advertisement
(इस आर्टिकल को डॉ. गिरधर ज्ञानी के ऑडियो इंटरव्यू का लिंक जोड़ने के लिए एडिट किया गया है)
द क्विंट को दिए गए इंटरव्यू में कोविड-19 हॉस्पिटल टास्क फोर्स के संयोजक डॉ. गिरधर ज्ञानी ने यह बात कही. मंगलवार, 24 मार्च को एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स के फाउंडर डॉ. ज्ञानी ने हेल्थकेयर प्रफेशनल्स के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वीडियो कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया था.
स्टेज 3 टर्म का इस्तेमाल कम्युनिटी ट्रांसमिशन के लिए किया जाता है. किसी भी संक्रमण की हालत में कम्युनिटी ट्रांसमिशन यानी इंसान से इंसान में बीमारी का प्रसार सबसे अहम पड़ाव माना जाता है. इस स्टेज में महामारी बहुत तेजी से फैलती है और इसके स्रोत का पता लगाना मुश्किल हो जाता है.
डॉ. ज्ञानी ने कहा कि आने वाले पांच से दस दिन इस महामारी को रोकने के लिए बहुत अहम साबित होंगे क्योंकि फिलहाल जिन लोगों में लक्षण नहीं दिख रहे, उनमें ये दिख सकते हैं.
डॉ. ज्ञानी का पूरा ऑडियो इंटरव्यू सुनने के लिए नीचे क्लिक करें
डॉ. ज्ञानी ने ये भी कहा कि ‘सरकार सिर्फ उन लोगों का टेस्ट कर रही है जिनमें (खांसी, सांस की तकलीफ और बुखार) तीन लक्षण पाए जा रहे हैं. अगर किसी मरीज में कोई एक ही लक्षण दिखता है तो उसकी जांच नहीं की जा रही है.’
अब द क्विंट के वो सवाल जिनके डॉ. ज्ञानी ने जवाब दिए:
तो अगर किसी इंसान को सिर्फ बुखार है तो उसका कोविड-19 टेस्ट नहीं किया जाएगा?
नहीं, वो (डॉक्टर) आपको किसी प्राइवेट या सरकारी अस्पताल जाने की सलाह देंगे और बुखार का इलाज कराने को कहेंगे.
लेकिन वो इंसान संक्रमित भी तो हो सकता है?
हां, हो सकता है. लेकिन सरकार को डर है कि ऐसे हर किसी की जांच करने से टेस्टिंग किट्स खत्म हो जाएंगी. इसलिए वो पर्याप्त कोविड-19 टेस्ट नहीं कर रहे हैं.
क्या सरकार के पास पर्याप्त टेस्टिंग किट्स नहीं है?
नहीं.
डॉ. ज्ञानी ने बताया कि सरकार को अपनी रणनीति बदलने की जरूरत है और बीमार लोगों में सभी लक्षण दिखने का इंतजार बंद करना होगा, अगर वो संक्रमण की इस कड़ी को तोड़ना चाहती है.
पीएम मोदी की अध्यक्षता वाली बैठक में फैसला लिया गया कि सरकारी अस्पतालों को कोविड-19 अस्पतालों में तब्दील कर दिया जाए, इसमें प्राइवेट अस्पतालों की भी मदद ली जाए जो कि स्वास्थ्य उपकरण, प्रशिक्षित डॉक्टर और दूसरे स्टाफ मुहैया करा सकें.
सरकार की योजना है कि छोटे जिलों में कम से कम 600 बेड और दिल्ली जैसे मेट्रो शहरों में 3000 बेड वाले कोविड-19 अस्पताल बनाए जाएं.
भारत में कितने अस्पतालों की जरूरत पड़ेगी?
दिल्ली में करीब 3 करोड़ की आबादी है, तो हमारी सलाह थी कि यहां कम से कम 3000 हॉस्पिटल बेड को तैयार रखा जाए. इसके अलावा अलग से कोविड-19 केंद्रों की भी जरूरत होगी जिसमें क्वॉरंटीन में रखे जाने वाले लोग या कोरोनावायरस संक्रमण से उबर चुके लोगों को रखा जा सके. गेस्ट हाउस या हॉस्टल को ऐसे केंद्रों में तब्दील किया जा सकता है.
लेकिन गांवों और छोटे शहरों में सरकार इसे कैसे नियंत्रित करेगी?
उत्तर प्रदेश के बिजनौर जैसे इलाकों में आबादी के हिसाब से 600 बेड की जरूरत होगी. लेकिन वहां 600 बेड वाले अस्पताल नहीं हैं, वहां के अस्पताल बहुत छोटे हैं. ऐसी हालत में कई अस्पतालों को एक साथ जोड़ना होगा. और ये भी सुनिश्चित करना होगा कि मरीजों की आवाजाही के पूरे इंतजाम मौजूद हों. ये एक बहुत ही अहम जरूरत है और मैंने जो सलाह दीं, उनमें से एक है.
क्या आपको नहीं लगता कि हमारे पास इसके लिए पर्याप्त समय नहीं बचा है?
प्रधानमंत्री के साथ हुई बैठक में मैंने भी यही बात रखी.
भारत में कोरोनावायरस का पहला मामला 30 जनवरी को सामने आया था. अब तक देश में कोरोनावायरस के कन्फर्म केस का आंकड़ा 800 के पार जा चुका है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)