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आर्मी ने अपने हथियारों और टैंकों के गोलाबारूद का घरेलू स्तर पर उत्पादन करने के लिए एक बड़े प्रोजेक्ट को अंतिम रूप दे दिया है. पिछले कई सालों की बातचीत और प्लानिंग के बाद 15 हजार करोड़ की कीमत के प्रोजेक्ट को तय किया गया है.
इस कदम का मकसद गोलाबारूद के आयात में होने वाली लंबी देरी और उसके भंडार घटने की समस्या का समाधान है. दरअसल , अहम गोलाबारूद का भंडार तेजी से घटने को लेकर रक्षा बल पिछले कई साल से चिंता जता रहे थे. सरकार का ये कदम इस समस्या का हल करने की दिशा में पहला गंभीर प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है. साथ ही , चीन के तेजी से अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाने के मुद्दे पर भी कई सरकारों ने चर्चा की थी.
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि इस बड़े प्रोजेक्ट में 11 निजी कंपनियों को शामिल किया जाएगा. इसकी निगरानी थल सेना और रक्षा मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी करेंगे. इस परियोजना का फौरी लक्ष्य गोलाबारूद का स्वदेशीकरण बताया जा रहा है.
ये सभी बड़े हथियारों के लिए एक ‘इंवेंट्री ' बनाएगा, ताकि बल 30 दिनों का युद्ध लड़ सके जबकि इसका लंबे समय के लिए मकसद आयात पर निर्भरता को घटाना है. परियोजना में शामिल एक बड़े सरकारी अधिकारी ने बताया कि परियोजना की कुल लागत 15,000 करोड़ रूपये है और हमने उत्पादन किए जाने वाले गोलाबारूद की मात्रा के संदर्भ में अगले 10 साल का एक लक्ष्य निर्धारित किया है.
एक सूत्र ने बताया कि शुरू में कई तरह के रॉकेटों, हवाई रक्षा प्रणाली, तोप, बख्तरबंद टैंकों, ग्रेनेड लॉंचर और दूसरों के लिए गोलाबारूद का उत्पादन समयसीमा के अंदर किया जाएगा. उत्पादन के लक्ष्यों को कार्यक्रम के क्रियान्वयन के प्रथम चरण के नतीजे के बाद संशोधित किया जाएगा. सूत्रों ने संकेत दिया कि पिछले महीने यहां थल सेना के टॉप कमांडर के एक सम्मेलन में प्रोजेक्ट पर चर्चा हुई थी.
सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी थल सेना के लिए हथियार और गोलाबारूद की खरीद प्रक्रिया में तेजी लाने पर जोर दे रहे हैं. वहीं , अधिकारी ने बताया , ‘‘ गोलाबारूद का स्वदेशीकरण परियोजना दशकों में ऐसा सबसे बड़ा कार्यक्रम होगा. ''
बता दें कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ( कैग ) ने पिछले साल जुलाई में संसद में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में कहा था कि 152 प्रकार के गोलाबारूद में सिर्फ 61 प्रकार का भंडार ही उपलब्ध है और युद्ध के हालात में ये सिर्फ 10 दिन चलेगा. हालांकि, निर्धारित सुरक्षा प्रोटोकॉल के मुताबिक गोलाबारूद का भंडार एक महीने लंबे युद्ध के लिए होना चाहिए.
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