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जम्मू - कश्मीर: 90 साल में पहली बार हुई महिला जज की नियुक्ति

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट की स्थापना न्यायिक हाईकोर्ट के रूप में 1928 में महाराजा हरि सिंह ने की थी.

अहमद अली फय्याज
भारत
Published:
जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट की स्थापना न्यायिक हाईकोर्ट के रूप में 1928 में महाराजा हरि सिंह ने की थी.
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जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट की स्थापना न्यायिक हाईकोर्ट के रूप में 1928 में महाराजा हरि सिंह ने की थी.
(फोटो: Altered by Shruti Mathur/The Quint)

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अपने 90 साल के लंबे इतिहास में पहली बार जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट को उसकी पहली महिला जज मिलने जा रही है. इसी महीने होने वाली इस घटना के साथ ही एक और नई बात ये होगी कि इसी हाईकोर्ट में पहली बार कोई महिला, चीफ जस्टिस का पद भार संभालेंगी.

शुक्रवार को केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना के मुताबिक राष्ट्रपति ने श्रीनगर के प्रिंसिपल और डिस्ट्रिक्ट जज राशिद अली डार और असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल सिन्धू शर्मा को जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट का जज नियुक्त किया है. सिन्धू शर्मा जम्मू से आती हैं जबकि डार बडगाम जिले से आते हैं.

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के लिए तय 17 जजों के मुकाबले इस वक्त यहां सिर्फ आठ जज नियुक्त हैं. 46 साल की सिन्धू शर्मा जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के ही रिटायर्ड जज ओ पी शर्मा की बेटी हैं. अब उसी हाईकोर्ट में जज बनने का गौरव सिन्धू शर्मा भी हासिल करेंगी.

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट की स्थापना न्यायिक हाईकोर्ट के रूप में 1928 में महाराजा हरि सिंह ने की थी. इन 90 साल के इतिहास में इस हाईकोर्ट में कुल 107 जज और चीफ जस्टिस हुए लेकिन इनमें से कोई भी महिला नहीं रहीं.

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट का इतिहास

न्यायिक हाई कोर्ट के रूप में इसकी स्थापना से पहले तक महाराजा का निर्णय ही न्याय के मामलों में अंतिम होता था. 1889 में ब्रिटिश सरकार ने महाराजा प्रताप सिंह को ज्यूडिशियल काउंसिल के गठन का आदेश दिया. इस काउंसिल को सिविल और क्रिमिनल मामलों को देखना था.

इसके बाद काउंसिल को भंग कर दिया गया और एक मंत्री को हाई कोर्ट के जज के रूप में बिठा दिया गया. इसका काम न्यायिक मामलों को देखना था. मार्च 1928 में न्यायिक हाई कोर्ट वजूद में आया, जिसमें दो जज और एक चीफ जस्टिस की नियुक्ति कर दी गई. इसकी स्थापना डोगरा राजा ने की.

1954 में कंस्टीट्यूशन एपलिकेशन ऑर्डर के अनुसार देश के सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को जम्मू कश्मीर तक बढ़ा दिया गया. इसके बाद संविधान के अनुच्छेद 32 (2-ए) के तहत जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय को पहली बार जम्मू कश्मीर में मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए रिट जारी करने का अधिकार मिला.

1957 में बख्शी गुलाम मोहम्मद की सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर कंस्टीट्यूशन एक्ट के तहत न्यायिक उच्च न्यायालय के साथ एक स्वतंत्र न्यायिक निकाय बनाया गया.

