advertisement
7 मार्च, मंगलवार की रात लखनऊ के ठाकुरगंज इलाके में यूपी एटीएस की टीम ने आतंकी सैफुल्लाह को मुठभेड़ में ढेर कर दिया. इस आतंकी के ठिकाने से इस्लामिक स्टेट का झंडा बरामद होने और भोपाल-उज्जैन पैसेंजर ट्रेन में इस्लामिक स्टेट से संबंधित पर्चा मिलने के बाद देश में आईएस की दस्तक को लेकर चर्चाएं तेज हैं.
हालांकि यूपी पुलिस के एडीजी दलजीत चौधरी ने आतंकी के खात्मे के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्पष्ट तौर पर कहा कि सैफुल्लाह के इस्लामिक स्टेट से जुड़े होने को लेकर कोई सबूत नहीं मिले हैं.
‘फ्रीलांस आतंकी’ वो होते हैं जो न तो किसी आतंकी संगठन से संबंध रखते हैं, न ही उन्हें किसी आतंकी संगठन से कोई फंडिंग मिलती है. दरअसल, कुछ युवाओं को धर्म के नाम पर इस हद तक भड़काया जाता है कि वह खुद ही दहशत फैलाने को तैयार हो जाते हैं.
एनआईए ने पिछले साल मार्च महीने में देश के अलग-अलग हिस्सों से 24 संदिग्धों को आतंकी संगठन आईएस से संबंध रखने के शक में गिरफ्तार किया था.
संदिग्धों में एक ही बात कॉमन थी कि ये सभी सोशल मीडिया के जरिए आईएस की विचारधारा से प्रभावित हुए थे. और इसी विचारधारा से प्रभावित होकर वह फ्रीलांस आतंकी बन गए थे, जिनका न तो किसी आतंकी संगठन से कोई सीधा संबंध था, न ही उन्हें कहीं से फंडिंग होती थी.
जांच एजेंसियों की मानें, तो हाल ही में कानपुर, उन्नाव, इटावा से गिरफ्तार किए गए और लखनऊ में मारा गया सैफुल्ला, सभी अपने आप ही सोशल मीडिया के जरिए आईएस की विचारधारा से प्रभावित हुए थे.
जांच एजेंसियों के मुताबिक, आईएसआईएस अपना प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए विभिन्न इंटरनेट आधारित प्लेटफार्मों का उपयोग कर रहा है. फेसबुक और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और ब्लॉग्स के जरिए वह अपनी विचारधारा का प्रचार करता है.
आईएस ई मैग्जीन और ब्लॉग्स के जरिए अपनी विचारधारा फैलाता है. साथ ही मुसलमानों पर जुल्म वाले कई वीडियोज भी यूट्यूब पर मौजूद हैं, जिनसे युवाओं की मानसिकता पर बड़ा असर पड़ता है.
हाल ही में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें युवा सोशल मीडिया के जरिए सेल्फ रेडिक्लाइज्ड हुए हैं. ऐसे मामलों में युवा सोशल मीडिया और कई वेबसाइट्स पर मौजूद भड़काऊ साहित्य को पढ़ते हैं और उनसे संबंधित वीडियो देखते हैं. फिर उसी तरह की विचारधारा के प्रभाव में आ जाते हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स और जांच एजेंसियों के मुताबिक, आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के प्रति अपनी वफादारी दिखाने वाले कई स्लीपर सेल भारत में मौजूद हैं. ये स्लीपर सेल ही सोशल मीडिया पर ऐसे अकाउंट्स की स्कैनिंग करते हैं, जो कट्टरवादी धार्मिक विचारधारा में विश्वास रखते हैं.
आतंक की पौध उगाने वाले स्लीपर सेल्स ऐसे ही युवाओं को चुनते हैं. धर्म से अत्यधिक जुड़ाव रखने वाले या फिर दूसरे धर्म से खुद के धर्म को खतरा होने की बात को स्वीकार करने वाले ही इस्लामिक स्टेट के स्लीपर सेल्स का निशाना बनते हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)