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देश के लघु और सीमांत किसानों की मेहनत और बेहतर निर्यात नीति के कारण विश्व बाजार में खीरा और ककड़ी में निर्यात करने में देश अव्वल रहा है. देश ने साल 2016-2017 के दौरान पूरी दुनिया में 1,80,820.87 मीट्रिक टन खीरे और ककड़ी का निर्यात करके 942.72 करोड़ रुपए की कमाई की थी. बेल्जियम, रूस, फ्रांस और स्पेन जैसे देशों में भारतीय खीरा और ककड़ी की सबसे ज्यादा मांग है.
एपीडा के सलाहकार विनोद कुमार कौल बताते हैं, “भारत दुनिया भर की बढ़ती हुई आवश्कता के लिए बेहतरीन खीरा-ककड़ी की कृषि, प्रसंस्करण और निर्यातकों के स्रोत के रूप में उभर कर रहा है.''
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय भारत सरकार की तरफ से गठित कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण यानी एपीडा की रिपोर्ट के अनुसार देश में खीरा-ककड़ी की पैदावार लघु और सीमांत किसानों की देख-रेख में हो रही है. अभी देशभर में एक लाख से ज्यादा लघु और सीमांत किसान खीरा-ककड़ी उत्पादन के काम में लगे हुए हैं.
ककड़ी की खेती विशेष रूप से 'अनुबंध कृषि' के आधार पर की जा रही है. दुनिया के बाजारों के लिए बहुत ही उच्च गुणवत्ता वाली ककड़ी का उत्पादन करने के लिए देश के किसानों को वैश्विक मानकों के अनुसार खेती करने के लिए कृषि विभाग की तरफ अनुबंध खेती के लिए सहायता दी जा रही है. खीरा और ककड़ी की खेती में यह एक सफल मॉडल बनता जा रहा है.
भारत में ककड़ी की व्यावसायिक खेती, प्रसंस्करण और निर्यात की शुरुआत 1990 के दशक में हुई थी. दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में एक मामूली शुरुआत हुई और बाद में तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के पड़ोसी राज्यों तक इसका विस्तार हुआ. शुरुआत में प्रसंस्कृत ककड़ी को थोक पैकिंग में निर्यात किया गया था और 2001 के बाद से इसे 'रेडी-टू-ईट जार' में निर्यात किया जा रहा है. भारत में आज ककड़ी का उद्योग पूरी तरह एक बड़ा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग बन चुका है.
ककड़ी शब्द का प्रयोग चटपटे अचारी खीरे के लिए किया जाता है. ककड़ी और व्यवसायिक खीरा एक ही प्रजाति (कुकुमीज सेटिवस) के हैं, लेकिन यह अलग-अलग कृषि समूहों के अंतर्गत आते हैं. इस फसल की कटाई तब होती है जब इनकी लम्बाई 4 से 8 से.मी (1 से 3 इंच) की होती है. किस महीने में किन सब्जियों की बुआई करनी है ये जानने के लिए यहां क्लिक करें
(ये स्टोरी गांव कनेक्शन वेबसाइट से ली गई है)
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