advertisement
भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के एक सीनियर अधिकारी ने जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन पर उनकी दलित जाति की वजह से उत्पीड़न और धमकी देने का आरोप लगाया है. अधिकारी, प्रमुख सचिव हैं, जिनका पिछले एक साल में पांच बार तबादला किया गया है. उन्होंने खुद के खिलाफ साजिश का आरोप लगाया है. विपक्ष ने आरोपों की निष्पक्ष जांच की मांग की है.
गुजरात के रहने वाले 1992 के IAS अधिकारी अशोक परमार ने जल शक्ति विभाग में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं का भंडाफोड़ करने के बाद जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा उत्पीड़न और धमकी का आरोप लगाते हुए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग से शिकायत की है.
उन्होंने पत्र के जरिए आरोप लगाया है कि उन्हें दो हाई-लेवल बैठकों से बाहर निकाल दिया गया और अन्य अधिकारियों के सामने अपमानित किया गया.
अशोक परमार को मार्च 2022 में AGMUT कैडर में वापस भेज दिया गया. इसके बाद, उन्हें प्रमुख सचिव सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण के रूप में तैनात किया गया.
5 मई 2022 को उनका तबादला कर उन्हें प्रमुख सचिव जल शक्ति विभाग के पद पर तैनात किया गया. परमार के मुताबिक विभाग में घोटालों का भंडाफोड़ करने के बाद उन्हें कुछ महीनों के अंदर ARI और प्रशिक्षण विभाग में ट्रांसफर कर दिया गया था.
18 जुलाई को उनका तबादला कौशल विकास में कर दिया गया. दो हफ्तों से भी कम वक्त में, 1 अगस्त को उन्हें फिर से ट्रांसफर कर दिया गया और सार्वजनिक उद्यम ब्यूरो जम्मू-कश्मीर के अध्यक्ष के रूप में तैनात किया गया.
JKPDP चीफ महबूबा मुफ्ती ने अपने एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि जम्मू-कश्मीर में हाई लेवल पर भ्रष्टाचार के आरोपों को आखिरकार अपनी जगह मिल गई है. जब एक IAS अधिकारी हाई लेवल पर सिस्टम में सड़न की पुष्टि करता है, तो यह लगता है कि इसे उजागर करके उन्होंने कितने गंभीर जोखिम उठाए हैं. गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार दोषियों को दंडित करने के बजाय जल जीवन योजना में एक ईमानदार अधिकारी को 3 हजार करोड़ रूपए का भुगतना पड़ता है.
नेशनल कॉन्फ्रेंस और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस मामले में निष्पक्ष जांच की मांग की है. उन्होंने कहा कि आरोप इतने गंभीर हैं कि निष्पक्ष जांच की जरूरत है लेकिन हम जानते हैं कि ऐसा कभी नहीं होगा. दुख की बात है कि न्यूज मीडिया ने इस कहानी को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है. उन्हें मिस वर्ल्ड और अन्य झूठी कहानियों के पीछे बहुत बिजी रखा जा रहा है. विज्ञापन के रुपयों का लालच और पुलिस स्टेशनों में सम्मन के डर ने जम्मू-कश्मीर में एक समय जिंदा और आजाद प्रेस को प्रभावी ढंग से खामोश कर दिया है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)