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चंद्रयान-2 के लैंडर ‘विक्रम’ से भले ही जमीनी संपर्क टूट गया है, लेकिन ये मिशन अभी खत्म नहीं हुआ है. इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) के वैज्ञानिक लगातार इस मिशन पर नजर रखे हुए हैं. वो अब भी लैंडर से संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं.
इसरो के मुताबिक, चांद पर लैंडर की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ नहीं हो पाई, लेकिन ‘हार्ड लैंडिंग’ के बावजूद लैंडर सही सलामत है. इससे पहले इसरो ने बताया था कि चांद के चारों ओर चक्कर लगा रहे ऑर्बिटर ने लैंडर की लोकेशन का पता लगा लिया है. ऑर्बिटर ने इसकी थर्मल इमेज भी क्लिक की है. हालांकि, अभी तक इससे संपर्क नहीं हो सका है.
6 और 7 सितंबर की दरम्यानी रात करीब 1:37 बजे लैंडर 'विक्रम' के चांद के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में सॉफ्ट लैंडिंग के लिए प्रोसेज शुरू हुआ. सॉफ्ट लैंडिंग' में लैंडर को आराम से धीरे-धीरे सतह पर उतारा जाता है, ताकि लैंडर, रोवर और उनके साथ लगे उपकरण सुरक्षित रहें. ‘रफ ब्रेकिंग फेज’ और ‘फाइन ब्रेकिंग फेज’ के जरिए इसकी स्पीड कम की जानी थी, ताकि यह आसानी से सॉफ्ट लैंडिंग कर सके.
ISRO के मुताबिक, 'रफ ब्रेकिंग फेज' सफल रहा. मगर जब 1471 किलो वजनी 'विक्रम' चांद की सतह से महज 2.1 किमी की दूरी पर था, इसका संपर्क इसरो से टूट गया.
इसरो के मुताबिक, लैंडर पूरी तरह से ऑटोमैटिक था. उसे इसरो से कोई निर्देश नहीं मिलना था, खुद ही जगह ढूंढकर चांद पर लैंड करना था. धरती से चांद की करीब 3.84 लाख किमी दूरी है. अगर इसरो लैंडिंग के निर्देश देता, तो निर्देश पहुंचने में समय लगता. ऐसे में लैंडर को ऑटो मोड सेट किया गया था. ऐसी आशंका जताई जा रही है कि आखिरी पलों में स्पीड ज्यादा होने की वजह से लैंडर तेजी से चांद की सतह से टकराया. इसी वजह से लैंडर से संपर्क टूट गया. हालांकि, इसरो का कहना है कि लैंडर टूटा नहीं है, ये अभी एक पीस में है. ये टेढ़ी स्थिति में चांद की सतह पर पड़ा हुआ है.
तय योजना के मुताबिक, अगर लैंडर की चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग होती, तो फिर उसके अंदर से 27 किलोग्राम का 6 पहियों वाला रोवर 'प्रज्ञान' बाहर निकलता. ये एक चंद्र दिन यानी कि 14 दिनों तक चांद पर खोज करता. ये 14 दिनों तक चांद की सतह की तस्वीरें लेता और विश्लेषण के लिए आंकड़े जुटाता. फिर लैंडर और ऑर्बिटर के जरिए इसरो को तस्वीरें भेजता.
इसरो की ओर से रोवर पर कोई बयान नहीं दिया गया है. ऐसे में रोवर की स्थिति क्या है इस पर कुछ नहीं कहा जा सकता है.
2 सितंबर को चांद की पांचवीं और आखिरी कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश करने के बाद ऑर्बिटर, लैंडर विक्रम से अलग हो गया. ये करीब-करीब 100 किलोमीटर की ऊंचाई से चांद की परिक्रमा कर रहा है. ऑर्बिटर का काम चांद के रहस्य को समझने, अहम डेटा जुटाने और हाई रिजॉल्यूशन तस्वीरें भेजना है. साथ ही ऑर्बिटर के जरिए ही लैंडर से संपर्क साधा जा सकता है. इसके जीवनकाल का एक साल का अनुमान लगाया था.
लेकिन हाल ही में इसरो चीफ के. सिवन ने कहा कि चांद के चक्कर लगा रहे ऑर्बिटर में एक्स्ट्रा फ्यूल है, जिससे उसकी लाइफ साढ़े सात साल तक हो सकती है.
इसरो चीफ ने कहा है कि मिशन चंद्रयान-2, 90 से 95 फीसदी तक सफल हुआ है. तय योजना के मुताबिक, 7 सितंबर की तड़के लैंडर के लैंड करने के बाद अगले 14 दिन तक चांद पर अहम डेटा जुटाना था. इसमें तीन दिन बीत चुके हैं. इसरो के पास अभी करीब 11 दिन हैं, जो सबसे अहम हैं. अगर इस बीच लैंडर से संपर्क हो जाता है, तो रोवर से भी संपर्क होने की संभावना है. इसके बाद इसरो चांद की परिक्रमा कर रहे ऑर्बिटर के जरिए ही रिसर्च डेटा इकट्ठा कर सकता है.
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