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तमिलनाडु में जल्लीकट्टू की शुरुआत बुधवार को हो गई है. मदुरै के अवनीपुरम में होने वाले इस त्योहार में 700 सांड हिस्सा ले रहे हैं. जिसे काबू में रखने के लिए 730 लोग मैदान में उतारे गए हैं. जल्लीकट्टू तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों का एक परंपरागत खेल है, जिसे पोंगल त्योहार पर आयोजित किया जाता है. इस दौरान वहां के स्थानीय युवक सांडों को वश में करने की कोशिश करते हैं.
इस खेल के लिए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किये गए हैं. इस पूरे खेल के आयोजन की निगरानी के लिए रिटायर जजों की टीम बनाई गई है. वहां सांड से होने वाले नुकसान के लिये मेडिकल चेकअप का भी इंतजाम किया गया है. 30 सदस्यों की इस मेडिकल टीम में डॉक्टर और नर्सों के अलावा 10 एंबुलेंस भी शामिल हैं. यह टीम सांड और उसे काबू में करने वाले व्यक्ति पर पल-पल की निगरानी रखेगी.
यह खेल हर रोज शाम 4 बजे तक चलेगा. हर घंटे तकरीबन 75 लोग मैदान में उतरेंगे. इस पूरे खेल के आयोजन को सीसीटीवी कैमरे से रिकॉर्डिंग की जाएगी. अवनीपुरम में कानून-व्यवस्था बनी रहे, इसके लिए 1000 पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई है. बता दें, जल्लीकट्टू मामले पर बुधवार को 10 बजे से सुप्रीम कोर्ट में इमरजेंसी सुनवाई होनी है.
जल्लीकट्टू तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों का एक परंपरागत खेल है, जो पोंगल त्योहार पर आयोजित कराया जाता है और जिसमें बैलों से इंसानों की लड़ाई कराई जाती है. जल्लीकट्टू को तमिलनाडु के गौरव और संस्कृति का प्रतीक कहा जाता है. ये 2300 साल पुराना खेल है जो उनकी संस्कृति से जुड़ा है.
ये शब्द सल्लीकट्टू से निकला है. सल्ली का मतलब होता है 'सिक्के' और कट्टू का अर्थ है 'स्ट्रिंग बैग'. इस बैग का इस्तेमाल आज भी दक्षिण भारत के गांव में होता है.
इस खेल को Yaeru Thazhuvuthal भी कहा जाता है, जिसका मतलब है सांड को गले लगाना. इस खेल में एक छोटी सी गली में दोनों तरफ स्टैंड लगाए जाते हैं और गली में जुती हुई मिट्टी होती है. सांड को Vaadivaasal से भगाया जाता है, जहां से प्रतियोगी सांड को कुछ सेकेंड के लिए पकड़ने की कोशिश करते हैं.
अभी सांड को पकड़ने के लिए कम से कम सात सेकेंड का समय तय किया गया है.
पूरे भारत में कृषि परंपराओं के साथ तमिल संस्कृति में गाय, सांड और घरेलू मुर्गी का काफी महत्व है. सांड के ब्रीड में से जो सबसे अच्छा होता है, उसे जल्लीकट्टू खेल के लिए तैयार किया जाता है. एक सांड 8 से 9 सालों में रिटायर हो जाता है.
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