Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019यूरिया, कीटनाशक जमीन को बना रहे बंजर, एक-तिहाई भूमि हो रही बेजान

यूरिया, कीटनाशक जमीन को बना रहे बंजर, एक-तिहाई भूमि हो रही बेजान

जल्द ही सरकारें और किसान नहीं जागे तो लाखों हेक्टेयर जमीन पर फसलें नहीं उग पाएंगी

गांव कनेक्‍शन
भारत
Updated:
कृषि प्रधान देश भारत पर ये एक और आफत है
i
कृषि प्रधान देश भारत पर ये एक और आफत है
(फोटो: गांव कनेक्शन)

advertisement

रासायनिक खाद, कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल और गोबर-हरी खाद के कम उपयोग से देश की 32 फीसदी खेती योग्य जमीन बेजान होती जा रही है. जमीन में लगातार कम होते कार्बन तत्वों की तरफ अगर जल्द ही किसान और सरकारों ने ध्यान नहीं दिया, तो इस जमीन पर फसलें उगना बंद हो सकती हैं.

भारत सरकार के पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) की संस्था स्पेस एप्लिकेशंस सेंटर, अहमदाबाद की अगुवाई में पिछले दिनों एक सर्वे कराया था, जिसमें यह नतीजे आए थे. अपनी उर्वरा शक्ति खेती जमीन के लिए कुछ लोग ग्लोबल वार्मिंग का भी परिणाम बता रहे हैं, लेकिन कृषि के जानकार बताते हैं कि गोबर खाद के कम उपयोग के चलते ये नौबत आई है.

सामने आ रही दो मुख्य वजह

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी नई दिल्ली के स्कूल ऑफ इनवॉयर्मेंट स्टडीज के प्रोफेसर कृष्ण गोपाल सक्सेना ने गांव कनेक्शन को बताया, ''एक तरफ रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का बेहिसाब इस्तेमाल हो रहा है. दूसरी तरफ पहले किसान फसल के अवशेष (डंठल, फूस, पत्ती आदि) को खेत में छोड़ देते थे. अब या तो उसका चारा बना लेते हैं या जला देते हैं. इससे जमीन की उर्वरता लगातार घट रही है.''

जमीन में कार्बन और नाइट्रोजन का अनुपात बिगड़ा

जमीन की घटती उत्पादन क्षमता भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (पूसा) के पूर्व सहायक महानिदेशक डॉ. टीपी त्रिपाठी इसे देश और किसानों दोनों के लिए चिंता का विषय बताते हैं.

देश के कई हिस्सों में जमीन लैंड माइनिंग हो रही है, मतलब वो ऊपर से ज्यादा से ज्यादा रसायनिक खादों को डालकर जमीन का दोहन कर रहे हैं, यही वजह है कि जमीन में कार्बन (जैविक तत्व) और नाइट्रोजन का जो अनुपात (4:1) होता है वो बिगड़ गया है.
टीपी त्रिपाठी
खेत की मिट्टी, कृषि-खाद्य उत्पादन का आधार  (फोटो: गांव कनेक्शन)

विश्व मृदा दिवस के मौके पर केन्द्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने एक बयान जारी करके बताया, ‘’खेत की मिट्टी से उपज और किसान की आमदनी जुड़ी है, इसलिए उसके खेत की मिट्टी को स्वस्थ रखने के लिए सरकार हर संभव प्रयास कर रही है.’’

उन्होंने आगे कहा, “खेत की मिट्टी, कृषि-खाद्य उत्पादन का आधार है. मिट्टी पौधों को पोषक तत्वों और जल की आपूर्ति करती है. दुनिया का 95 फीसदी खाद्य पदार्थ मिट्टी से प्राप्त होता है. स्वस्थ मिट्टी के बिना हम स्वस्थ खाद्य पदार्थ का उत्पादन नहीं कर सकते. मृदा केवल खाद्य वस्तु्ओं का उत्पादन नहीं करती, बल्कि ये बारिश के पानी को छानती है और कार्बन को स्टोर करती है.”

उर्वरकों का बहुत इस्तेमाल हुआ

हरित क्रांति के बाद के कुछ साल खास कर 80 के दशक के बाद किसानों ने जिस तरह यूरिया-डीएपी और पेस्टीसाइड का इस्तेमाल किया, मिट्टी और खेती के जानकार उसे आत्मघाती बताते हैं.

