advertisement
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को कहा कि भारत क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) समझौते में शामिल नहीं होगा. भारत ने जिस मुद्दों को उठाया उसका संतोषजनक ढंग से समाधान नहीं होने पर उसने 16 देशों के बीच होने वाले इस समझौते से बाहर रहने का फैसला किया है. प्रधानमंत्री मोदी ने आरसीईपी शिखर सम्मेलन में अपने संबोधन के दौरान ही समझौते में शामिल नहीं होने की घोषणा की. इस सम्मेलन में दुनिया के कई नेता उपस्थित थे.
प्रधानमंत्री ने कहा कि आरसीईपी समझौते को लेकर चल रही वार्ताओं में भारत द्वारा उठाए गए मुद्दों और चिंताओं को दूर नहीं किया जा सका है. इसके मद्देनजर भारत ने इससे अलग रहने का फैसला किया है.
सूत्रों ने बताया कि चीन की ओर से शिखर बैठक के दौरान आरसीईपी समझौते को पूरा करने को लेकर काफी दबाव बनाया जा रहा था. चीन के लिये यह उसके अमेरिका के साथ चल रहे ट्रेड वॉर के प्रभाव के बीच व्यापार में संतुलन बैठाने में मददगार साबित होता. साथ ही वह पश्चिमी देशों को क्षेत्र की आर्थिक ताकत का भी अंदाजा करा पाता.
भारत अपने उत्पादों के लिये बाजार पहुंच का मुद्दा काफी जोरशोर से उठा रहा था. भारत मुख्यतौर पर अपने घरेलू बाजार को बचाने के लिये कुछ वस्तुओं की संरक्षित सूची को लेकर भी मजबूत रुख अपनाये हुये था. देश के कई उद्योगों को ऐसी आशंका है कि भारत अगर इस समझौते पर हस्ताक्षर करता है तो देश में चीन के सस्ते कृषि और औद्योगिक उत्पादों की बाढ़ आ जाएगी.
मोदी ने कहा, ‘‘जब मैं आरसीईपी करार को सभी भारतीयों के हितों से जोड़कर देखता हूं, तो मुझे सकारात्मक जवाब नहीं मिलता. ऐसे में न तो गांधीजी का कोई जंतर और न ही मेरी अपनी अंतरात्मा आरसीईपी में शामिल होने की अनुमति देती है.’’
RCEP में 10 एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशन्स (ASEAN) देशों और उनके 6 फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) भागीदारों चीन, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं. आरसीईपी बातचीत को शुरू करने का मकसद एक आधुनिक, व्यापक, उच्च गुणवत्ता वाला और पारस्परिक लाभकारी आर्थिक भागीदारी करार करना था.16 देशों के इस समूह की आबादी 3.6 अरब है. यह दुनिया की करीब आधी आबादी है.
सूत्रों ने कहा कि RCEP में भारत का रुख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मजबूत नेतृत्व और दुनिया में भारत के बढ़ते कद को दर्शाता है. भारत के इस फैसले से भारतीय किसानों, सूक्ष्म, लघु और मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) और डेयरी उत्पाद का हित संरक्षित होगा.
सूत्रों ने कहा कि यह पहला मौका नहीं है जबकि प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में भारत ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार और उससे संबंधित वार्ताओं में कड़ा रुख अख्तियार किया है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी मोदी को मुश्किल वार्ताकार करार दे चुके हैं. हालांकि, ट्रंप को खुद भी सख्त रुख अपनाने के लिए जाना जाता है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)