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भारत सरकार ने कोरोना वायरस के B.1.617 वैरिएंट को इंडियन वैरिएंट संबोधित करने पर आपत्ति जताई है और तमाम सोशल मीडिया साइट्स को "इंडियन वैरिएंट" नाम के साथ प्रकाशित की गईं पोस्ट को हटाने का निर्देश दिया है.
सरकार के इस फैसले पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आईं हैं. पहले से भी वैरिएंट के नामकरण पर विवाद जारी था.
स्ट्रेटजिक एक्सपर्ट, थिंकर और ऑथर ब्रह्मा चेलानी ने लिखा, "इंडियन वैरिएंट" टर्म को भारतीय मीडिया ने बनाया और धोखा देने वाली "डबल म्यूटेंट" टर्म को इंडियन जीनोमिक्स रिसर्चर्स ने (सभी वैरिएंट में एक दर्जन से ज्यादा म्यूटेशन होते हैं). कई हफ्ते बाद, अचानक आज भारत सरकार जागती है! सिंगापुर द्वारा तुरंत लिए गए एक्शन के साथ इसका विरोधाभास है.
समाजशास्त्री सूर्यकांत वाघमरे ने भी सरकार के फैसले पर चुटकी ली. उन्होंने लिखा, "सरकार कहती है कि B.1.617 को इंडियन वैरिएंट नहीं कहा जा सकता. सही है... सिर्फ जाति और हिंदू ही इंडियन वैरिएंट हैं."
फिल्मकार हंसल मेहता ने लिखा, "क्या हम एडॉल्फ हिटलर के इंडियन वैरिएंट से छुटकारा पा सकते हैं. यह ट्वीट है."
इस बीच सेक्यूलर इंडियन नाम के यूजर ने लिखा, "यह एक और मौका है जब मोदी सरकार कोरोना वायरस को नियंत्रित करने के लिए कुछ नहीं कर रही है, लेकिन इससे संबंधित खबरों को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है."
मशहूर लेखिका तस्लीमा नसरीन ने सीधे सरकार के फैसले पर प्रतिक्रिया तो नहीं दी. लेकिन उन्होंने बीमारियों के नामकरण को उनके उद्गम के स्थान पर करना सही ठहराया.
इस बीच कई लोगों ने सरकार के फैसले का समर्थन भी किया है. कुछ लोगों का दावा है कि इंडियन वेरिएंट कहना रेसिज्म को बढ़ावा देना है.
ज्यादातर मुद्दों पर सरकार का समर्थन वाली शेफाली वैद्य ने इंडियन वैरिएंट शब्द पर सरकारी आपत्ति और सोशल मीडिया साइट्स को निर्देशों पर लिखा, "इस कदम का स्वागत किया जाता है. लेकिन पहली बार इस शब्द के प्रयोग पर ऐसा कर दिया जाना चाहिए था. देखिए सिंगापुर ने कैसे रिएक्ट किया."
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