advertisement
“मैं यहां मर जाऊंगी, मुझे यहां से निकालो.” इस साल अप्रैल में रूपी ने इस तरह से मदद की गुहार लगाई थी. पंजाब के कपूरथला की रहने वाली 23 साल की रूपी इस साल काम के लिए 27 मार्च को ओमान के मस्कट गई थीं. रूपी ने आरोप लगाया कि ओमान में जो वक्त उसने काटा वो बहुत बदत्तर था. उसे कैदी की तरह रखा गया था. एजेंटों ने मारा-पीटा तो एम्पलॉयर ने बंधक बनाकर रखा. ये वही एजेंट थे, जिन्होंने उसे घरेलू हेल्पर के तौर पर नौकरी दिलाने का वादा किया था.
द क्विंट ने पंजाब की तीन महिलाओं से बात की, जो घरेलू हेल्पर के रूप में काम करने के लिए ओमान गई थीं, लेकिन एजेंटों और एम्पलॉयर ने उनका शोषण किया. उन्हें कैद में रखा गया, पीटा गया और उनमें से एक ने आरोप लगाया कि उसके साथ बार-बार बलात्कार किया गया. किसी तरह से जब वो रेस्क्यू के बाद घर लौटीं तो उनके हाथ खाली थे, वो कर्ज में डूबी थीं और मारपीट की वजह से आहत थीं.
इन महिलाओं की कहानी उन सैकड़ों भारतीय महिलाओं की किस्मत से पर्दा हटाती है, जिन्हें घरेलू हेल्पर के रूप में नौकरी की आड़ में ओमान और अन्य खाड़ी देशों में ट्रैफिकिंग कर लाया जाता है.
द क्विंट ने लेबर एक्सपर्ट रेजिमन कुट्टप्पन से भी बात की. हमारी कोशिश थी कि यह समझा जाए कि आखिर कैसे महिलाओं को इस तरह की नौकरी का प्रलोभन दिया जाता है. और नौकरियों के लिए पलायन की आड़ में व्याप्त तस्करी को कैसे रोका जाए?
कुट्टप्पन ने कहा, "भारत सरकार को पहले प्रवासियों के लिए एक नीति बनाने की जरूरत है. तभी हम महिला घरेलू हेल्परों के मानवाधिकारों की रक्षा कर सकते हैं ."
ये महिलाएं, जो अक्सर गरीब परिवारों से होती हैं, अपने परिवार की संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए बाहर जाती हैं, इन्हें इस खतरे का जरा सा भी अंदाजा नहीं रहता है कि उनके साथ क्या होने वाला है. यह ऐसी ही तीन महिलाओं की कहानी है.
महिलाओं को "एजेंटों" ने खाड़ी के देशों में घरेलू हेल्पर के तौर पर नौकरी दिलाने की पेशकश की. एजेंटो ने ही सभी कागजी कार्रवाई की और उनका वीजा बनवाया लेकिन दुबई और ओमान पहुंचने पर, महिलाओं को कथित तौर पर एजेंटों ने बंधक बनाकर रखा. उनके जो एम्पलॉयर थे वो नहीं आए..उन्हें काम पर नहीं रखा गया. इनमें से एक महिला का कथित रूप से ट्रैफिकिंग की गई और उसका यौन शोषण हुआ.
पंजाब के कपूरथला के सुल्तानपुर लोधी जिले की रहने वाली रूपी ने द क्विंट को बताया कि उसके माता-पिता दोनों विकलांग हैं. उसके पिता चलने के लिए कृत्रिम पैर का इस्तेमाल करते हैं.
रूपी की चचेरी बहन अर्शदीप कौर, जो छह महीने से मस्कट में काम कर रही थी, ने घरेलू हेल्पर के रूप में काम दिलाने का ऑफर किया. परिवार में भाई-बहनों में सबसे बड़ी रूपी ने अपने घर की आर्थिक स्थिति को सुधारने की उम्मीद में उसे मंजूर कर लिया. रूपी बताती है "मैंने उसे स्वीकार कर लिया जो एक अच्छे अवसर की तरह लग रहा था."
ओमान में 26 दिन बिताने के बाद वह 21 अप्रैल को घर लौटी.
35 साल की महिला से जब पूछा गया कि आखिर दुबई नौकरी करने क्यों गई तो उसने घर की खराब माली हालत का हवाला दिया. उसने कहा कि पहले, वह मुक्तसर में एक ईंट भट्ठे पर काम करती थी. उन्होंने द क्विंट को बताया, "मुझे प्रत्येक 1,000 ईंटों के लिए केवल 460 रुपए मिलता था.
मुक्तसर की महिला की सबसे बड़ी बेटी नर्सिंग में करियर बनाने के लिए मेडिकल साइंस पढ़ना चाहती थी. उसने बताया मौसी की बेटी ने उसे कमलजीत कौर के पास भेजा, जिसने उसे दुबई में अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी देने का वादा किया और एक हफ्ते के भीतर उसका वीजा बनवा दिया. महिला को पंजाब के अमृतसर से शारजाह के हवाई टिकट के लिए 30,000 रुपये देने थे.
रूपी ने 27 मार्च 2023 को मस्कट के लिए उड़ान भरी. उसने दावा किया कि वहां पहुंचने पर एजेंट का ड्राइवर उसे लेने आया और उसका पासपोर्ट ले गया.
रूपी याद करते हुए बताती है कि कैसे वो एजेंट से गुहार लगाती रही कि माता-पिता से उसकी बात करा दे लेकिन एजेंटों ने उसकी एक नहीं सुनी.
रूपी के अलावा, अन्य दो महिलाओं ने भी दावा किया कि आने पर उन्हें 'सेफ हाउस' में रखा गया था. महिलाओं ने दावा किया कि उन्हें एजेंटों ने घरेलू हेल्पर के रूप में नौकरी देने का वादा किया था और एक संभावित एम्पलॉयर के आने तक उन्हें सेफ हाउस में रखा. उनका आरोप है कि उन्हें कैद में रखा गया और दिन में सिर्फ एक बार खाना दिया जाता था. महिलाओं की किस्मत तब तक एम्पलॉयर की मर्जी से बंधी होती थी जो उन्हें कॉन्ट्रैक्ट के तौर पर काम पर रखता था.
द क्विंट ने कुलदीप सिंह जो कि स्वर्ण जीतकौर के पति हैं उनसे से बात की. कुलदीप ने द क्विंट से कहा,
स्वर्णजीत का मानना था कि वहां एक नौकरी से उसे अपने पांच बच्चों सहित सात लोगों के परिवार का भरण-पोषण करने में मदद मिलेगी. लेकिन वह नहीं जानती थी कि नसीब में उसके लिए क्या लिखा था.
मुक्तसर से जो महिला गई थी उनसे दावा किया कि 16 सितंबर 2022 को शारजाह हवाई अड्डे पर उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया गया. अगले दिन उसके 'एम्पलॉयर' ने कथित तौर पर बलात्कार किया. वो बताती हैं,
तभी उसे इस बात का अंदाजा लगा कि घरेलू हेल्पर के रूप में नौकरी का झांसा देकर शारजाह लाया गया था.
उसने कहा कि उसने किसी तरह अपने पति को फोन किया और बताया कि क्या हुआ था. लेकिन जब उसके मालिकों को पता चला, तो उन्होंने उसे फिर से पीटा और उसे ओमान ले गए, जहां उसका भाग्य एक बार फिर उसके नए एम्पलॉयर के हाथों में था. वो आरोप लगाती है कि
करीब एक हफ्ते कैद में रखने के बाद एजेंट ने रूपी को एक बस में बिठा दिया. “उस वक्त भी उन्होंने ड्राइवर को पासपोर्ट और पता दिया था, मुझे नहीं. मुझे यह भी नहीं पता था कि मैं कहां जा रही थी. मुझे सिर्फ इतना पता है कि मैं सुबह 6 बजे बस में बैठी और रात 8 बजे ही वहां पहुंची."
अपने एम्पलॉयर के घर पहुंचने के बाद आखिरकार उसे वाई-फाई की सुविधा मिली. उसके घर छोड़ने के लगभग तीन हफ्ते बाद, रूपी के परिवार को फोन आया. इसमें रूपी की खराब तबीयत का हवाला देकर उसे वापस बुलाने के लिए कहा गया था. इस बीच रूपी की तबीयत बुरी तरह से बिगड़ गई थी.
स्वर्णजीत, जिसे घरेलू हेल्पर के तौर पर बिना ब्रेक के ही लंबे समय तक काम करने के लिए कहा जाता था और जब वह विरोध करती थी तो नियमित रूप से पीटा जाता था, वो किसी तरह ओमान में भारतीय दूतावास पहुंची.
