Home News India ...तो जाट आंदोलन से नहीं, सिस्टम फेल होने से जला रोहतक?
...तो जाट आंदोलन से नहीं, सिस्टम फेल होने से जला रोहतक?
18 फरवरी तक शांतिपू्र्ण ढंग से चला जाट आंदोलन रातोंरात कैसे एक हिंसक दंगे में बदल गया, इस पर अब कई सवाल उठ रहे हैं
प्रशांत चाहल
भारत
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हरियाणा में कई दिनों तक चले हिंसक विध्वंस का संबंध जाति, किसान, रोजगार और जेएनयू विवाद से भी है (फोटो: प्रशांत चाहल)
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हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान रोहतक शहर में हुए दंगों में कई लोगों की मौत हुई. करीब 350 लोग घायल हुए. कई सौ एफआईआर की गईं. रोहतक-दिल्ली रोड पर करीब 60 दुकानें जला दी गईं. इसके अलावा हाल ही में बने सर्किट हाउस और एक शॉपिंग मॉल को भी आग के हवाले कर दिया गया.
अगर ये माना जाए कि रोहतक शहर में यह सारा नुकसान सूबे में बहुसंख्यक जाटों की आन, अहम और इज्जत पर लगी चोट से शुरू हुए आरक्षण आंदोलन के कारण ही हुआ, तो यह हरियाणा में हुए दंगों के एक जरूरी पहलू को दरकिनार करना होगा. ऐसा इसलिए, क्योंकि हरियाणा में कई दिन तक चले हिंसक विध्वंस का सीधा संबंध जाति, किसान, रोजगार और राष्ट्रीय मुद्दों से भी है.
हरियाणा में संपत्ति के साथ-साथ लोगों के सपने भी जलकर स्वाह हो गए (फोटो: प्रशांत चाहल)
हरियाणा में गुस्साई भीड़ ने चार दिनों में जो विनाश किया, उसके लिए सामाजिक व्यवस्था से ज्यादा राजनीतिक गलतियां और प्रशासन का गलत आकलन जिम्मेदार है, जो सभी को एक डंडे और गोली से हांकने की कोशिश कर रहा था.
इन दंगों की पड़ताल में ‘द क्विंट’ ने पाया कि रोहतक शहर से महज 80 किलोमीटर दूर जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी कैंपस में चल रहा विवाद भी रोहतक को सुलगाने का एक अहम कारण बना.
18 फरवरी को रोहतक कोर्ट परिसर में जिन वकीलों पर हमला किया गया और उसी शाम महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले जिन स्टूडेंट्स को पीटा गया, वे सभी जेएनयू के पक्ष में और पटियाला हाउस कोर्ट में हुए हमले के विपक्ष में प्रोटेस्ट कर रहे थे. इस घटना को आप आंदोलन के हिंसक होने का ‘ट्रिगर पॉइंट’ भी कह सकते हैं.
आगे पढ़ने से पहले देखिए ये वीडियो.
बहरहाल, जब इन दंगों को मुख्यधारा की खबरों में जगह मिली, तब तक रोहतक शहर में ‘जाट आंदोलन’ को एक हिंसक विध्वंस का चेहरा दे दिया गया. लेकिन सरकार इसकी आड़ में जो कुछ करती रही, उसे लेकर स्थानीय प्रशासन और सभी राजनीतिक दल चुप रहे.
धीरे-धीरे रोहतक शहर में पटरी पर लौट रहा है जीवन (फोटो: प्रशांत चाहल)
कब, क्या हुआ...
12 फरवरी: हरियाणा के हिसार जिले में जाट नेता हवा सिंह सांगवान के नेतृत्व में मय्यड़ गांव से जाटों का आरक्षण आंदोलन शुरू हुआ. दोपहर में एक पंचायत हुई, जिसके बाद जाट समुदाय ने रेलवे ट्रैक ब्लॉक कर दिया.
13 फरवरी: जाट आरक्षण आंदोलन की मांग कर रहा सांगवान ग्रुप और एक धनकड़ ग्रुप सरकार के प्रतिनिधियों से मुलाकात करने हिसार के हांसी गांव में पहुंचा, जहां उन्हें आरक्षण दिए जाने का आश्वासन मिला.
14 फरवरी: हवा सिंह सांगवान ने हिसार से जाट आंदोलन वापस लेने की बात कही, जबकि युवा आंदोलनकारी कुछ लिखित आश्वासन मिलने तक डटे रहने के पक्ष में थे. उनका कहना था कि 31 मार्च तक शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन जारी रखा जाए, ताकि दबाव बनने पर सरकार जल्द से जल्द फैसला ले. आंदोलन के तीसरे दिन तक सैकड़ों ट्रेनें रद्द हो चुकी थीं. इसी बीच रोहतक से सटे सांपला कस्बे में खाप पंचायतों ने ‘जाट स्वाभिमान रैली’ कर जाट आंदोलन जारी रखने की बात कही. शाम तक रोहतक की ओर जाने वाले हर हाइवे को बंद कर दिया गया.
15 फरवरी: सरकार ने जाटों को आरक्षण देने पर विचार करने की बात दोहराई और जाटों से अपील की कि आंदोलन बंद कर दें. लेकिन शांतिपूर्वक आंदोलन जारी रहा. कई जगह किसानों की मीटिंग हुई और किसानों की समस्याओं पर गोष्ठी की गई. बीच-बीच में जाट आंदोलनकारी बीजेपी विधायक राजकुमार सैनी के बयान की निंदा भी करते रहे.
16 फरवरी: सांगवान और धनकड़ खाप के बाद दहिया, हुड्डा व मलिक खाप समेत 22 खाप पंचायतें भी आंदोलन में शामिल हो गई. इसका सीधा असर झज्जर, रोहतक और सोनीपत जिलों पर पड़ा. शाम को सीएम मनोहर लाल खट्टर के दफ्तर से जाट नेताओं के पास कॉल आया और उन्हें मीटिंग के लिए बुलाया गया. जाट नेताओं की मांग थी कि आरक्षण मामले में कोई भी मीटिंग चंडीगढ़ में बंद कमरों में बैठकर नहीं की जाए. बल्कि सीएम पब्लिक मीटिंग लें. सरकार ने यह मांग ठुकरा दी.
17 फरवरी: दोपहर को जाट नेता सीएम खट्टर से मिलने चंडीगढ़ पहुंचे. यहां खट्टर ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वह जाटों को ओबीसी आरक्षण (जाति के आधार पर) देने को तैयार हैं. लेकिन शाम को सीएम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ऐलान किया कि हरियाणा सरकार जाटों को एक खास कोटा (आर्थिक आधार पर) देगी, जो कि 20 परसेंट तक होगा. जाटों ने इस कोटे को ठुकरा दिया और नेताओं ने आंदोलनकारियों से अहिंसक आंदोलन जारी रखने की अपील की.
18 फरवरी: ‘जाट आंदोलन’ के चलते रोहतक शहर में धारा-144 लगा दी गई. शहर की सभी दुकानें बंद रखी गईं. इस बीच ‘35 जाति बनाम एक’ का नारा लगाती और बैनर-पोस्टर हाथ में थामे हुए 100 लोगों की भीड़ ने कोर्ट परिसर में वकीलों पर हमला किया. वकील यहां जाट आरक्षण समेत पटियाला हाउस कोर्ट में कन्हैया कुमार पर हुए हमले के खिलाफ प्रोटेस्ट कर रहे थे. वकीलों पर यह हमला करीब 3 बजे हुआ. इसके बाद शाम 8 बजे पुलिस ने डीएसपी अमित भाटिया के आदेश पर महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी के नेकीराम कॉलेज के दो हॉस्टल्स पर हमला किया. इसमें जाट और गैर-जाट स्टूडेंट्स को पीटा गया. छात्रों की मानें, तो वे कॉलेज में जेएनयू विवाद के खिलाफ प्रोटेस्ट कर रहे थे. हमले में घायल हुए छात्रों की एफआईआर भी पुलिस ने दर्ज नहीं की.
19 फरवरी: गुस्साए छात्र आईजी ऑफिस के बाहर प्रोटेस्ट करने पहुंचे, तो उनपर गोलियां चलाई गईं. 5 छात्रों को गोलियां लगीं, जिनमें 3 की मौत हो गई. इसके बाद शहर में दंगे शुरू हुए. दो दिन तक पूरे शहर में लूटपाट का तांडव चला. बिना चेहरे वाली भीड़ ने शहर में आगजनी की और इससे निपटने के लिए आर्मी को उतारा गया.
(रोहतक शहर में हुए इस घटनाक्रम का यह खाका शहर के लोगों, पुलिसवालों, डॉक्टरों और महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले छात्रों से बात करके तैयार किया गया )
दंगा प्रभावित लोग अपने नुकसान का मुआवजा लेने का प्रयास कर रहे हैं (फोटो: प्रशांत चाहल)
अफवाहों ने दंगे को दी हवा
रोहतक पुलिस मानती है कि दंगे के दौरान कई अफवाहों को हवा दी गई. मसलन, शहर में 19 तारीख की शाम को यह अफवाह फैलाई गई कि जाट आंदोलनकारियों ने बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर की मूर्ति को गिरा दिया.
इसके बाद 20 फरवरी की दोपहर तक पूरे शहर में यह अफवाह फैल चुकी थी कि गैर-जाट समुदाय के लोगों ने सर छोटू राम की मूर्ति को नुकसान पहुंचाया. ऐसे अफवाहों से शहर को और भी ज्यादा नुकसान हुआ.