क्या #DelhiOddEvenLogic सचमुच इतना बुरा आइडिया है?

पब्लिक ट्रांसपोर्ट को मजबूत किया जाए तो काम कर सकता है दिल्ली सरकार का ऑड-ईवन लॉजिक.

द क्विंट
भारत
Updated:
बीजिंग से दोगुना प्रदूषण है दिल्ली की हवा में. (फोटो: <b>द क्विंट</b>)
i
बीजिंग से दोगुना प्रदूषण है दिल्ली की हवा में. (फोटो: द क्विंट)
null

advertisement

दिल्ली की हवा जहरीली है. हम हर सांस के साथ जहर को अपने अंदर उतार रहे है. दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बन चुका है और यहां की हवा में बीजिंग से दो गुना ज्यादा प्रदूषण है.

शहर की इस हालत के बारे में दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि दिल्ली में रहना किसी गैस चेंबर में रहने के बराबर है. हवा का परटिकुलेट मैटर (PM2.5) तय सीमा से 16-20 गुना बढ़ा हुआ है. हाफ मैराथन के समय यह नियत सीमा से 48 गुना ज्यादा बढ़ा हुआ था.

दिल्ली सरकार के हाथों में एक बड़ी जिम्मेदारी है. स्थिति को काबू में लाने के एक प्रयास के तौर पर दिल्ली सरकार ने प्रस्तावित किया कि बीजिंग की तर्ज पर दिल्ली में भी ईवन और ऑड संख्या वाले वाहनों को एक दिन के अंतर पर चलाया जाए.

सोशल मीडिया पर #DelhiOddEvenLogic हैश टैग छाया रहा, पर समर्थन से ज्यादा इस प्रस्ताव को आलोचना ही मिली. पर सवाल यह है कि क्या वाकई यह आईडिया मजाक बनाने लायक है?

दिल्ली के घने स्मोग में दौड़ता एक व्यक्ति. (फोटो: द क्विंट)

लोगों को लगता है कि इस तरीके ने बीजिंग में भले ही काम किया हो पर दिल्ली में यह काम नहीं कर पाएगा. चीन की राजधानी का पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम बहुत व्यापक और मजबूत है. और अगर नया प्रस्ताव लागू होता है तो इसकी वजह से पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल शुरू करने पर मजबूर होने वाली जनता को संभालने की ताकत दिल्ली के पास नहीं है.

मेट्रो कारगर साबित हो सकती है पर इस पर अभी काम चल रहा है. शहर के सभी हिस्से अभी पूरी तरह एक दूसरे से जुड़े नहीं हैं. झटका खाते हुए चलने वाले ऑटोरिक्शा, निजी वाहनों की जगह नहीं ले सकते.

पर इस सारी परेशानी को जानते हुए भी, यह साफ है कि आईडिया उतना बुरा नहीं कि इसका मजाक बनाया जाए. अगर इसे सावधानीपूर्वक इसे लागू किया गया तो इसमें कोई शक नहीं कि सड़कों पर कारों की संख्या काफी कम हो जाएगी.

इस योजना को कई देशों के कई शहरों में लागू किया जा चुका है और हर जगह सफलता का प्रतिशत अलग-अलग रहा है. इसे सफल बनाने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी पब्लिक ट्रांसपोर्ट की होगी. इसलिए उसमें सुधार सबसे जरूरी है.

बजाए पहले ही इस योजना को एक खोई हुई बाजी के तौर पर उतारने के अगर दिल्ली के पर्यावरण को बचाने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम में सुधार किये जाएं तो वाकई शहर की सड़कों पर कारों की संख्या में कमी देखी जा सकती है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 08 Dec 2015,08:42 AM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT