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भारत ने तालिबान के साथ बातचीत के लिए रूस का निमंत्रण स्वीकार किया

रूस, तालिबान और भारत के अलावा मास्को फॉर्मेट में चीन, पाकिस्तान और ईरान भी शामिल है.

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<div class="paragraphs"><p>अफगानिस्तान पर रूस द्वारा बुलाई गई बैठक में भारत को न्योता</p></div>
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अफगानिस्तान पर रूस द्वारा बुलाई गई बैठक में भारत को न्योता

(फोटो- अलटर्ड बाई क्विंट )

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भारत ने मास्को में अफगानिस्तान (Afghanistan) वार्ता में शामिल होने के लिए रूस के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया है. ये बैठक 20 अक्टूबर को होनी है. दो महीने पहले अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज तालिबान को भी बातचीत के लिए आमंत्रित किया गया है, मतलब इस बैठक में तालिबान (Taliban) और भारत का आमना-सामने होगा.

इस बात की पुष्टि करते हुए, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने गुरुवार को कहा, "हमें 20 अक्टूबर को अफगानिस्तान पर मास्को फॉर्मेट मीटिंग का निमंत्रण मिला है, हम इसमें हिस्सा जरूरी लेंगे."

संभावना है कि विदेश मंत्रालय एक संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी को बैठक में भेजेगा, हालांकि अभी इस पर अंतिम निर्णय होना बाकी है.

कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने अगस्त के आखिर में दोहा में तालिबान के प्रतिनिधियों से मुलाकात की थी और मॉस्को में भारतीयों के लिए यह दूसरी बैठक होगी. 31 अगस्त को भारत ने तालिबान के साथ दोहा में अनौपचारिक मुलाकात की थी.

पिछले हफ्ते, अफगानिस्तान पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के विशेष प्रतिनिधि जमीर काबुलोव ने कहा कि मास्को ने 20 अक्टूबर को अफगानिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय वार्ता के लिए तालिबान के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया था.

रूस, तालिबान और भारत के अलावा मास्को फॉर्मेट में चीन, पाकिस्तान और ईरान भी शामिल हैं. तालिबान के सत्ता में आने के बाद से यह अफगानिस्तान पर मास्को फॉर्मेट का पहला संस्करण होगा.

क्या है रूस फॉर्मेट

अफगानिस्तान के मुद्दों को संबोधित करने के लिए रूस ने 2017 से मास्को फॉर्मेट का आयोजन शुरू किया है. यानी अफगान मुद्दों पर एक तरह की बैठक. इसमें अफगानिस्तान, चीन, पाकिस्तान, ईरान और भारत जैसे देश शामिल हैं. अमेरिका ने भी पहले मॉस्को फॉर्मेट में भाग लिया था.

तालिबान को लेकर भारत का रुख

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत ने अपना रुख स्पष्ट किया है कि वह अफगान लोगों के साथ खड़ा रहेगा. पीएम मोदी ने भी संयुक्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय समुदाय से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया था कि अफगान क्षेत्र कट्टरपंथ और आतंकवाद का स्रोत न बने.

अगस्त में काबुल पर तालिबान के कब्जे बाद, भारत ने नए तालिबान शासन में समावेश की कमी, अल्पसंख्यकों, महिलाओं और बच्चों के अधिकारों और आतंकवाद पर भी चिंता व्यक्त की थी.

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