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ICSE सिलेबस से ‘जामुन का पेड़’ हटा, सिस्टम पर व्यंग्य थी कहानी

सूत्रों का कहना है कि कुछ अधिकारी इस कहानी को मौजूदा सरकार की आलोचना के तौर पर देख रहे थे

क्विंट हिंदी
भारत
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लेखक कृष्ण चंद्र की कहानी है ‘जामुन का पेड़’
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लेखक कृष्ण चंद्र की कहानी है ‘जामुन का पेड़’
(फोटोः Altered By Quint Hindi)

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मशहूर लेखक कृष्ण चंदर की व्यंग्यात्मक लघु कथा 'जामुन का पेड़ को ICSE हिंदी के सिलेबस से हटा दिया गया है. सरकार ने यह कदम बोर्ड परीक्षाओं से महज तीन महीने पहले उठाया है.

बता दें, 'जामुन का पेड़' एक ऐसे शख्स की कहानी है जो सरकारी परिसर के लॉन में लगे एक जामुन के पेड़ के नीचे दब जाता है. सुबह जब माली को जानकारी होती है तो तमाम सरकारी कर्मचारी और अधिकारी जामुन के पेड़ के नीचे दबे व्यक्ति को निकालने के बजाय एक-दूसरे पर जिम्मेदारियां डालते रहते हैं.

क्यों हटाई गई कहानी?

अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ ने अपनी रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से लिखा है कि एक राज्य विशेष के अधिकारियों ने कृष्ण चंदर की कहानी 'जामुन का पेड़' पर आपत्ति जताई थी. यह कहानी साल 2015 से सिलेबस का हिस्सा थी.

कृष्ण चंदर (1914-1977) ने ये कहानी 1960 के दशक में लिखी थी लेकिन सूत्रों का कहना है कि कुछ अधिकारी इसे मौजूदा सरकार की आलोचना के तौर पर देख रहे थे.

ICSE काउंसिल की ओर से जारी नोटिस के मुताबिक, 2020 और 2021 की बोर्ड परीक्षाओं में इस कहानी से जुड़े सवाल नहीं पूछे जाएंगे.

काउंसिल के सेक्रेटरी और चीफ एग्जीक्यूटिव गेरी अराथून ने द टेलीग्राफ को बताया कि कहानी को सिलेबस से इसलिए हटाया गया, क्योंकि “यह दसवीं के बच्चों के लिए सही नहीं थी.” 

हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि ऐसा क्यों है या कहानी को लेकर किस बात पर आपत्ति है.

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‘जामुन का पेड़’ कहानी में क्या है?

'जामुन का पेड़' एक व्यंग्यात्मक लघु कथा है. कहानी के मुताबिक, आंधी-तूफान में सचिवालय में लगा एक जामुन का पेड़ गिर जाता ह और एक मशहूर कवि इस पेड़ के नीचे दब जाता है.

सुबह जब लॉन के माली को जानकारी होती है कि पेड़ के नीचे एक आदमी दबा पड़ा है, तो वह दौड़कर चपरासी को जानकारी देता है. चपरासी क्लर्क के पास जाता है और क्लर्क सुपरिन्टेंडेंट के पास. थोड़ी ही देर में गिरे हुए पेड़ के नीचे दबे आदमी के आसपास मजमा जमा हो जाता है.

लेकिन पेड़ के नीचे दबे शख्स को बचाने की कोशिश कोई नहीं करता. इधर-उधर टलते हुए ये मामला चार दिन बाद चीफ सेक्रेटरी तक पहुंचता है. इसके बाद भी दोबारा से एक विभाग से दूसरे विभाग पर जिम्मेदारियां थोपने का दौर चलता रहता है. मामला कृषि, वन विभाग से लेकर संस्कृति विभाग तक पहुंचता है. संस्कृति विभाग के पास ये मामला इसलिए पहुंचता है, क्योंकि पेड़ के नीचे दबा हुआ व्यक्ति एक जाना माना कवि है.

कहानी के मुताबिक, संस्कृति विभाग का अधिकारी मौके पर पहुंचता है और उस किताब की तारीफ करता ह, जिसकी वजह से कवि को अवॉर्ड मिल चुका है. हालांकि, वह कवि से यह भी कहता है कि उसे बचाना उसका काम नहीं है.

इसके बाद फाइल हेल्थ डिपार्टमेंट के पास पहुंचती है, जो इसे विदेश मंत्रालय भेज देता है, क्योंकि जामुन का पेड़ पड़ोसी मुल्क के प्रधानमंत्री ने लगाया था.

विदेश मंत्रालय पेड़ को काटने से इसलिए इनकार कर देता है, क्योंकि उसे लगता है कि इससे पड़ोसी मुल्क के साथ संबधों पर असर पड़ेगा. देर-सबेर ये मामला प्रधानमंत्री के पास पहुंचता है. अधिकारियों से मशविरा करने के बाद प्रधानमंत्री शख्स की जान बचाने के लिए पेड़ को काटने पर सहमत हो जाते हैं. लेकिन जब तक बिल्डिंग सुपरिन्टेंडेंट के पास आदेश पहुंचता है, दबे शख्स की मौत हो जाती है.

पूरी कहानी आप इस लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं.

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