीजा पर कैप लगाने  की खबरों का खंडन किया है
फोटो : istock 

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अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह डेटा लोकलाइजेशन का कानून लागू करने वाले देशों के लिए H-1B वीजा पर कैप नहीं लगाने जा रहा है. विदेश मंत्रालय ने न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की खबर पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा है कि इसके जरिये किसी खास देश को निशाना नहीं बनाया जाएगा. विश्लेषकों का मानना है अगर ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीजा पर कैप लगाया तो भारत की कंपनियों को नुकसान होगा लेकिन अमेरिकी कंपनियों को इससे भी ज्यादा घाटा हो सकता है.

न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने खबर दी थी कि अमेरिका डेटा लोकलाइजेशन का कानून लागू करने वाले देशों के प्रोफेशनल्स के लिए H-1B वीजा की संख्या 10 से 15 फीसदी तक सीमित करने पर विचार कर रहा है. भारत के लिए यह मुद्दा इसलिए अहम है क्योंकि H-1B वीजा पर वर्क परमिट पाने वाले प्रोफेशनल्स में दो तिहाई भारतीय होते हैं.

यूएस सिटीजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज (USCIS) के आंकड़ों के मुताबिक भारतीय आईटी कंपनियों की तुलना में अमेरिकी कंपनियों के पास ज्यादा H-1B वीजा हैं. अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट, डेलॉयट के पास सबसे ज्यादा H-1B वीजा हैं. ये कंपनियां भारत से प्रोफेशनल्स बुलाती हैं. यानी अगर इस पर कैप लगता है तो भारत से इन कंपनियों के पास बेहतरीन स्किल वाले भारतीय प्रोफेशनल नहीं जा पाएंगे. इससे अमेरिकी कंपनियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.

क्या है डेटा लोकलाइजेशन का मुद्दा

दरअसल भारत समेत कई देशों ने अमेरिकी पेमेंट कंपनियों से जुड़े डेटा को अमेरिकी सर्वर पर रखने की इजाजत नहीं दी है. भारत में भी आरबीआई ने मास्टर कार्ड और ऐसी ही ग्लोबल पेमेंट कंपनियों को भारत से बाहर डेटा रखने की इजाजत नहीं दी.

डेटा लोकलाइजेशन का अर्थ है कि देश में रहने वाले नागरिकों के निजी आंकड़ों का कलेक्शन, प्रोसेस और स्टोर करके देश के भीतर ही रखा जाए और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ट्रांसफर करने से पहले लोकल प्राइवेसी कानून या डेटा प्रोटेक्शन कानून की शर्तों का पालन किया जाए. जबकि अमेरिकी कंपनियों का कहना है कि भारत में अपना सर्वर बनाने में अमेरिकी कंपनियों का खर्च बढ़ेगा. इससे बिजनेस की उनकी लागत बढ़ जाएगी. अमेरिका का कहना है कि वह दुनिया भर के देशों को कारोबार में छूट दे रहा है लेकिन दूसरे देश ऐसा नहीं कर रहे हैं. अब अमेरिका ने उन देशों के खिलाफ टैरिफ बढ़ाने जैसा कदम उठाना शुरू किया है.

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H-1B वीजा और अमेरिकी इकोनॉमी पर असर

ट्रंप प्रशासन के Buy American Hire American Executive Order के तहत H-1B वीजा प्रोग्राम की समीक्षा करने को कहा गया है. अमेरिका का कहना है कि इस वीजा प्रोग्राम की वजह से भारत जैसे देशों से आने वाले प्रोफेशनल्स उसके यहां की नौकरियां खा रहे हैं. वहीं भारत का कहना है कि इसके जरिये उसके हाई स्किल्ड प्रोफेशनल्स अमेरिका जा रहे हैं. इससे अमेरिकी कंपनियों को ही फायदा हो रहा है.

H-1B वीजा से अमेरिका स्थित कंपनियों में विदेशी प्रोफेशनल्स को अस्थायी रोजगार की इजाजत होती है. अक्सर हाई प्रोफेशनल्स और स्किल वाले कर्मचारियों को कंपनियां H-1B वीजा पर काम करने की इजाजत देती हैं.

अमेरिकी संसद ने जनरल कैटेगरी के लिए 65 हजार और एडवांस डिग्री होल्डर्स के लिए 20 हजार H-1B वीजा की लिमिटेशन रखी है. अभी हर देश के हिसाब से कोई कैप नहीं है. कुछ H-1B वीजा एकेडेमिक, रिसर्च और नॉन प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन के लिए होते हैं. इन पर कोई कैप नहीं होता.

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Published: 21 Jun 2019,06:14 PM IST

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