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भारतीय रेल पहली बार अल्युमीनियम से बने 15 ट्रेनसेट, यानी रेल डिब्बों की सीरीज उतार रहा है, जो राजधानी ट्रेन में जोड़े जाएंगे. इससे ट्रेन की स्पीड तो बढ़ेगी ही, साथ ही यात्रियों का सफर और भी ज्यादा आरामदेह होगा. इसे ट्रेन-20 नाम दिया गया है.
अल्युमीनियम के ट्रेनसेट मेट्रो या ईएमयू ट्रेन के डिब्बों की तरह होते हैं, जिन्हें लोकोमोटिव को नहीं खींचना होता है. ये न सिर्फ वजन में हल्के होते हैं, बल्कि एनर्जी भी बचाते हैं. ये डिब्बे 160 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से चल सकते हैं और इनमें ऑटोमेटिक डोर प्रणाली लगी होती है. इनमें बैठने और सोने, दोनों तरह के बर्थ होते हैं.
सफर को और सुखमय बनाने के लिए सभी डिब्बों में वाई-फाई, इंफोटेनमेंट और जीपीएस आधारित सिस्टम लगा होगा, ताकि यात्रियों को सफर के बारे में पूरी जानकारी मिलती रहे.
ट्रेनसेट में भव्य इंटीरियर और एलइडी लाइटिंग का इस्तेमाल किया जाएगा और शौचालयों में जीरो-डिस्चार्ज वैक्यूम आधारित बायो टॉयलेट और टच-फ्री फिटिंग लगे होंगे.
इन अल्युमीनियम के ट्रेनसेट की अनुमानित लागत 2,500 करोड़ रुपये है. इनका निर्माण चेन्नई के पास स्थित रेलवे की इंट्रेगेटेड कोच फैक्ट्री (आईसीएफ) में किया जाएगा. आईसीएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया:
टेंडर की शर्तों के मुताबिक, 20 कोचों का पहला ट्रेनसेट कंपनी अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में तैयार कर आईसीएफ को भेजेगी. जिसे टेंडर मिलेगा, वो कंपनी दूसरे ट्रेनसेट और उसके बाद से सभी ट्रेनसेट के पुर्जे, इलेक्ट्रॉनिक्स, फर्निशिंग मटीरियल आईसीएफ को भेजेगी.
ट्रेन की बॉडी, बोगी, पेंटिंग और फर्निशिंग का काम आईसीएफ में किया जाएगा. निर्माताओं को एक विकल्प और दिया गया है कि 10 ट्रेनसेट का अपने यूनिट में निर्माण करें और उसे आईसीएफ को भेज दें. हालांकि आखिरी चार ट्रेन सेट और स्पेयर कोचों को पूरी तरह आईसीएफ में ही असेंबल करना होगा.
ट्रेन सेट में कई कोच होते हैं, जिसके आगे और पीछे के कोच में ड्राइविंग केबिन होता है. ट्रैकसन ऊर्जा को पूरी ट्रेन में समान रूप से भेज दिया जाता है. इससे पूरे ट्रेनसेट का एक्सेलरेशन और डीसेलरेशन लोकोमोटिव से जुड़े डिब्बों की तुलना में तेजी से किया जा सकता है.
आईसीएफ को उम्मीद है कि दुनिया के प्रमुख कोच निर्माता इस टेंडर प्रक्रिया में शामिल होंगे, जिसमें कुल 291 कोचों की बोली लगाई जाएगी.
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