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महात्मा गांधी, 20वीं सदी में दुनिया में शांति, अहिंसा और सत्य के प्रतीक बन चुके थे. माना जाता है कि उन्हें नोबेल प्राइज न देना नोबेल कमेटी के सबसे खराब फैसलों में से एक रहा है. गांधी को पांच बार नोबेल के लिए नामित किया गया. बाद में ये तर्क दिया जाने लगा कि मरणोपरांत नोबेल नहीं दिया जाता.
लोग हमेशा नोबेल कमेटी को लेकर सवाल उठाते हैं कि क्या कमेटी का नजरिया इतना छोटा था कि वो किसी गैर यूरोपीय या गैर अमेरिकी को नोबेल पीस प्राइज नहीं दे सकती थी.
1960 में नेल्सन मंडेला के अग्रज और महान अफ्रीकी नेता अल्बर्ट लुथुली शांति का नोबेल पाने वाले पहले गैर अमेरिकी और गैर यूरोपीय थे.
महात्मा गांधी को नोबेल न दिए जाने पर नोबेल फाउंडेशन के कई सदस्यों ने बाद में खेद प्रकट किया था. 1989 में दलाई लामा को शांति का नोबेल प्राइज देते वक्त कमेटी के चीफ ने प्राइज को गांधी को समर्पित किया था.
गांधी को नोबेल पुरुस्कार के लिए शुरुआती तीनों बार ही नार्वे के सांसद ओले कॉलब्जोर्नसन ने नॉमिनेट किया. 1937 को छोड़कर , 1938 और 1939 में गांधी को नॉमिनेट करने के बाद शॉर्टलिस्ट नहीं किया गया.
1937 में गांधी के योगदान पर प्रो. वॉप्स मूलर को रिपोर्ट देनी थी. उन्होंने जो रिपोर्ट दी, उसमें गांधी की आलोचना की गई थी. मूलर के मुताबिक, गांधी के सिद्धांत पूरी दुनिया में लागू नहीं हो सकते.
उस साल ‘द विस्काउंट सेसिल ऑफ चेलवुड’ को लीग ऑफ नेशन्स में योगदान के लिए अवॉर्ड दिया गया.
1947 में गांधी को जीबी पंत, जीवी मावलंकर और बीजी खेर ने नॉमिनेट किया था. लेकिन नोबेल कमेटी के 5 में से 3 सदस्य गांधी के खिलाफ थे.
इसके लिए सदस्यों भारत-पाकिस्तान बंटवारे में हुई हिंसा और उस पर गांधी के स्टैंड को आधार बताया था. आखिरकार गांधी को नोबेल नहीं दिया गया. उस बार ‘क्वेकर्स’ को नोबेल मिला.
इस बार गांधी को 1947 के विजेता क्वेकर्स और एमिली ग्रीन बॉक ने नॉमिनेट किया. दो पुराने पुरस्कार विजेताओं से नॉमिनेट होना अपने आप में बड़ी बात थी. इस बार कमेटी में तीन सदस्य शामिल थे. गांधी के योगदान पर इस बार जेंस अरूप सीप को रिपोर्ट देनी थी.
माना जाता है इस बार गांधी के नाम पर सहमति बन चुकी थी. लेकिन घोषणा से पहले ही गांधी की हत्या हो गई.
उस समय ऐसा कोई चलन नहीं था कि मरने के बाद किसी को अवॉर्ड नहीं दिया जा सकता था. हालांकि उससे पहले इस तरह की स्थिति नहीं बनी थी.
नोबेल कमेटी पहले इस नतीजे पर पहुंची कि कुछ परिस्थितियों में मरणोपरांत नोबेल दिया जा सकता है. लेकिन प्राइज देने वाली स्वीडिश फाउंडेशन कुछ कारणों से इसके लिए राजी नहीं हुई.
इस तरह एक बार फिर नोबेल को गांधीजी नसीब होते-होते रह गए.
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