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भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच बातचीत हुई है. गुरुवार 25 फरवरी को दोनों के बीच 75 मिनट तक फोन पर बात हुई. इस वार्ता में पूर्वी लद्दाख में LAC की स्थिति और भारत-चीन के बीच अन्य मुद्दों पर चर्चा हुई.
भारतीय विदेश मंत्रालय ने बयान जारी करते हुए कहा कि“विदेश मंत्री ने चीन के फॉरेन मिनिस्टर से बातचीत में मास्को में सितंबर 2020 में हुई मीटिंग का हवाला देते हुए चीन के उकसावे वाले व्यवहार और एकतरफा कोशिशों से यथास्थिति बदलने पर चिंता जाहिर की.”
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यह भी कहा कि “पिछले साल कई बार दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्ते गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं. एस जयशंकर ने कहा कि सीमा विवाद को हल करने में समय लग सकता है, लेकिन हिंसा और अशांति से दोनों देशों के रिश्ते प्रभावित होंगे.”
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पैंगोंग झील में डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया पूर्ण होने पर भी बात की, साथ ही पूर्वी लद्दाख में LAC पर जारी अन्य मुद्दों को जल्द से जल्द हल करने की जरुरत पर जोर दिया.
इससे पहले गुरुवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस बातचीत को लेकर ट्वीट किया था, जिसमें कहा था कि “हम ने मास्को एग्रीमेंट को लागू करने और डिसइंगेजमेंट की स्थिति की समीक्षा पर बात की.”
भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद सुलझाने के लिए अब तक 10वें दौर की वार्ता हो चुकी है. 10वें दौर की सैन्य वार्ता 20 फरवरी को हुई, जो कि करीब 16 घंटे तक चली.
दोनों देशों की बीच हुई इन वार्ता को लेकर रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि, “भारत और चीन के बीच हुई बातचीत सकारात्मक रही, जिसमें पैंगोंग झील के इलाके से सफलतापूर्वक डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया को पूर्ण किया गया.”
द क्विंट के पास सेना के सूत्रों के हवाले से मिली तस्वीर और वीडियो में, भारत और चीन के टैंकों, सैन्य संरचना और सैनिकों को पीछे हटते हुए देखा जा सकता है. जिसकी सहमति 9वें दौर की सैन्य कमांडर लेवल की वार्ता में बनी थी.
अप्रैल 2020 से दोनों देशों के बीच पूर्वी लद्दाख में सीमा विवाद को लेकर कूटनीतिक और सैन्य वार्ताओं का दौर जारी है. LAC पर विवाद उस वक्त बढ़ गया था जब पिछले साल जून में गलवान घाटी में हुई सैन्य झड़प में भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे.
इससे पहले फरवरी में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में कहा था कि “एक समझौते के तहत दोनों देश पैंगोंग क्षेत्र से डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया के लिए तैयार हुए, ताकि दोनों पक्ष आपसी तालमेल और समझ के साथ सैनिकों की तैनाती को कम कर सके.”
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