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केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कश्मीर सरकार द्वारा एक आईपीएस अधिकारी को आईजी पद पर पदोन्नति पर एतराज जताया है. उन पर अखिल भारतीय सेवा नियमों के उल्लंघन के कारण केंद्र सरकार ने कार्रवाई की सिफारिश की थी. इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) की जांच-पड़ताल के बाद अगस्त 2017 में जम्मू कश्मीर सरकार से बसंत रथ के खिलाफ अनुशासनहीनता की कार्रवाई करने को कहा गया था. केंद्र ने राज्य सरकार से इस कार्रवाई की सूचना जल्द से जल्द देने को कहा था.
आईबी की “कथित जांच” दायरे में रथ 2016-17 में आए थे. उनपर आरोप था कि उन्होंने सर्विस कोड के खिलाफ जाकर “द वायर” और “द इंडियन एक्सप्रेस” में लेख लिख सरकारी नीति के खिलाफ खतरनाक आलोचना की थी. इस बारे में राज्य के गृह विभाग ने भी तत्कालीन डीजीपी के. राजेंद्र कुमार से विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी.
इस बारे में गृह विभाग के अवर सचिव मोहम्मद याकूब मलिक ने 12 सितंबर 2016 को पुलिस चीफ को एक पत्र लिखा. पत्र संख्या गृह/पीबी-1/आर नोट/ 2006-03/5939 में अनुरोध था कि वे “व्यवहार अधिनियम की उचित धारा के तहत एक प्रस्ताव भेजें जिसमें अधिकारी बसंत रथ की उन गतिविधियों का सम्पूर्ण ब्यौरा हो जिसके तहत वे राज्य तंत्र/सरकार के खिलाफ ट्रेड यूनियनवाद करते हैं और समाज में घृणा फैलाते हैं”.
हालांकि अभी तक यह साफ नहीं हुआ है कि राजेंद्र के उत्तराधिकारी और वर्तमान डीजीपी डॉ शेष पॉल वैद ने यह विस्तृत रिपोर्ट पेश की है कि नहीं.
(द क्विंट के पास उपलब्ध) जम्मू-कश्मीर सरकार के मुख्य सचिव को संबोधित एक पत्र में केंद्रीय गृह मंत्रालय के अवर सचिव मुकेश साहनी ने 29 अगस्त 2017 को लिखा,
“जांच रिपोर्ट के मुताबिक श्री बसंत कुमार रथ ने इस साल कुल 12 आपत्तिजनक कॉलम लिखे (10 द वायर के लिए और 2 द इंडियन एक्सप्रेस के लिए). इन लेखों की सावधानी से जांच के बाद पता चलता है कि श्री बसंत कुमार रथ अपने कर्तव्यों के पालन और निष्ठता में पूरी तरह असफल हुए हैं. सरकारी मुलाजिम होते हुए भी वे व्यक्तिगत हैसियत से न केवल मीडिया से मिलते-जुलते रहे हैं बल्कि सरकार की हालिया नीतियों की गंभीर आलोचना भी की है. उन्होंने अखिल भारतीय सेवा (व्यवहार) धारा, 1968 की धारा 3 (1), धारा 6 और धारा 7 का उल्लंघन किया है”.
अंतिम अनुच्छेद में गृह मंत्रालय के अधिकारी ने लिखा,
आईजीपी, ट्रैफिक पद संभालने के तुरंत बाद रथ ने तेज-तर्रार अंदाज में एक चेतावनी जारी की. फेसबुक पर जारी चेतावनी में हेलमेट की तुलना कंडोम से करते हुए दुर्घटना से बचने के लिए आम लोगों खास कर पुलिस अधिकारियों और बाइक सवारों से इसे पहनने का अनुरोध किया गया था.
हाल में रथ ने सेना के एक अधिकारी की कार जब्त की. संयोग से वह दो ऐसे वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों का बेटा और दामाद निकला जो पहले जम्मू-कश्मीर में ही ट्रैफिक आईजीपी पद पर काम कर चुके थे. इसके बाद दोनों, रथ और सैन्य अधिकारी, ने एक दूसरे के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया.
एक अन्य घटनाक्रम में कांग्रेस के एक विधायक उस्मान मजीद ने एक वीडियो में आरोप लगाया कि ट्रैफिक आईजीपी गुंडा-मवाली के माफिक काम कर रहे हैं. उन्होंने रथ के कंडोम वाली चेतावनी पर भी सवाल खड़ा किया और कहा कि उनका फेसबुक पोस्ट शरारती और अश्लील है.
रथ पर मुख्यमंत्री के मीडिया एनालिस्ट जावेद ट्राली के साथ भी बदतमीजी का आरोप है. जावेद के मुताबिक,
मूल रूप से उड़ीसा के निवासी रथ जवाहरलाल यूनिवर्सिटी से पढ़े-लिखे हैं. उनकी रूचि कविता में है. उनकी अंग्रेजी कविताओं का पहला संग्रह “मुझे अपनाओं, श्रीनगर” 2012 में आया.
