Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019एडिक्शन के बहाने वाइंस्टाइन,रहीम जैसे लोग अपना वहशीपन छिपाते हैं?

एडिक्शन के बहाने वाइंस्टाइन,रहीम जैसे लोग अपना वहशीपन छिपाते हैं?

क्या सेक्स एडिक्शन कोई बीमारी है या ये आरोपी, भ्रष्ट लोगों के लिए एक आसान तरीका है लोगों से सहानुभूति पाने का.

कौशिकी कश्यप
भारत
Updated:
वाइंस्टाइन और राम रहीम जैसे लोग सेक्स  एडिक्शन के ‘शिकार’ नहीं. वे सहानुभूति के लिए इस शब्द की आड़ लेते हैं. 
i
वाइंस्टाइन और राम रहीम जैसे लोग सेक्स  एडिक्शन के ‘शिकार’ नहीं. वे सहानुभूति के लिए इस शब्द की आड़ लेते हैं. 
(फोटो: क्विंट हिंदी/Twitter)

advertisement

सेक्सुअल हरैसमेंट के 50 से ज्यादा आरोपों से घिर चुके हाॅलीवुड प्रोड्यूसर हार्वे वाइंस्टाइन के खिलाफ एक और नया चौंकाने वाला नाम सामने आया. ‘फ्रीडा’ फिल्म की स्टार सलमा हायेक ने आरोप लगाया कि प्रोड्यूसर हार्वे वाइंस्टाइन ने उनका भी यौन शोषण किया था. सलमा हायेक ने न्यूयॉर्क टाइम्स के एडिटोरियल में अपनी दास्तान लिखी और कहा कि ‘कई साल तक वो मेरा खून चूसने वाला पिशाच था.’

यौन उत्पीड़न के खिलाफ चल रही मुहिम #MeToo के तहत सलमा हायेक भी वाइंस्टाइन के हाथों अपने शोषण की कहानी दुनिया के सामने लेकर आई.

आपको बता दें कि जब वाइंस्टाइन पर सेक्सुअल हैरेसमेंट का आरोप लगना शुरू हुआ तो उसने रिहैब सेंटर में अपना समय बिताना शुरू किया. इसके पीछे वजह थी सेक्स की लत यानी एडिक्शन से छुटकारा पाना. वहशी ने अपने कुकर्मों को छिपाने के लिए क्या बहाना निकाला?

लेकिन क्या सेक्स एडिक्शन जैसी कोई ‘बीमारी’ है या ये आरोपियों के लिए सिर्फ सहानुभूति पाने का एक आसान तरीका है. क्या ऐसे लोग सच में ‘बीमार’ होते हैं या सिर्फ भ्रष्ट और छिछोरे.

आरोपों को ‘प्रोत्साहित’ करने का काम

हाॅलीवुड में अपने ही सहयोगियों ने जब वाइंस्टाइन पर आरोप लगाकर एक तरह से उसे निष्काषित किया तो उसने शरण ली रिहैब यानी पुनर्वास केंद्र की. यानी वो बीमार है और उसे मदद की जरूरत है.

(बीमारी, माई फुट!)

बहाना ‘सेक्स एडिक्शन’ का. असल में ये एक ऐसा विचित्र शब्द है जिसने उसपर लगे दर्जनों यौन दुर्व्यवहार या यौन उत्पीड़न के लगे आरोपों को ‘प्रोत्साहित’ करने का काम किया. मानों वाइंस्टाइन खुद इसके लिए आरोपी नहीं है. कुछ अदृश्य सी चीज है सेक्स एडिक्शन जिसकी वजह से उससे वो सारे छिछोरेपन हो गए. और उसे पता ही नहीं चल पाया हो कि वो क्या कर रहा था.
वाइंस्टाइन ने लानतों से बचने के लिए नायाब बहाना बनाया 

ऐसा साबित करता है आत्मविश्वास से भरा उसका एक बयान जो उसने आरोपों से घिरने के बाद दिया था. उसने बयान जारी करते हुए ‘अपने शैतान पर विजय’ की यात्रा शुरू करने की कसम खाई थी.

यानी उसे सच में लगता है कि किसी ‘शैतानी शक्ति’ की वजह से उसने वो सारे घटिया काम किए!