इधर घर पर, मुक्तसर वाली महिला के पति ने आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता और पंजाब के राज्यसभा सांसद बाबा बलबीर सिंह सीचेवाल से गुहार लगाई. सांसद की टीम ने मामले को केंद्रीय विदेश मंत्रालय (MEA) तक पहुंचाया. ओमान में भारतीय दूतावास को तब सतर्क किया गया था, और चार महीने की कैद में यातना और दुर्व्यवहार सहने के बाद महिला को 24 जनवरी को भारत वापस भेज दिया गया था.
गुरभेज ने द क्विंट को बताया कि कमलजीत को गिरफ्तार कर लिया गया है, जबकि रेशम फरार है. उन्होंने कहा, “कमलजीत की जमानत एक से अधिक बार खारिज की जा चुकी है. मामला कोर्ट में चल रहा है."
सीचेवाल की टीम ने रूपी के रेस्क्यू में भी मदद की. आरोप है कि रूपी को भी एजेंट ने कथित रूप से 90,000 रुपये की फिरौती के लिए बंधक बना रखा था. यहां तक कि जब उसे भारत का टिकट मिला, तो एजेंट ने "फ्लाइट से दो घंटे पहले तक जब तक कि उसे 30000 रुपए नहीं मिले तब तक उसका पासपोर्ट रिलीज नहीं किया " .
हालांकि, स्वर्णजीत के पति कुलदीप सिंह को एजेंट अरमान ने एक बार फिर धोखा दिया, जिसने उन्हें इस साल जनवरी में फोन किया और पत्नी के लिए टिकट भेजने को कहा. एक दिहाड़ी मजदूर, वो किसी तरह टिकट खरीदने के लिए पर्याप्त पैसा इकट्ठा करने में कामयाब रहा. लेकिन जब तक सीचेवाल ने हस्तक्षेप नहीं किया, एजेंट ने उसे वापस नहीं भेजा. वापसी का सफर भी उनके लिए आसान नहीं था.
कुलदीप सिंह ने कहा कि अरमान ने अन्य महिलाओं को भी "बंधक में" लिया था और आरोप लगाया था कि उनका यौन उत्पीड़न किया जाता था. उन्होंने एक 1.5 मिनट लंबे वीडियो का हवाला दिया. इसमें महिलाएं अपने "एजेंट" का नाम लेते हुए और "महिलाओं की सप्लाई " करने के तरीके के खिलाफ बोलते हुए देखा जा सकता है. कुलदीप ने बताया कि अमन ने महिलाओं को बंधक बनाकर रखा था.
कुलदीप सिंह ने आरोप लगाया कि जब पंजाब पुलिस ने अरमान को बुलाया और खिंचाई की तो उसने स्वर्णजीत और 14 दूसरी महिलाओं को भारतीय दूतावास के एक आश्रय गृह में छोड़ दिया.
जब वह ओमान में बंद थी तो रूपी की मुलाकात अमृतसर की एक महिला से हुई. वो दोनों किसी तरह से वहां से भागने में कामयाब हुई. रूपी अपने आंसुओं को रोकते हुए बताती हैं,
मुक्तसर की महिला ने याद करते हुए कहा, “उन्होंने मेरा कोई सामान या कीमती सामान वापस नहीं किया. मेरे पास दस्तावेजों के साथ एक प्लास्टिक बैग था. वहां से निकलते वक्त मैंने उसे खोला तो देखा कि उसमें फोन नंबर की कई चिटें थीं, जिन्हें शायद दूसरी महिलाओं ने बैग में छिपा लिया था. शायद वे चाहते थे कि मैं मदद के लिए उनके परिवारों तक पहुंचूं. लेकिन जैसे ही मैं वहां से निकली, एक महिला ने आकर मेरा बैग चेक किया और उन सभी चिटों को बाहर फेंक दिया."
गुरभेज सिंह ने द क्विंट को बताया कि उन्होंने पिछले छह महीनों में ऐसे छह मामलों को निपटाया है और वह वर्तमान में दो और मामलों को देख रहे हैं जहां भारतीय घरेलू कामगार ओमान में फंसे हुए हैं.
“बिल्कुल सुक्की पाई है (उसे कई दिनों से खाना नहीं खाया था.),” रुपी के पिता साधु सिंह ने पंजाबी में द क्विंट को बताया. 24 अप्रैल को जब रूपी अपने गांव लौटी तो द क्विंट ने उससे बात करने की भी कोशिश की लेकिन वो इस हाल में नहीं थी कि कुछ बात कर सके.
