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जरा सोचिए, एक घर में 4 लोगों की रहने की जगह है और उसमें 8 लोग रह रहे हैं.
जरा सोचिए, खाने की एक टेबल पर 5 लोग ही बैठकर खा सकते हैं, लेकिन उस टेबल पर 10 लोग खा रहे हैं.
जरा सोचिए, ट्रेन के एक कंपार्टमेंट में 6 लोगों की बैठने की जगह है और 12 लोग उसमें यात्रा कर रहे हैं.
उत्तराखंड की 11 जेलों (जिसमें केंद्रीय जेल भी शामिल है) में करीब 7000 कैदी हैं. प्रदेश में 10 डॉक्टरों के स्वीकृत पदों के मुकाबले 6,921 कैदियों के लिए केवल एक डॉक्टर है. लेकिन, जेलों में भीड़भाड़ की यह समस्या अकेले उत्तराखंड तक ही सीमित नहीं है.
रिपोर्ट के मुताबिक भारत की कुल 1,314 जेलों में से 391 जेलों (30 फीसदी) में 150 फीसदी से अधिक कैदी हैं. 150% से अधिक कैदियों के साथ जेलों की संख्या के मामले में, यूपी 74 जेलों में से 57 के साथ शीर्ष पर है. इसका मतलब है कि यूपी की 77% से अधिक जेलों में कैदियों का प्रतिशत उनकी अधिकतम क्षमता से कम से कम 50% अधिक है.
IJR रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत की 1314 जेलों में से 391 में बंद कैदियों का औसत 150% से अधिक है.
भारत की 54% जेलें खचाखच भरी हैं.
राष्ट्रीय स्तर पर जेलों में बंद कैदियों का औसत 130 फीसदी है.
अगर कुछ विशेष जेलों की बात की जाए तो वहां की स्थिति बद से बदतर है.
जैसे, छत्तीसगढ़ की दंतेवाड़ा जिला जेल में बंद कैदियों का औसत 4963 फीसदी है, जो इसकी क्षमता से करीब 50 गुना अधिक है.
असम की नलबाड़ी जिला जेल में 155 कैदियों जगह है, जहां 4500 कैदी रह रहे हैं.
भारत की जेलों में बंद 77 फीसदी कैदी अंडर ट्रायल पर हैं. इसका मतलब ये है कि अभी तक उन्हें दोषी नहीं ठहराया गया है.
2010 और 2021 के बीच अंडर-ट्रायल की संख्या दोगुनी होकर 2.4 लाख से 4.3 लाख हो गई है.
रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रीय स्तर पर 88,725 (20.8 प्रतिशत) विचाराधीन कैदियों ने 1 से 3 साल जेल में बिताए.
रिपोर्ट के मुताबिक, "विचाराधीन कैदियों की लंबे समय तक हिरासत इस बात का संकेत है कि जांच को पूरा होने में अधिक समय लग रहा है."
रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2021 के अंत तक 1319 जेलों में सिर्फ 658 डॉक्टर थे, यानी दो जेलों पर एक डॉक्टर. रिपोर्ट- 2022 के मुताबिक साल के अंत में 554,034 कैदियों के बीच प्रत्येक 842 कैदियों के लिए 1 डॉक्टर और प्रत्येक 266 महिला कैदियों के लिए 1 महिला डॉक्टर.
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट कुछ और आंकड़ों पर प्रकाश डालती है, जिससे पता चलता है कि आखिर भारत की जेलें कैदियों से क्यों खचाखच भरी हैं और विचाराधिन कैदी अंतहीन कैद में क्यों सड़ रहे हैं?
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की अदालतों में 50 मिलियन लंबित मामले समाधान की प्रतीक्षा में हैं. औसतन 17.7 लाख लोगों के लिए उच्च न्यायालय का एक न्यायाधीश और 71,000 लोगों के लिए एक अधीनस्थ अदालत का न्यायाधीश है.
इसके अलावा, कानूनी सेवा क्लीनिकों की संख्या 2020 में 14,159 से गिरकर 2022 में 4,742 पर आ गई है.
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