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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान इन दिनों कश्मीर को घरेलू और अंतराराष्ट्रीय स्तर पर बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश में हैं. हालांकि इसी बीच वह कुछ ऐसा बोल गए, जिससे उन्हें पाकिस्तानी सेना की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है.
हाल ही में इमरान ने अपने एक बयान से बालाकोट में भारतीय वायुसेना की कार्रवाई की बात स्वीकार ली. दरअसल उन्होंने पाकिस्तान के 73वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर कहा,
इमरान के इस बयान पर भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि इमरान ने स्वीकार कर किया कि बालाकोट में एयरस्ट्राइक हुई थी. बता दें कि पाकिस्तानी सेना ने बालाकोट एयरस्ट्राइक की बात को माना ही नहीं था. पाकिस्तानी सेना ने दावा किया था कि ऐसी कोई एयरस्ट्राइक नहीं हुई है तो ना ही किसी की जान गई है. ध्यान देने वाली बात यह भी है कि इमरान का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब उन पर सेना की नाराजगी का खतरा मंडरा रहा है.
साल 2018 में जब इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने तो आरोप लगे कि चुनाव में धांधली के जरिए सेना ने उन्हें सत्ता तक पहुंचाने में मदद की. हालांकि अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच पिछले कुछ दिनों में इमरान ने ऐसे बयान दिए हैं जो पाकिस्तानी सेना को चुभ सकते हैं. हाल ही में जब इमरान अमेरिका के दौरे पर गए, तो वहां उन्होंने माना कि पाकिस्तान में करीब 30000 से 40000 आतंकी मौजूद हैं.
इमरान ने यह बयान भी दिया कि पाकिस्तान में 'जिहादी संगठनों और उनकी संस्कृति' के लिए कोई जगह नहीं है. उन्होंने दावा किया कि सरकार 'जिहाद' और आतंकवाद की संस्कृति को खत्म करने के लिए कदम उठा रही है.
मगर पाकिस्तान पर जिस अंतरराष्ट्रीय निगरानी की बात की जा रही है, इमरान के लिए उससे बचना भी आसान नहीं होगा. पाकिस्तान को फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) ने कड़ी चेतावनी दी है कि वो या तो अक्टूबर तक आतंकी फंडिंग पर लगाम लगाने के लिए अपने एक्शन प्लान को पूरा करे, नहीं तो ब्लैकलिस्ट होने के लिए तैयार रहे.
अगर पाकिस्तान FATF से ब्लैकलिस्ट हुआ तो पहले से चरमराई उसकी अर्थव्यवस्था की कमर टूट जाएगी. दरअसल ऐसा होने पर उसके लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से कर्ज मिलने की राह करीब-करीब बंद हो जाएगी. शायद यही वजह है कि इमरान आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई का दिखावा भी कर रहे हैं और उनके खिलाफ कोई ठोस कदम भी नहीं उठा रहे.
यह एक खुला रहस्य है कि जैश-ए-मोहम्मद (JeM) और लश्कर-ए-तैयबा (LeT) जैसे आतंकी संगठनों को पाकिस्तानी सेना से पनाह मिली हुई है. पाकिस्तान में हाफिज सईद जैसे आतंकी ना सिर्फ खुलेआम भारत के खिलाफ जहर उगलते दिखते हैं, बल्कि वे अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए तथाकथित चैरिटेबल संगठनों के जरिए 'चंदे' के नाम पर फंड जुटाते भी नजर आते हैं.
एक यूरोपीय थिंक टैंक EFSAS के मुताबिक, (गफूर के बयान का मतलब) पाकिस्तान में आतंकियों को मुख्यधारा की राजनीति से जोड़ने का लक्ष्य है.
पाकिस्तान में आतंकियों को किस तरह पनाह मिलती है, इसका एक बड़ा उदाहरण 2011 में भी दुनिया के सामने आया था, जब अमेरिका ने एबटाबाद में तत्कालीन अल-कायदा चीफ ओसामा बिन लादेन को ढूंढकर मार गिराया था. अमेरिकी की इस कार्रवाई ने उस पाकिस्तान के सच को सामने ला दिया था, जो लगातार अपने यहां ओसामा की मौजूदगी की खबरों को खारिज कर रहा था. मगर एक तरह से रंगे हाथों पकड़े जाने के बाद भी पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आया.
पाकिस्तान में आतंकियों को मिलने वाली पनाह पर पाकिस्तानी अखबार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने टेररिज्म एक्सपर्ट प्रोफेसर मार्था क्रेंशॉ के एक बयान को छापा था. जिसमें कहा गया था, ''पाकिस्तान ने (सैन्य, राजनीतिक और कानूनी तरीके से) अपने चरमपंथियों के खिलाफ प्रभावी तरह से काम नहीं किया. हिंसक समूहों को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने की मुहिम से उसकी विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा है.''
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