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जम्मू और कश्मीर के डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल (DDC) चुनाव के नतीजे 22 दिसंबर को घोषित किए गए. जम्मू-कश्मीर से राज्य का दर्जा छीने जाने और राज्य को बांटे जाने के बाद हुए इस पहले मुख्य चुनाव में पीपल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन (PAGD) ने बीजेपी पर अच्छी बढ़त बनाई.
PAGD असल में 'मुख्यधारा' की राजनीतिक पार्टियों का एक गठबंधन है. इसमें जम्मू कश्मीर पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, जम्मू एंड कश्मीर पीपल्स कांफ्रेंस, आवामी नेशनल कांफ्रेंस और सीपीएम शामिल हैं. चुनाव इन पार्टियों के लिए बड़ी जीत है क्योंकि पिछले साल आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद से पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला समेत कई नेता लंबे समय तक हिरासत में रहे हैं.
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने नतीजों पर कहा है कि BJP सबसे बड़े राजनीतिक दल के रूप में उभरी है. ये सारी पार्टियां अपने आप को गठबंधन कहें लेकिन कागजों पर इन पार्टियों ने अपने नाम से चुनाव लड़ा, चाहे वह कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस या फिर PDP हो। BJP ने पूरे J&K में अपनी उपस्थिति और स्वीकृति दर्ज कराई.
वहीं पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती का कहना है कि नतीजों में जम्मू-कश्मीर के लोगों ने PAGD पर पूरा भरोसा जताया है और आर्टिकल 370 को हटाया जाने के फैसले को नकार दिया है.
इन चुनाव नतीजों के चार मुख्य पहलू हैं:
1. गुपकार पार्टियों के लिए महत्वपूर्ण जीत
आर्टिकल 370 हटाए जाने और कई बड़े नेताओं की हिरासत के बाद माना जा रहा है कि कश्मीर घाटी में 'मुख्यधारा की राजनीति' का अंत हो गया है.
लेकिन साफ है कि ऐसा नहीं हुआ है. कश्मीर डिवीजन में गुपकार पार्टियों ने ज्यादा सीटें जीती हैं और जम्मू के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं.
अपनी पारंपरिक दुश्मनी के बावजूद PDP और NC ने जमीनी स्तर पर अच्छे से कोऑर्डिनेट किया और उनका गठबंधन बीजेपी के असर को खत्म करने में कामयाब दिख रहा है.
गुपकार गठबंधन में NC ने PDP से अच्छा प्रदर्शन किया है, जो कि दिखाता है कि उसने अपनी काडर क्षमता बरकरार रखी है.
नतीजों से गुपकार पार्टियों को मजबूती मिलेगी और केंद्र से बात करते समय ज्यादा समर्थन होगा.
2. बीजेपी का औसत प्रदर्शन
चुनावी तौर पर बीजेपी का प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा. 2014 विधानसभा और 2019 लोकसभा चुनावों में पार्टी ने जम्मू में शानदार प्रदर्शन किया था लेकिन इस बार पार्टी 50 फीसदी सीट भी नहीं जीत पाई. हालांकि, कश्मीर घाटी में पैठ बनाना बीजेपी के लिए बड़ी कामयाबी है. बीजेपी ये भी कह रही है कि उससे निपटने के लिए कश्मीर की पार्टियों को साथ आना पड़ा.
PAGD ने मुस्लिम इलाकों में अच्छा प्रदर्शन किया और कई निर्दलीय उम्मीदवार भी जीते.
जम्मू में बीजेपी की पारंपरिक विरोधी कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया, और बीजेपी और निर्दलीयों से भी पीछे रही.
हिंदू बहुल इलाकों में कांग्रेस को बीजेपी ने और मुस्लिम इलाकों में PAGD ने मात दी.
3. केंद्र के लिए राजनीतिक जीत
बीजेपी के औसत प्रदर्शन को केंद्र की राजनीतिक जीत ने ढक दिया है. राज्य का दर्जा वापस लिए जाने और आर्टिकल 370 हटने के बावजूद गुपकार पार्टियों के चुनाव पूरे दमखम से लड़ने को केंद्र अपने-आप में एक उपलब्धि मान रहा है. घाटी में 30 फीसदी से ज्यादा वोटर टर्नआउट को 'नॉर्मल्सी' के तौर पर देखा जा रहा है.
बीजेपी इस बात से भी संतोष कर सकती है कि कई निर्दलीयों और अल्ताफ बुखारी की अपनी पार्टी की जीत ने नेशनल कांफ्रेंस और PDP के एकछत्र राज को चुनौती दी है. कश्मीरी पार्टियों के बीच प्रतिस्पर्धा को दिल्ली हमेशा पॉजिटिव साइन के रूप में देखती है.
4. चुनाव की वैधता
केंद्र ये दावा करेगा कि ये निष्पक्ष चुनाव था, लेकिन कश्मीर में कई लोग इस पर बहस कर सकते हैं. अलगाववादियों का कहना है कि कश्मीर में DDC चुनाव विधानसभा और लोकसभा चुनावों जितना ही अवैध है. लेकिन अगर अलगाववादियों की बात छोड़ भी दें तो चुनाव में हिस्सा लेने वालीं कश्मीरी पार्टियों ने भी केंद्र की आलोचना की है. नतीजों से एक दिन पहले ही वरिष्ठ PDP नेता नईम अख्तर और मंसूर हुसैन को पुलिस ने हिरासत में लिया था.
पार्टी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने इसे चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश बताया था.
पूरी प्रक्रिया में एक बात साफ है कि राजनीतिक किरदारों की ताकत चाहें जितनी भी हो, कश्मीर में राजनीतिक मौकों और स्थानों का खुलना केंद्र की इच्छा पर निर्भर करेगा.
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