Home News India Hola Maholla: ढोल-नगाड़े-कलाबाजी संग गुलाल,तस्वीरों में 'होला मोहल्ला' का त्योहार
Hola Maholla: ढोल-नगाड़े-कलाबाजी संग गुलाल,तस्वीरों में 'होला मोहल्ला' का त्योहार
Hola Maholla की शुरुआत कैसे हुई? आनंदपुर साहिब से आईं जश्न की तस्वीरों के साथ यहां जानें इसका इतिहास
FAIZAN AHMAD
भारत
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Hola Maholla: ढोल-नगाड़े-कलाबाजी संग गुलाल,तस्वीरों में 'होला मोहल्ला' का त्योहार
(फोटो- क्विंट हिंदी)
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पंजाब (Punjab) में आज होला मोहल्ला मनाया गया. होला मोहल्ला (Hola Maholla) एक लोकप्रिय तीन दिवसीय मेला है जो पंजाब के श्री आनंदपुर साहिब में मनाया जाता है. यह दुनिया भर के सिखों के लिए एक बड़ा उत्सव है. उत्सव में मुख्य रूप से सिख योद्धाओं की बहादुरी को श्रद्धांजलि देने के लिए मार्शल आर्ट, घुड़सवारी और कविता पाठ का प्रदर्शन शामिल है. इस दिन, श्री हरमंदिर साहिब में, भक्त अपने परिवारों के साथ झुकते हैं, गुरबानी सुनते हैं, पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं और गुरु साहिब का आशीर्वाद लेते हैं.
बाद में त्योहार के बाद नृत्य, संगीत और रंगों का छिड़काव होता है. आइए आपको दिखाते हैं होला महोल्ला के जश्न की कुछ तस्वीरें.
आनंदपुर साहिब: आनंदपुर साहिब में 'होला मोहल्ला' उत्सव के मौके पर रंगों से सराबोर एक निहंग सिख.
(फोटो- पीटीआई)
इस दिन अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब में भक्त अपने परिवारों के साथ झुकते हैं, गुरबानी सुनते हैं, पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं और गुरु साहिब का आशीर्वाद लेते हैं.
(फोटो- पीटीआई)
आनंदपुर साहिब में बुधवार, 8 मार्च, 2023 को 'होला मोहल्ला' उत्सव के दौरान एक निहंग सिख घोड़े पर अपने कौशल का प्रदर्शन करते हुए.
(फोटो- पीटीआई)
रंगों में सराबोर निहंग सिख आनंदपुर साहिब में 'होला मोहल्ला' का त्योहार मानते हुए.
(फोटो- पीटीआई)
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आनंदपुर साहिब में होला के दौरान आयोजित होने वाला मेला परंपरागत रूप से तीन दिवसीय आयोजन होता है, लेकिन लोग एक हफ्ते के लिए आनंदपुर साहिब में जाते हैं, कैंपिंग करते हैं और युद्ध कौशल और बहादुरी के विभिन्न प्रदर्शनों का आनंद लेते हैं, और कीर्तन, संगीत और कविता सुनते हैं.
(फोटो- पीटीआई)
होला मोहल्ला के दिन तख्त श्री केशगढ़ साहिब के पास एक लंबे, "सैन्य-शैली" के जुलूस के साथ समापन होता है.
(फोटो- पीटीआई)
दसवें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने प्रह्लाद की कहानी पर होला मोहल्ला के त्योहार की स्थापना की.
(फोटो- पीटीआई)
गुरु गोबिंद सिंह के दरबारी कवि भाई नंद लाल के अनुसार, लड़ाई के पूरा होने के बाद प्रतिभागियों द्वारा रंग फेंके गए: गुलाब जल, अम्बर, कस्तूरी और केसरिया रंग का पानी इस्तेमाल किया गया था. तब से यह प्रचलन में है.