मुक्तसर की महिला ने बताया, “ जब मैं वापस आई तो मैंने लगभग पांच महीने के बाद ही ठीक से खाना खाया. मुझे यकीन नहीं थी कि मैं फिर से अपने पांवों पर खड़ी हो पाऊंगी और चल पाऊंगी, क्योंकि उन्होंने मुझे बुरी तरह से पीटा था. उन्होंने जो जख्म मुझे दिया था उसके लिए अभी भी दवाइयां ले रही हूं.”
लेबर एक्सपर्ट रेजीमॉन कुट्टापन के मुताबिक इस सारी परेशानी की वजह है ‘सब एजेंट्स’. ILO के मुताबिक ये सब एजेंट्स वो होते हैं जो दूर के सगे संबंधी या दोस्त हो सकते हैं और डबल एजेंट्स की तरह काम करते हैं. खास कर के ग्रामीण इलाकों में नौकरी के लिए लोगों को लुभाते रहते हैं. वो बताते हैं कि,
गुरुभेज सिंह कहते हैं कि दरअसल ये सब एजेंट्स अनऑफिसियल चैनल से माइग्रेशन लेते हैं और किसी बिचौलिए के जरिए टूरिस्ट वीजा हासिल कर लेते हैं. इसमें नौकरी दिए जाने की कोई बात नहीं रहती है. कोई नौकरी का ऑफर नहीं रहता है. वो एक नए देश ले जाए जाते हैं और उनका अपना कोई संबंध किसी से नहीं रहता है. ये लगभग ट्रैफिकिंग जैसा ही होता है.”
कुटप्पण कहते हैं कि चूंकि महिलाएं ऑफिसियल चैनल के जरिए कामकाज के लिए नहीं जाती हैं इसलिए दूतावास भी ऐसे केस में कोई हस्तक्षेप नहीं करता है.
मुक्तसर वाली महिला ने हमें बताया कि, लोगों से मेरी अपील है कि वो इस बात की जांच ठीक से कर लें कि उनकी बेटियों को कहां भेजा जा रहा है.मैं सरकार से उन महिलाओं को वापस लाने का भी अनुरोध करती हूं, जिन्हें वहां कैद में रखा गया है. इनमें से कई महिलाएं यौन शोषण से जुड़ी शर्म की वजह से इसके खिलाफ नहीं बोलती हैं. लेकिन उन्हें मदद की जरूरत है, जो सिर्फ सरकार के हस्तक्षेप से ही वापस आ सकती है.
कुट्टप्पन ने भी द क्विंट को बताया कि इस मसले को ठीक करने का एकमात्र रास्ता जमीनी स्तर पर विदेश प्रस्थान से पहले जागरूकता फैलाना है. ये वर्तमान में केवल जिला स्तर पर मान्यता प्राप्त एजेंसियां ही करती हैं.
उन्होंने बताया कि गांवों और छोटे शहरों में नकली भर्ती एजेंसियां कुकुरमुत्ते की तरह पनप गई हैं क्योंकि स्थानीय लोग साल भर एक फिक्स्ड इनकम वाली नौकरी के लिए तरसते रहते हैं.
कुट्टप्पन बताते हैं, "विदेश में एक अलग करेंसी में पेमेंट वाली नौकरी लोगों को बहुत लुभाती है. यही कारण है कि लोग इसके लिए आसानी से लालच में फंस जाते हैं. अधिकांश लोग तो अपने पहले टिकट और वीजा फी को भरने के लिए कर्ज लेते हैं. और फिर विदेश चले जाते हैं जहां या तो उन्हें कम पैसे मिलते हैं या फिर पैसे नहीं भी मिलते हैं. ऐसे में अक्सर उनके पास जितने पैसे रहते हैं उससे भी कम पैसे लेकर वो वतन लौटते हैं. और पूरी तरह से वो एजेंटों या बिचौलियों के चक्कर में फंस जाते हैं."
यह पूछे जाने पर कि क्या अवैध भर्ती एजेंसियों की जांच करने का कोई तरीका है, जहां से मानव तस्करी की समस्या अक्सर शुरू होती है, खाड़ी देशों में प्रवासी मजदूरों के साथ काम करने वाली नीदरलैंड स्थित संस्था डो बोल्ड ने कहा, "इन अनैतिक एजेंसियों पर सिर्फ नजर रखना काफी नहीं है. भर्ती करने वाली एजेंसियों का रेगुलेशन, निगरानी आवश्यक है."
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)