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जम्मू-कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त की रिपोर्ट पर भारत ने कड़ा विरोध जताया है. भारत ने कहा है कि पाकिस्तान की तरफ से लगातार फैलाए जा रहे आतंकवाद के अहम मुद्दे को नजरंदाज कर इस रिपोर्ट में गलत नैरेटिव को जगह दी गई है.
यूएन की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत और पाकिस्तान कश्मीर में स्थिति में सुधार में नाकाम रहे और उसकी पहले की रिपोर्ट में जताई गई कई चिंताओं के समाधान के लिए उन दोनों ने कोई ठोस कदम नहीं उठाए.
इस रिपोर्ट को खारिज करते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा,
उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट में कही गयी बातें भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करती हैं और उसमें सीमापार आतंकवाद के मूल मुद्दे की अनदेखी की गयी है.
कुमार ने कहा, ‘‘सालों से पाकिस्तान से जो सीमापार आतंकवाद चल रहा है, उससे पैदा हुए हालात का उसकी वजह से होने वालों हताहतों का हवाला दिए बगैर विश्लेषण किया गया है. ये दुनिया के सबसे बड़े और जीवंत लोकतंत्र के साथ आतंकवाद का खुलेआम समर्थन करने वाले देश की कृत्रिम रूप से बराबरी करने की काल्पनिक कोशिश भर है.’’उन्होंने कहा, ‘‘ इस कड़ी को लेकर गहरा एतराज जताया है.’’
पिछले साल जेनेवा से जो रिपोर्ट जारी की गई थी उसी का अपडेट फिलहाल जारी किया गया है. OHCHR की उस 49 पन्नों की रिपोर्ट में एलओसी के दोनों ओर हुए मानवाधिकार के उल्लंघन का ब्योरा है. रिपोर्ट में सुरक्षाबलों के द्वारा कथित तौर पर किए जा रहे मानवाधिकार के उल्लंघन से स्थाई तौर पर छुटकारा दिलाने की बात कही गई है. रिपोर्ट में जून 2016 से अप्रैल 2018 तक भारतीय राज्य जम्मू कश्मीर में घटनाक्रम और ‘आजाद जम्मू कश्मीर’, गिलगित-बालटिस्तान में मानवाधिकार से जुड़ी आम चिंताएं’’ विषय को शामिल किया गया है. उस वक्त भी भारत ने रिपोर्ट को खारिज करते हुए कहा था कि आजाद कश्मीर और गिलगित-बालटिस्तान का कोई अस्तित्व नहीं है.
अब रिपोर्ट के अपडेट में कहा गया है कि ‘‘ पहले जताई गई चिंताओं के समाधान के लिए ना तो भारत और ना ही पाकिस्तान ने ही कोई कदम उठाये.’’
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