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एजुकेशन की पोल खोलती ‘असर’ की रिपोर्ट,76% बच्चे नहीं गिन पाते पैसे

‘असर’ की रिपोर्ट के मुताबिक, 50 % ग्रामीण युवा न भाग जानते हैं और न अंग्रेजी 

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रूरल इंडिया में सेंकेडरी स्कूल के छात्रों का भी बुरा हाल
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रूरल इंडिया में सेंकेडरी स्कूल के छात्रों का भी बुरा हाल
(फोटोः Youtube)

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अंग्रेजी आती नहीं, जोड़-घटाने का पता नहीं. यानी इंग्लिश कमजोर और गणित में डब्बा गोल. प्राइमरी स्कूलों की हालत तो पहले ही खराब थी और अब जूनियर का भी हाल कुछ ऐसा ही है. शिक्षा की स्थिति पर सर्वे करने वाली संस्था ‘प्रथम एजुकेशन फांडेशन’ ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट ‘असर’ यानी एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट जारी की है, जोकि वाकई चौंकाने वाली है. रिपोर्ट के मुताबिक, अब तक प्राइमरी स्कूलों के बच्चों नजर आने वाली पढ़ाई की कमजोरी अब बड़े बच्चों यानी जूनियर लेवल (14 से 18 साल) के बच्चों में भी देखी जा रही है. 76 फीसदी बच्चे पैसे तक नहीं गिन पाते.

देश की आबादी में 14-18 साल तक के बच्चों की संख्या करीब 10 फीसदी है, जिनकी प्रोडक्टिविटी का सीधा असर इकॉनोमी के रूप में भारत की प्रतिस्पर्धा पर होता है. इतना ही नहीं, यह आने वाली सरकारों के लिए एक राजनीतिक चुनौती भी पेश करता है क्योंकि बेरोजगार युवाओं की बढ़ती संख्या में बढ़ती जाती है और उन्हें आसानी से नौकरी नहीं मिल सकती.

अंग्रेजी तो अंग्रेजी, अपनी भाषा में भी कमजोर

14-18 आयु वर्ग के बच्चों में दो में से एक बच्चा साधारण भाग भी नहीं कर सकता है. रिपोर्ट में कुल 43 फीसदी बच्चे ऐसे पाए गए हैं, जिन्हें भाग देना आता है. इसी तरह 14 साल की उम्र के करीब 47 फीसदी बच्चे ऐसे हैं, जो इंग्लिश के साधारण वाक्य को भी नहीं पढ़ सकते हैं. केवल इंग्लिश नहीं नहीं बल्कि इस आयु वर्ग के 25 फीसदी छात्र ऐसे हैं जो बिना रुके अपनी भाषा भी नहीं पढ़ सकते हैं.

असर की यह रिपोर्ट 24 राज्यों के कुल 28 जिलों में सर्वे के आधार पर तैयार की गई है. इनमें 35 सहभागी संस्थानों के करीब दो हजार स्वयंसेवकों ने 1641 गांवों के 25 हजार से अधिक घरों में सर्वे किया. सर्वे में 14 से 18 आयु वर्ग के तीस हजार से ज्यादा युवा शामिल हुए.
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देश के 28 जिलों में सर्वे कर तैयार की गई रिपोर्ट

प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन की चीफ एग्जीक्यूटिव रुक्मिणी बनर्जी कहती हैं, 'अगर प्राइमरी की तरह सेंकेडरी लेवल के स्टूडेंट्स भी नहीं सीख रहे हैं, तो ये समस्या बड़ी होती जाएगी. इसके पीछे दो कारण हैं. पहला- 14-18 आयुवर्ग के बच्चे कामगारों की श्रेणी में आने को तैयार हैं, जिसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है. दूसरा- इनके परिवार भी इन्हीं के ऊपर निर्भर होंगे.'

इस बार असर की टीमों ने देश के 24 राज्यों के 28 जिलों में सर्वे किया. इस सर्वे में 14-18 आयु वर्ग के स्टूडेंट्स से साधारण या रोजमर्रा की जिंदगी में आने वाले सवाल पूछे गए.

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Published: 17 Jan 2018,02:21 PM IST

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