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एक सीमा से आगे पदोन्नति न मिलने की परंपरा को तोड़ना

हालांकि जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट में कई महिला वकीलों ने काम किया और काफी शोहरत भी हासिल की, लेकिन इनमें से किसी की भी राज्य हाईकोर्ट के जज के रूप में नियुक्ति नहीं हो सकी. इस हाई कोर्ट की जानी- मानी महिला वकीलों में शाइस्ता हकीम, सुरिंदर कौर, पूर्व गृहसचिव अनिल गोस्वामी की पत्नी नीरू गोस्वामी, पूर्व डीजी एम एम खजूरिया की बेटी सीमा शेखर और पब्लिक सर्विस कमीशन के पूर्व चेयरमैन शमसुद्दीन गनी की बेटी जैनाब शम्स वाटली शामिल हैं.

हाल के दिनों में गौस-उन-निसा जीलानी और पूर्व चीफ सेक्रेटरी इकबाल खांडे की पत्नी कनीज फातिमा प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज और रजिस्टार जनरल के ओहदे तक जरूर पहुंचीं.

पंजाब विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट सिन्धू शर्मा जम्मू कश्मीर की एएसजी नियुक्त होने वाली पहली महिला वकील थीं. 2017 में उन्हें इसी पद पर 3 साल का सेवा विस्तार भी मिला. हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज की बेटी सिन्धू शर्मा केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली की रिश्तेदार भी हैं. 2013 में वे जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन की वाइस प्रेसिडेंट भी चुनी गई थीं.

चीफ जस्टिस बनीं जस्टिस गीता मित्तल

इस बीच दिल्ली हाईकोर्ट की कार्यकारी चीफ जस्टिस गीता मित्तल जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट की पहली महिला चीफ जस्टिस की कुर्सी संभालने के लिए तैयार हैं. मार्च में बदर दुरेज अहमद के रिटायर होने के बाद से जम्मू कश्मीर में चीफ जस्टिस की कुर्सी खाली पड़ी है.

गीता मित्तल जुलाई 2004 में दिल्ली हाईकोर्ट की बेंच में एडिश्नल जज के रूप में नियुक्त हुई थीं. 2006 में उनकी नियुक्ति स्थायी जज के रूप में हुई. न्यायिक व्यवस्था और न्याय तक पहुंच से जुड़े मामलों पर गीता मित्तल ने काफी कुछ लिखा है.

इनमें मानवाधिकारों की सुरक्षा, महिलाओं पर कैद का असर, कॉरपोरेट सेक्टर की सामाजिक जिम्मेदारी, सजा-ए-मौत, धर्म का असर, संस्कृति, न्याय करते हुए उस पर परंपराओं का असर, कॉरपोरेट से जुड़े कानून, बौद्धिक संपदा से जुड़े मामले और पर्यावरण से जुड़े कानून और मुद्दे शामिल हैं.

2012 में निर्भया केस के बाद आपराधिक कानून में संशोधन के लिए जस्टिस जेएस वर्मा कमेटी की रिपोर्ट तैयार करने में न्यायमूर्ति मित्तल द्वारा वीरेंद्र बनाम राज्य मामले में लिखी गई बातों से काफी मदद मिली. 2018 में राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने उन्हें महिलाओं के लिए सर्वोच्च नागरिक सम्मान, नारी शक्ति पुरस्कार से नवाजा.

न्यायमूर्ति मित्तल इस समय दिल्ली हाईकोर्ट में मध्यस्थता और समझौता केंद्र की कोर्ट कमेटी की अगुवाई कर रही हैं. इसके अलावा वो यौन अपराध और बच्चों से जुड़े मामलों में न्यायिक दिशा-निर्देशों के कार्यान्वयन की कमेटी को भी देख रही हैं. भारत में ऐसा पहला कोर्ट रूम 16 सितंबर 2012 में और दूसरा 11 सितंबर 2013 में बना.

संस्थागत मजबूती के काम से पूरी तरह से जुड़ी जस्टिस मित्तल कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न, न्यायिक अधिकारियों के काम करने के माहौल और उनकी वेलफेयर के लिए बनी कमेटी में सदस्य भी रहीं.

(लेखक श्रीनगर के पत्रकार हैं. आप @ahmedalifayyaz के जरिए उन तक पहुंच सकते हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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