Home News India सामाजिक असमानता छेड़छाड़, बलात्कार की असली वजह: जावेद अख्तर
सामाजिक असमानता छेड़छाड़, बलात्कार की असली वजह: जावेद अख्तर
जावेद अख्तर ने बेंगलुरू छेड़छाड़ जैसी घटना के पीछे की असली वजह बताई
आईएएनएस
भारत
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जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में गीतकार और शायर जावेद अख्तर. (फोटो: IANS)
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मशहूर शायर और फिल्म गीतकार जावेद अख्तर का कहना है कि महिलाओं के खिलाफ दुष्कर्म जैसे अपराधों के लिए पश्चिमीकरण को दोषी ठहराना गलत है. जयपुर साहित्य महोत्सव में 'आफ्टर एंग्री यंग मैन, द ट्रैडिशनल वूमेन, व्हाट?' विषय पर उन्होंने बेंगलुरू छेड़छाड़ घटना के संदर्भ में कहा,
“पश्चिमीकरण का इन घटनाओं से कोई वास्ता नहीं है. इनकी मूल वजहें दो हैं, एक तो सामाजिक अलगाव और दूसरी आर्थिक विषमता.हमारे देश का समाज ऐसा है जहां के छोटे शहरों-कस्बों में एक युवक 25 साल की उम्र तक पहुंचने तक किसी लड़की से कुल जमा पांच मिनट भी बात शायद ही करता है. हम अपनी सभ्यता को ऐसे ही परिभाषित करते हैं. कोई ऐसा व्यक्ति जिसने कभी किसी लड़की से बात तक न की हो, वह कैसे इस बात को समझेगा कि वह (लड़की) शरीर से अधिक कुछ और है? उसके लिए तो वह बस शरीर और वासना है.”
‘आर्थिक विषमता का जहर’
जावेद अख्तर ने कहा कि समाज का यही अलगाव युवकों में एक 'अवांछित तापमान' की वजह बनता है और इसी वजह से ऐसी घटनाएं होती हैं. दिल्ली में लड़की (निर्भया कांड) के साथ जो कुछ हुआ था, वह वासना या सेक्स की चाहत नहीं दिखाता. वह गुस्सा, हताशा और यह दिखाता है कि उनमें समाज के प्रति कितना जहर भरा है. उन्होंने उसके साथ सिर्फ दुष्कर्म नहीं किया था, वह पाशविकता थी.
“लोग छोटे शहरों से आते हैं. बुरे हालात में रहते हैं और देखते हैं कि अमीर लोग कैसी शाहाना जिंदगी जी रहे हैं. इसके साथ ही उनका अतीत का, सामाजिक अलगाव वाला अनुभव भी उनके साथ होता है. उन्होंने कभी किसी लड़की से कायदे से कोई पूरी बात तक नहीं की हुई होती है.”
‘भविष्य लड़कियों का’
अख्तर हमेशा से नारी सशक्तिकरण के समर्थक रहे हैं, उनकी फिल्मों में भी इसका अक्स दिखता है. लिटरेचर फेस्टिवल में उन्होंने कहा कि फिल्मों में 'आदर्श भारतीय नारी' की छवि बदल रही है. एक समय था जब फिल्म में मुजरा सुनकर आए पति का पत्नी जूता उतारकर उसकी सेवा करती दिखती थी. लेकिन, आज फिल्मों में महिलाएं अधिक प्रगतिशील हैं. उन्होंने 'पीकू', 'पिंक', 'दिल धड़कने दो' जैसी फिल्मों की तारीफ की जो दिखाती हैं कि कैसे देश में स्थापित सामाजिक मूल्य अब बदल रहे हैं.
इस बात में कोई शक नहीं है कि ‘भविष्य महिलाओं का है, पुरुषों का नहीं. हर बात के लिए पश्चिमीकरण को दोषी ठहराने से समस्या नहीं सुलझेगी. अगर आप अपने देश की बीमारियों की गलत पहचान करेंगे तो कभी इससे छुटकारा नहीं पा सकेंगे. आपको सही वजहों को स्वीकार करना होगा जो ऐसी घटनाओं की जड़ में होती हैं.
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