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देश के करोड़ों बच्चे ऐसे हालात से आते हैं जहां ऊंची तालीम का सपना देखना भी जुर्म है. ऐसे में वो छात्र उस स्कूल की कीमत बखूबी समझते हैं, जो उनके सपनों में उड़ान भरने लायक ईंधन भरता है. आज से कई बरस पहले, आज के डॉक्टर विवेक कुमार (बदला हुआ नाम) और तब के सिर्फ विवेक ने भी अपने उस स्कूल को भगवान का दर्जा दिया था. स्कूल का नाम था-जवाहर नवोदय विद्यालय.
12वीं तक की पढ़ाई, खाना-पीना, जूते-मोजे, तेल-साबुन...सब का सब मुफ्त मिला. बाकी फिक्रों ने सताना कम किया, तो फोकस पढ़ाई पर हुआ और आज वो शान से डॉक्टर वाला सफेद कोट पहनकर यूपी के बस्ती में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के गलियारों में चहलकदमी करते हैं.
विवेक ने खुद तो अपना सपना पूरा कर लिया, लेकिन वो सरकार के ताजा फैसले का पुरजोर विरोध करते हैं, जो लाखों सपनों को पलीता दिखा सकता है. फैसला नवोदय विद्यालयों की फीस 200 से बढ़ाकर 1500 तक करने का.
सिर्फ विवेक ही नहीं, देशभर के लाखों बच्चों की जिंदगी इन जवाहर नवोदय विद्यालयों ने बदलकर रख दी है. जहां सरकारी स्कूलों की पढ़ाई पर सैकड़ों सवाल उठते हैं, ऐसे में सरकारी स्कूल JNV मिसाल है. AIIMS, IIT, NIT, NIFT जैसे इंस्टीट्यूट से लेकर देश के तकरीबन सभी बड़े संस्थानों में आपको नवोदय में पढ़े छात्र मिल ही जाएंगे.
लेकिन अब इन विद्यालयों में पढ़ना महंगा साबित होने जा रहा है, साथ ही छात्रों के बीच जो समरसता और एकता की भावना थी, उस पर भी ठेस पहुंच सकती है.
ये फीस स्ट्रक्चर अप्रैल से लागू होने जा रहा है. तर्क ये है कि पैसा विद्यालय विकास निधि में जाएगा. पिछड़े, जरूरतमंद और होनहार ग्रामीण परिवेश के छात्रों को शहरी स्तर की मुफ्त बुनियादी शिक्षा देने का जो सपना नवोदय पूरा कर रहा है, क्या अब उसे जारी रखा जा पाएगा? कई सवाल जेएनवी के पूर्व छात्र और इन विद्यालयों के महत्व को जानने वाले उठा रहे हैं. जैसे:
ऑल इंडिया जवाहर नवोदय विद्यालय एलुमनी एसोशिएशन (AIJAA) के प्रेसिडेंट अनुजपाल गोस्वामी कहते हैं:
दिल्ली यूनिवर्सिटी के किरोड़ीमल कॉलेज से पासआउट और सोनीपत नवोदय के पूर्व छात्र कुलदीप कहते हैं कि महज कुछ बच्चों से फीस लेकर आप नवोदय के बच्चों में अलगाव के बीज बो देंगे. वहां फीस वाला बच्चा , बिना फीस वाला बच्चा तरीके की बातचीत शुरू होगी. जो अबतक नहीं है, बच्चों को 24 घंटे, 7 साल तक स्कूल में ही रहना होता है. ऐसे में ये कदम नकारात्मक होगा.
साल 1986 में राजीव गांधी के विजन के जरिए स्थापित हुए इन स्कूलों में क्लास 6 और कभी कभार 9 में एडमिशन लिए जाते हैं. तकरीबन हर जिले में मौजूद इन विद्यालयों के लिए जिले स्तर की परीक्षा होती, हजारों में से 80 छात्र चुने जाते हैं. इन्हें सीबीएसई बोर्ड से शिक्षा दी जाती है. साथ ही जो छात्र जिस चीज में आगे है उसे उसी क्षेत्र में प्रमोट करने की कोशिश की जाती है.
फिलहाल करीब 2.5 लाख छात्र करीब 591 नवोदय विद्यालयों में पढ़ रहे है. ऐसे में सरकार को चाहिए कि इस कामयाब सरकारी स्कूल मॉडल को प्रोत्साहित करे, जिससे उन बच्चों के भी सपनों को पंख मिल सके, जो बच्चे सपना देखने से ही कतराते हैं.
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