दिवंगत कश्मीरी-अमेरिकी कवि आगा शाहिद अली से प्रभावित रथ ने अपनी पहली कविता “पिंडी, पिंडी, पिंडी” लिखी थी. इसमें 1989 में कश्मीर की आजादी के लिए एलओसी फांद कर हथियारों की ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान जाने वाले हजारों कश्मीरी युवाओं की गाथा है.
पिंडी, पिंडी, पिंडी
मैं 1989 हूं और अनुभवी भी
रात भर नाप सकता हूं
अपरिचित वन-प्रांत
जाने-पहचाने पर्वत
रेशम कीड़ों के नीचे
नहीं है जल
न ही है कोई कैंडी रैपर
बीड़ी भी नहीं पी सकता, न ही खांस सकता हूं
विवाह-गीतों की प्रतिध्वनियां भी नहीं
नींद से अधमूदी आंखें
रात के अंधेरे को चीरती प्रकाश यंत्रों के घेरे में
दूर कही है लाइट मशीन गन
गवकादल
तुम सात हैरान-परेशान सिपाही
आये हो आठ मृत लाशों को उठाने
क्रोधित पर असहाय, मददगार पर बदकिस्मत
वे ट्रक पर लाद, चले गए
पुलिस कंट्रोल रूम
रथ की प्रशंसा और निंदा में जम्मू-कश्मीर के फेसबुक और व्हाट्सअप ग्रुप भरे परे हैं. उनके पोस्ट और उनके काम के स्टाइल के आधार पर कुछ लोग उन्हें कर्तव्यनिष्ठ व उच्च नैतिकता के प्रतीक के रूप में देख रहे हैं तो कुछ उन्हें सिरफिरे करार दे रहे हैं. लोग उनके ट्रैफि अधिकारी के रूप में नियुक्ति पर भी सवाल उठा रहे हैं.
घाटी के विवादित सियासी मुद्दों पर रथ लगातार लिखते रहे हैं. उन्होंने कश्मीर के तथाकथित सामूहिक कब्रों पर लिखा है और 1990 में सीआरपीएफ के हाथों 50 से ज्यादा मारे गए प्रदर्शनकारियों के बारे में भी सवाल उठाया है. कुछ टिप्पणीकारों ने तो रथ को “राष्ट्र विरोधी”, “आज़ादी के पक्षधर”, “कश्मीर के पक्षकार”, “विद्रोही” और “धोखेबाज़” तक करार दिया है. पर रथ पर ऐसी किसी बात का कोई प्रभाव नहीं दिखता. बल्कि इंडियन एक्सप्रेस में लिखे एक लेख में तो उन्होंने अर्नब गोस्वामी की जबरदस्त आलोचना की थी. आईबी की जांच के बाद भी रथ ने “द वायर” के लिए बगैर सरकारी अनुमति के दर्जन भर से ज्यादा लेख लिखे हैं. वे अब भी ऑनलाइन पोर्टल के लिए लिख रहे हैं.
उधर, अपनी रिपोर्ट में आईबी ने रथ के लेखों से जम्मू- कश्मीर पुलिस और सैन्य बलों के मनोबल पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों की चेतावनी दी है.
गृह मंत्रालय से संवाद के मामले में राज्य सरकार खामोश है. इस बीच 8 फरवरी, 2018 को राज्य सरकार ने चुपचाप रथ को डीआईजी से पदोन्नत कर आईजीपी ट्रैफिक बना दिया. अगर सरकार के एक उच्च सूत्रों पर विश्वास करे तो मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की अध्यक्षता में हुई जिस कैबिनेट बैठक में रथ को पदोन्नत करने का फैसला हुआ उसमें पहले से यह विषय शामिल नहीं था.
सूत्रों के मुताबिक बीजेपी के नेता और उप मुख्यमंत्री डॉ निर्मल सिंह और एक आईपीएस अधिकारी अलग से मुख्यमंत्री से मिले और रथ को आईजीपी, ट्रैफिक बनाने का सुझाव दिया. “द क्विंट” के पास उपलब्ध डॉक्यूमेंट से पता चलता है कि इस मामले में मुख्यमंत्री को अन्धकार में रखा गया. उन्हें रथ के खिलाफ आरोपों की जानकारी नहीं दी गई. हालांकि इस बारे में समिति के सदस्यों की राय नहीं मिला.
गृह मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि इस बारे में राज्य सरकार ने नार्थ ब्लाक से कोई सूचना साझा नहीं की है और न ही अबतक रथ पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई की है. समझा जाता है कि गृह मंत्रालय राज्य सरकार से रथ के रैंक प्रमोशन के बारे में पूछताछ करेगी.
इस बारे में रथ ने “द क्विंट” के किसी फोन और संवाद का जवाब नहीं दिया.
(लेखक श्रीनगर के पत्रकार हैं. इनसे @ahmedalifayyazपर संपर्क किया जा सकता है.)
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