पूरे देश में तो नहीं लेकिन कुछ इलाकों में उर्वरकों का बहुत इस्तेमाल हुआ. पंजाब की कहानी जगजाहिर है, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ इलाके भी इसका शिकार हुए हैं. खेती से फसल चाहिए तो उसमें गोबर डालना होगा, क्योंकि कम उपजाऊ मिट्टी में एक तो उपज कम होती है, दूसरा पानी सोखने की कम क्षमता से खर्च बढ़ता है.
डॉ. टीपी त्रिपाठी

चलाई जा रही मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना

भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन ने बताया, “मोदी सरकार साल 2030 तक भूमि के उपजाऊपन में गिरावट को रोकने के लिए प्रतिबद्ध है. इसके लिए राष्ट्रीय कार्य योजना बनाई गई है. मिट्टी की सेहत को ठीक करने के लिए किसानों की मदद के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना चलाई जा रही है.“

मिट्टी को लेकर हालात कितने गंभीर

मिट्टी को लेकर किसानों के हालात काफी गंभीर हैं(फोटो: गांव कनेक्शन)

मिट्टी को लेकर हालात कितने गंभीर हैं, इसका आकंलन नरेंद्र मोदी सरकार के शुरुआती बड़े फैसलों से समझा जा सकता है. 19 फरवरी 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मृदा स्वास्थ कार्ड योजना शुरू की थी, जिसके तहत किसानों के खेत की मिट्टी की मुफ्त में जांचकर जरूरत के मुताबिक खाद इस्तेमाल को प्रेरित करना था.

उत्तर प्रदेश में हालत और खराब

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में जमीन हालत और भी खराब है. उत्तर प्रदेश कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार पिछले डेढ़ दशक से चल रहे उर्वरता संबंधी अध्ययन के मुताबिक, सहारनपुर से लेकर बलिया तक इण्डो गैंजेटिक बेल्ट में खेतों की मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा में भारी गिरावट आई है. यही नहीं पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाकों में पिछले पांच सात सालों में फास्फेट जैसे पोषक तत्व में भी जबर्दस्त कमी देखने को मिली है. सूक्ष्म पोषक तत्वों की बात करें तो जिंक, कॉपर, आयरन, मैंगनीज आदि भी खेतों से कम होते जा रहे हैं.

तिलहनी फसलों की पट्टी के इटावा, मैनपुरी, एटा, कन्नौज, फरुखाबाद और कानपुर जिलों में गंधक तत्व में भी काफी कमी आई है. इन दिनों प्रदेश में खेतों की मिट्टी की उर्वरता परखने के लिए अपनी मिट्टी पहचानों अभियान भी चलाया था.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

किसान आज भी पूरी तरह जागरूक नहीं

उत्तर प्रदेश कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने बताया, “पोषक तत्वों के समुचित प्रबंधन और रसायनिक उर्वरकों के आवश्यकतानुसार इस्तेमाल के मामले में किसान आज भी पूरी तरह जागरूक नहीं हैं. नतीजा हाड़तोड़ मेहनत और प्रमाणिक बीज, सिंचाई और कीटनाशक जैसे संसाधनों की बढ़ती लागत के बावजूद खेतों से अपेक्षित उत्पादन नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में किसानों को जागरूक किया जा रहा है.“

बुंदेलखंड के सुखराम जैसे किसान उदाहरण

बुंदेलखंड में महोबा जिले के थाना पखवारा गांव के रहने वाले सुखराम (50 साल) ने दो बीघे में गेहूं बोए थे, लेकिन उत्पादन एक कुंतल गेहूं का भी नहीं हुआ. सुखराम इसके लिए सिर्फ सिंचाई न होने को वजह मानते रहे, लेकिन पानी के साथ उनके खेत की मिट्टी भी कम उत्पादन के लिए जिम्मेदार है. सुखराम जैसे बुंदेलखंड के करोड़ों किसानों की जमीन पर कार्बन तत्वों की कमी का खामोश खतरा बढ़ता जा रहा है लेकिन उन्हें खबर नहीं है.

वनों से घिरे उत्तराखंड और हिमाचल में जमीन में पोषक तत्व ज्यादा

बुंदेलखंड की कृषि योग्य जमीन की उत्पादकता में गिरावट आ रही है, क्योंकि खेतों में कार्बन तत्वों की कमी हो गई है. जमीन में पोषक तत्व कम हो गए हैं. उत्तर भारत में उपजाऊ मानी जाने वाली कृषि योग्य भूमि में 0.8 फीसदी तक कार्बन तत्व पाये जाते हैं. वनों से घिरे उत्तराखंड और हिमाचल में यह तीन फीसदी तक होती है, लेकिन बुंदेलखंड के कई जिलों में कार्बन तत्वों की मात्रा न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है. कृषि जानकारों के मुताबिक इसके बाद जमीन का बंजर होना बाकी है.

