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यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद मांस की दुकानों पर कहर बरपा, उनके बंद होने का सिलसिला तेज हुआ. इसी बीच मध्य प्रदेश से आवाज आई कि पूरे राज्य में मांसाहार पर रोक लगनी चाहिए. शाकाहार ही अपनाया जाना चाहिए. फिर मांसाहार पर बहस राजनीतिक हो जाती है.
लगता है जैसे गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण, सड़क, अस्पताल की समस्याएं खत्म हो गई हों. अब एक ही काम बचा है, वो ये कि तय किया जाए कि हम और आप क्या खाएं. लेकिन मौजूदा समय में ऐसा लग रहा है, जैसे लोगों पर शाकाहार थोपा जा रहा है. मांसाहार बहुत से लोगों के लिए प्रोटीन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है. वो उसे अपने पोषण के लिए अहम मानते हैं.
हम प्रोटीन डेफिसिएंट देश हैं. ऐसे में हम ऐसा क्या खाएं कि भरपूर प्रोटीन मिले. मीट बैन को लेकर बहस जारी है, जबकि ये प्रोटीन का एक सस्ता स्रोत है.
भारत के पूर्वोत्तर राज्यों- नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा के अलावा केरल जैसे कुछ दूसरे राज्यों में लोग बीफ खाते हैं. वहां इसकी बिक्री पर बैन नहीं है.
हालांकि केवल मीट से ही प्रोटीन मिलता है, ऐसा नहीं है. बाकी चीजों से भी प्रोटीन मिलता है. सब्जियों से भी प्रोटीन मिलता है.
आहार और जीवनशैली आपकी अपनी पसंद पर निर्भर हैं. कई लोगों के लिए ये उनके बजट पर भी निर्भर करता है.
शाकाहार में प्रोटीन का प्रमुख सोर्स दाल माना जाता है. मार्च में दालों की महंगाई दर 9.02 फीसदी से बढ़कर 12.42 फीसदी हो गई है. पनीर, दूध, आल्मंड बटर जैसी चीजें सबके पहुंच में नहीं है.
हालिया ग्लोबल असेसमेंट से पता चला है कि अमेरिका सालाना औसतन प्रति व्यक्ति 122 किलो मीट खपत करता है, जबकि भारत औसतन 3-5 किलो प्रति व्यक्ति के हिसाब से मीट खपत करता है. अमेरिकी औसत प्रोटीन आवश्यकता से 1.5 गुना ज्यादा मीट प्रोटीन का सेवन करते हैं.
हमारे देश में न्यूट्रिशनल वैल्यू को काफी नजरअंदाज किया जाता रहा है.
2008 में देश में पांच साल से कम उम्र के 43% अंडरवेट थे. सोमालिया में ये आंकड़ा 32% था और रवांडा के लिए यह 11% था. पाकिस्तान में ये आंकड़ा हमारे देश से 11% कम यानी 32% था.
उस समय शाकाहार-मांसाहार महत्व का विषय नहीं था, लेकिन आज ये बहुत ज्वलंत मुद्दा है.
मध्य प्रदेश में 52% बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. इसके बावजूद शिवराज सिंह चौहान ने मिड डे मील के मेन्यू से अंडे को हटवा दिया. कई और राज्यों में ऐसा किया गया है. ऐसा लग रहा है कि शाकाहार जबरदस्ती थोपा जा रहा हो.
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