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जगमगाहट और खुशियों के त्योहार दिवाली ने दस्तक दे दी है.लोगों में इसका अलग ही क्रेज देखने को मिलता है जिसके सामने सारे दुःख फीके पड़ जाते हैं. बस उम्मीद होती है कि दिवाली के साथ जीवन के सभी अंधेरे भी मिट जाएंगे. साल 2020 हम सभी के लिए कठिन रहा. शायद ही कोई ऐसा तबका होगा जिसे महामारी की मार नहीं झेलनी पड़ी होगी. कोविड और लॉकडाउन से जीवन अस्त व्यस्त तो हुए ही साथ ही किसी ने अपनों को खोया तो किसी ने नौकरी गंवाई.
कई परिवार ऐसे भी हैं जिनमें कमाने वाला एक ही आदमी था और उसे भी अपनी जिंदगी से हाथ धोना पड़ा. ये दास्तान संघर्ष की है, कठिनाई की है, अपनों के खोने का दुख और आंसुओं की, जिससे आज भी कई परिवार बाहर नहीं निकाल पाए हैं.
कोविड ने अब तक 1.29 लाख लोगों की जान ले ली है और उनके पीछे छूट गई अनाथ जिंदगियां, बेसहरा महिलाएं जिनके भविष्य पर अब सवाल है.
“डार्विन ने बहुत पहले ही एक थ्योरी दी थी “सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट” महामारी के दौरान ये काफी सटीक रूप से देखी गई. यानी कि जो भी शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और भावनात्मक रूप से मजबूत रहा उसने जिंदगी की जंग जीत ली वरना घुटने टेकने पड़े.”
आर्थिक रूप से मजबूत न होने की वजह से डिजिटल सुविधाओं से वंचित लोग मानो दुनिया से ही कट गए. न पढ़ाई, न ही अन्य जरूरी काम, जिंदगी मानो थम सी गई.
क्विंट हिंदी आपसे अनुरोध करता है कि एक बार आप इनके बारे में सोचकर देखिए. धारावी में रहने वाले दो बच्चों को अपने भविष्य के बारे में कुछ भी नहीं पता. क्योंकि परिवार में कमाने वाले पिता अब कभी लौटकर नहीं आयेंगे.
तमिलनाडु की कबड्डी टीम जिनमें टॉप प्लेयर्स की कोई कमी नहीं लेकिन फंड्स रुक जाने की वजह से उनका खेलना भी अब बंद हो गया है.
इस दिवाली मौका है इन जरुरतमंदों की थोड़ी मदद करने का ताकि हम इन की जिंदगी में कुछ बदलाव ला सकें. जुड़िए द क्विंट की "दिल वाली दिवाली " से शायद आपके कुछ तोहफे या डोनेशन इनके चेहरे पर मुस्कान ला सकें. इन्हें अपने जीवन में कोई आशा की किरण दिख सके जिसके लिए आपका और हमारा छोटा कदम भी काफी होगा.
आइए देते हैं कुछ “दिल से” ताकि इन की आने वाली कई दिवाली को बेहतर बनाया जा सके.हम पर भरोसा रखिए, दूसरों के लिए अच्छा कर के आपको भी अच्छा लगेगा.
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