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अब ये याद दिलाने की जरूरत नहीं है कि कितनी बार नेता या अभिनेता हिंदी को राष्ट्रीय भाषा कह देते हैं. या ये मांग की जाती है कि हिंदी पूरे देश की एक भाषा होनी चाहिए.
अब हम आपको ये जजमेंट नहीं देने वाले कि ऐसी मांगें जायज हैं या नाजायाज. लेकिन आज हिंदी दिवस पर संविधान की शरण में जाकर ये समझ लेना सही रहेगा कि हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने हिंदी को लेकर क्या तय किया था.
संविधान के आर्टिकल 343 में एक तरफ जहां हिंदी और अंग्रेजी को राज्य की आधिकारिक भाषा यानी ऑफिशियल लैंग्वेज बताया गया है. वहीं, आर्टिकल 346 कहता है कि केंद्र की आधिकारिक भाषा के जरिए ही दो राज्यों के बीच में कम्यूनिकेशन होगा.
अब सवाल उठता है कि क्या संविधान में अंग्रेजी के अलावा सिर्फ हिंदी को ही मान्यता मिली हुई है? नहीं.
भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भारतीय भाषाओं को मान्यता दी गई है. ये भाषाएं हैं असमी, बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली. उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, बोडो, संथली, मैथिली और डोगरी.
2011 की जनगणना के मुताबिक महज 43.63% भारतीय ही ऐसे थे, जिनकी पहली भाषा हिंदी थी. ये आंकड़े तो यही कहते हैं कि देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा हिंदी के अलावा अन्य भाषाओं का उपयोग करता है. 2011 की जनगणना में ये भी सामने आया था कि भारत के पूर्वी, उत्तरपूर्वी और दक्षिण में बड़े स्तर पर अन्य क्षेत्रीय भाषाओं का इस्तेमाल होता है. जनगणना में ऐसी 270 भाषाएं चिन्हित की गई थीं, जिनका इस्तेमाल लोग बोलचाल के रूप में करते हैं और उन्हीं भाषाओं को अपनी मातृभाषा मानते हैं.
अब समझते हैं कि हिंदी बोलना हर राज्य के लिए अनिवार्य क्यों नहीं है?
लब्बोलुआब यही है कि जिस तरह हम सभी देशवासी बराबर हैं, कोई बड़ा नहीं कोई छोटा नहीं, उसी तरह हमारी भाषाएं भी बराबर हैं. कोई बड़ी नहीं कोई छोटी नहीं, कोई सुपीरियर नहीं. इस एकता को बनाए रखना है तो विविधता को भी स्वीकार करना होगा. क्योंकि हिंदी की ही तरह भारत में बोली जाने वाली बाकी भाषाओं का भी अपना इतिहास है.
शायर जाफ़र मलीहाबादी ने कहा है,
दिलों में हुब्ब-ए-वतन है अगर तो एक रहो
निखारना ये चमन है अगर तो एक रहो
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