द इकनाॅमिस्ट की एक रिपोर्ट सवाल उठाती है कि क्या सेक्स एडिक्शन जैसी कोई चीज है? या बीमारी का नाम देकर ऐसे अपराधी एक तरह का कंफर्ट महसूस करते हैं और खुद को शर्म से बाहर निकालते हैं.

दरअसल, एडिक्शन जैसे शब्द आरोपी और पीड़ित के बीच के अंतर को कम कर देता है. क्योंकि आरोपी खुद के लिए और समाज के लिए किसी बीमारी से पीड़ित इंसान माना जाने लगता है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

हमारे देश में भी गुरमीत राम-रहीम का केस आया. बलात्कार के आरोप में 20 साल की सजा भुगत रहा डेरा सच्चा प्रमुख राम रहीम. उसके बारे में भी खबर आई कि वो सेक्स एडिक्ट है.

सेक्स एडिक्शन जैसे जुमले राम रहीम जैसे लोगों के गुनाह के लिए काफी नहीं हैं

लेकिन रिपोर्ट्स कहते हैं कि हर इंसान की सेक्स ड्राइव यानी सेक्स की इच्छा अलग-अलग होती है. ये ज्यादा हो सकती है या कम. लेकिन अगर किसी में ये ज्यादा है तो हम उसपर सेक्स एडिक्शन का लेबल नहीं लगा सकते. ये नहीं कह सकते कि वो बीमार है.

सेक्स एडिक्शन को अमेरिका के साइकिएट्रिक कम्यूनिटी ने कभी भी आॅफिशियली तौर पर नहीं माना है.

यानी इस तरह के लोग खुद को एक मरीज के रूप में पेश करते हैं. वो एक क्लीनिकल पर्दे में खुद को छिपाना चाहते हैं ताकि उन्हें लोग दया की नजर से देखें.

साथ ही किसी भी प्रोफेशनल साइकिएट्रिक के लिए बाइबिल मानी जाने वाली मैनुअल डायगनाॅस्टिक एंड स्टैटिस्टिकल मैनुअल आॅफ मेंटल डिसआॅर्डर (डीएसएम-वी) में सेक्स एडिक्शन के डायग्नाॅसिस को अभी तक रेखांकित नहीं किया गया है. यानी उस मैनुअल में इस तरह की बीमारी होती भी है या नहीं इसका जिक्र नहीं है.

सेक्स एडिक्शन बीमारी है या नहीं इसपर एक्सपर्ट, डाॅक्टर्स के बीच मतभेद जारी है.
2015 में किताब “द बायलाॅजी आॅफ डिजायर: वाइ एडिक्शन इज नाॅट अ डिजीज (क्यों व्यसन/आदत कोई बीमारी नहीं है?) के लेखक न्यूरोसाइंटिस्ट मार्क लुईस कहते हैं कि “जैसे ही आपकी सोच उस जोन (एडिक्शन) में जाती है, आप अपने बुरे कामों की जिम्मेदारी से खुद को मुक्त कर लेते हैं. आपकी गलती के लिए आश्वासन मिल जाता है कि कोई कैरेक्टर बुरा नहीं होता, सिर्फ परिस्थितियां खराब होती हैं.”

हो सकता है सारे केस में ऐसा नहीं होता हो. लेकिन जिस तरीके से और तेजी से इसकी आड़ लेने का पैटर्न आया है उसपर सवाल उठाया जाना चाहिए. साथ ही हम भी तेजी से इस शब्द पर भरोसा कर आरोपी पर भरोसा कर लेते हैं. यौन उत्पीड़न के विषय से हटकर अनजाने ही हम किसी और ही चीज पर अपना फोकस करने लगते हैं.

ये अपमान है- पीड़ितों के लिए, वैध मनोचिकित्सा के लिए. इसीलिए वाइंस्टाइन जैसे छिछोरों को बस वही माना जाना चाहिए- गंदी सोच रखने वाले मॉन्सटर जो दूसरे की लाचारी का फायदा उठाकर अपना शिकार करता है और अपनी हैसियत से बात को आगे बढ़ने से दबाता है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 15 Dec 2017,07:55 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT