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गाय के पेट जैसी ये ‘काऊ मशीन’ सिर्फ 7 दिन में बनाएगी जैविक खाद

इस मशीन में रोज 100 किलो खरपतवार डालेंगे, तो अगले सात दिनों के बाद से रोजाना 100 किलो खाद मिलनी शुरू हो जाएगी.

गांव कनेक्‍शन
भारत
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यह मशीन सात दिन में जैविक खाद को तैयार कर देती है
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यह मशीन सात दिन में जैविक खाद को तैयार कर देती है
(फोटो: गांव कनेक्शन)

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भारतीय पशु अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) के वैज्ञानिकों और इंडियन इंस्‍टीट्यूट ऑफ टेक्‍नोलॉजी (आईआईटी) रुड़की ने साथ मिलकर मेकेनिकल काऊ कंपोस्टिंग मशीन तैयार की है. यह मशीन सात दिन में जैविक खाद को तैयार करेगी.

अभी खाद तैयार करने में किसानों को एक साल का समय लग जाता है, जो कि बहुत लंबा समय है. इस समय को कम करने के लिए आईआईटी रुड़की की मदद ली गई और मशीन गाय को तैयार किया गया. यह कंपोस्टिंग मशीन सात दिन में खाद तैयार कर देती है.

जमीन के स्वास्थ्य को सुधारने के लिए ऐसी तकनीक की जरूरत थी. इस मशीन को 2014 में तैयार किया गया था, तब से इस मशीन को और बेहतर बनाने पर काम चल रहा है.
डॉ. रणवीर सिंह, आईवीआरआई के पशु आनुवांशिकी विभाग के प्रधान वैज्ञानिक

इससे पहले जैविक खाद की प्रकिया को 40 दिन में पूरा करने के लिए आईवीआरआई ने जयगोपाल वर्मीकल्चर तकनीक को विकसित किया था. इससे भी तेजी से खाद तैयार किया जाए इसके लिए वैज्ञानिकों ने मेकेनिकल काउ कंपोस्टिंग मशीन को विकसित किया. इस मशीन में रोज 100 किलो खर-पतवार डालेंगे, तो अगले सात दिनों के बाद से रोजाना 100 किलो खाद मिलनी शुरू हो जाएगी.

खाद बनाने वाली मशीन का डेमो देते वैज्ञानिक(फोटो: गांव कनेक्शन)

मशीन के बारे में जानकारी देते हुए डॉ सिंह बताते हैं, "इस मशीन की संरचना गाय के पेट की तरह है. जिस तरह गाय के पेट में कई भाग होते हैं उसी तरह से मैकेनिकल काऊ कंपोस्टिंग मशीन के रोटरी ड्रम (बायो डायजस्टर) में भी कई चरणों के बाद खाद बनती है. गाय के पेट में सूक्ष्मजीवी होते हैं, वैसे इस मशीन से खाद बनाने से पहले सूक्ष्मजीवी विकसित करने पड़ते हैं, जिसके 40 से 50 दिनों का समय लगता है. इन सूक्ष्मजीवों के विकास के बाद इसमें खर-पतवार, सब्जियों के कचरे डाले जाता हैं."

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अपनी बात को जारी रखते हुए डॉ. रणवीर बताते हैं, "जैसे गाय चबाती हैं वैसे ही खरपतवार को मशीन में डालने से पहले उसके छोटे-छोटे टुकड़े किए जाते है, ताकि खाद को बनने में दिक्कत न हो. खरपतवार के साथ ही मशीन में बीच बीच में गोबर, कूड़े, कचरे और पत्तियों को मिक्स कर उस पर सूक्ष्मजीवियों का घोल डाला जाता है. मशीन के रोटरी ड्रम को दिन में एक घंटे घुमाया जाता है, ताकि कूड़ा-कचरा ऑक्सीजन और सूक्ष्मजीवों के संपर्क में आ जाए. इस मशीन में ऑक्सीजन भी डाली जाती है."

सिर्फ 7 दिन में बनेगी खाद(फोटो: गांव कनेक्शन)

यह मशीन एक कोण पर झुकी होती है. आगे से खरपतवार डाली जाती है और पीछे से खाद निकलती है. इस मशीन से तैयार खाद की खासियत यह है कि इसको कम जगह में रखा जा सकता है और इसमें बदबू भी नहीं आती है. इस निकली खाद में कुल नाइट्रोजन 2.6 फीसदी और फास्फोरस 6 ग्राम प्रति किलो होता है.

इस मशीन में लगी लागत के बारे में डॉ. सिंह बताते हैं, "आईआईटी रुड़की ने इस पूरी मशीन को तैयार किया है. इसको बनाने में पांच लाख रुपए की लागत आई है, क्योंकि यह पूरी लोहे की है. वेस्ट मेनेजमेंट के लिए यह मशीन काफी कारगार सिद्ध होगी. समूह बनाकर इस शहर की बड़ी कलोनियों में लगाया जा सकता है. किसान इस मशीन को छोटे रूप में तैयार करके जल्दी खाद प्राप्त कर सकते हैं."

इस मशीन की जानकारी के लिए बरेली के इज्जतनगर स्थित भारतीय पशु अनुंसधान संस्थान में संपर्क कर सकते है. (0581-2311111)

(दिति बाजपेयी की ये रिपोर्ट गांव कनेक्शन से ली गई है.)

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Published: 24 Apr 2018,07:39 PM IST

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