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भारतीय रेलवे की सहायक कंपनी IRCTC ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत यह बताने से साफ इनकार कर दिया है कि तेजस ट्रेनें चलाने से उसे कितनी कमाई हो रही है. वहीं इस मामले में पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त ने कहा है कि कोई सरकारी उपक्रम ऐसी सूचना देने से इनकार नहीं कर सकता है.
इस मामले में मांगी गयी जानकारी साझा नहीं किये जाने के पीछे IRCTC की दलील है कि, ये सूचना कंपनी के ट्रेड सीक्रेट से जुड़ी होने के चलते खुलासे के दायरे से कानूनन बाहर है. हालांकि, देश के एक पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त ने मामले में प्रावधानों संबंधी सवाल उठाते हुए IRCTC के रुख को अनुचित ठहराया है.
मध्य प्रदेश के नीमच के RTI कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने बताया कि उन्होंने 13 दिसंबर 2019 को IRCTC को सूचना के अधिकार के तहत अर्जी भेजकर जानना चाहा था कि रेल मंत्रालय के तहत आने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के इस उपक्रम को तेजस ट्रेनें चलाने से कुल कितना राजस्व प्राप्त हुआ है और इस परिचालन से उसे कितना शुद्ध मुनाफा या घाटा हुआ है? उन्होंने आगे कहा
आरटीआई कार्यकर्ता ने बताया कि IRCTC के इस जवाब को चुनौती देते हुए उन्होंने इसके खिलाफ अपील दायर की थी. लेकिन उन्हें जानकर गहरा धक्का लगा, जब IRCTC के एक प्रथम अपील अधिकारी ने 11 फरवरी को दिये गये आदेश में सीपीआईओ के जवाब को सही ठहराया और उनकी अपील खारिज कर दी.
प्रथम अपील अधिकारी ने कहा, "यह सूचित किया जाता है कि आपके (गौड़) द्वारा मांगी गयी जानकारी उपलब्ध नहीं करायी जा सकती, क्योंकि यह कम्पनी (IRCTC) के आंतरिक दस्तावेजों से जुड़ी है जिनमें वाणिज्यिक ब्योरे और व्यापार गोपनीयता (ट्रेड सीक्रेट) शामिल हैं. वर्ष 2005 के आरटीआई अधिनियम के तहत इस सूचना के खुलासे से छूट प्राप्त है."
इस बीच, देश के पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने कहा, 'पहले तो IRCTC को स्पष्ट करना चाहिये था कि तेजस ट्रेनों के परिचालन से मिलने वाले राजस्व की जानकारी आरटीआई अधिनियम के किन प्रावधानों के तहत नहीं दी जा सकती. लेकिन उसने यह जानकारी देने से लगातार दो बार इंकार करते वक्त इन प्रावधानों का जिक्र ही नहीं किया.' गांधी ने आगे कहा
पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त ने यह भी कहा की सरकारी क्षेत्र का कोई भी उपक्रम केवल यह कहते हुए आरटीआई आवेदक को जानकारी देने से इंकार नहीं कर सकता कि मांगी गयी सूचना उसके किसी "आंतरिक मामले" से जुड़ी है. सभी सरकारी उपक्रमों को आरटीआई के तहत सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) की परियोजनाओं की जानकारी भी साझा करनी चाहिये, क्योंकि इनमें करदाताओं का भी पैसा लगा होता है.
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