सलाहों को ठीक से नहीं अपना रहे किसान

किसानों को सोच-समझकर खाद का उपयोग करना होगा(फोटो: गांव कनेक्शन)

डॉ. त्रिपाठी बताते हैं, “उपज कम होने और किसानों के घाटे के पीछे की बड़ी वजह जमीन में जीवाश्म का कम होना भी है. मैंने कई इलाकों में मृदा परीक्षण के दौरान खेतों में कार्बन तत्वों की मात्रा न्यूनतम पाई गई. किसान खेत की मिट्टी की जांच तो करवा रहे हैं, लेकिन उनकी कृषि जानकारों को सलाह को ठीक से अपना नहीं रहे.”

यूपी और एमपी को मिलकार करीब 45,032,197 हेक्टेयर कृषि योग्य जमीन बुंदेलखंड में है, इसमें से 24,402,267 हेक्टेयर सिंचित है. सिंचाई के साधनों की कमी और किसानों की कृषि के बारे में कम जानकारी से उत्पादन काफी कम है.

यह चेतावनी है कि आगे इस जमीन पर उत्पादन नहीं होगा

बांदा के प्रगतिशील किसान और बड़ोखर खुर्द गांव में स्थित मानवीय शिक्षा केंद्र के निदेशक प्रेम सिंह (57 साल) बताते हैं, “बुंदेलखंड की मिट्टी में कार्बन यानी ह्मयूस की मात्रा तेजी से कम हो रही है. एक उपजाऊ जमीन में 3 फीसदी कार्बन तत्व होने चाहिए, लेकिन यहां कहीं-कहीं पर 0.3 तक पहुंच गए हैं. ये अल्टीमेटम है कि आगे इस जमीन पर कोई उत्पादन नहीं होगा. रासायनिक खादों और कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग और वन अच्छादन कम होने से ये समस्या आई है.”

आर्थिक तंगी भी जिम्मेदार

जमीन की घटती उत्पादकता कुछ हद तक किसान या फिर कहें उनकी आर्थिक तंगी जिम्मेदार है. 2001 के बाद पड़े सूखे के बाद किसानों ने दलहनी फसलों की खेती छोड़कर गेहूं उगाना शुरू किया, लेकिन उसके अनुपात में खेतों के लिए खाद का इंतजाम नहीं किया. ढैंचा जैसी हरी खादें किसानों के लिए दूर की कौड़ी हैं.

बुंदेलखंड सीरीज के दौरान महोबा में मिले कबरई के निवासी पंकज सिंह बताते हैं, “पहले बुंदेलखंड में खेत में मेढ़ और मेढ़ पर पेड़ का चलन था. अब वैसी मेढ़े ही नहीं रहीं. बारिश के दौरान खेत की उपजाउ मिट्टी बह जाती है. और पेड़ हैं नहीं तो खाद उनकी पत्तियां भी गिरकर खाद बनेगी इसका इंतजाम नहीं रहा.”

देश-दुनिया के कृषि वैज्ञानिक चिंतित

कृषि योग्य भूमि के लगातार बंजर होने से देश-दुनिया के कृषि वैज्ञानिक चिंतित हैं. भारत के कई राज्यों में इस स्थिति से निबटने के लिए युद्धस्तर पर काम हो रहा है. कई राज्यों ने बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने की दिशा में कुछ हद तक सफलता भी हासिल की है.

(ये स्‍टोरी गांव कनेक्‍शन वेबसाइट से ली गई है.)

ये भी पढ़ें- UP: इस गांव में सभी करते हैं मशरूम की खेती, कमाई होती है जबरदस्‍त

[ गणतंत्र दिवस से पहले आपके दिमाग में देश को लेकर कई बातें चल रही होंगी. आपके सामने है एक बढ़ि‍या मौका. चुप मत बैठिए, मोबाइल उठाइए और भारत के नाम लिख डालिए एक लेटर. आप अपनी आवाज भी रिकॉर्ड कर सकते हैं. अपनी चिट्ठी lettertoindia@thequint.com पर भेजें. आपकी बात देश तक जरूर पहुंचेगी ]

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 25 Jan 2018,06:39 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT