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लोकसभा चुनाव नतीजों के झटके से झारखंड का महागठबंधन अभी उबर भी नहीं पाया है और इसमें नई गांठें नजर आ रही हैं. महागठबंधन के सबसे शक्तिशाली धड़े झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने एक ऐसा ऐलान कर दिया है कि इसमें भारी झगड़े के संकेत मिल रहे हैं. ये सवाल भी उठ रहे हैं कि JMM का नया रुख कहीं राज्य में बदलते सियासी समीकरण की तरफ इशारा तो नहीं?
लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद से ही JMM काडर का ये मानना है कि उन्हें महागठबंधन के साथ जाने से नुकसान हुआ. दिसंबर में राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं और फिर से महागठबंधन को लेकर ऊहापोह की स्थिति है.
JMM के ऐलान के बाद कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम ने कहा कि उनकी पार्टी कम से कम 25 सीटों पर लड़ेगी. महागठबंधन की एक और पार्टी जेवीएम के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ने तो इससे भी आगे बढ़कर कह दिया कि वो राज्य की सभी 81 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं.
झारखंड में महागठबंधन के दल
पिछले विधानसभा चुनावों में JMM को 19 सीटें मिली थीं. वो जितनी सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी, अगर उसे भी जोड़ लिया जाए तो ये संख्या 36 आती है. लेकिन पार्टी इससे भी 5 ज्यादा सीटें मांग रही हैं.
महागठबंधन के दो सबसे बड़े दलों को अपने मन मुताबिक सीटें मिल जाएं तो बाकी सहयोगियों को महज 15 सीटों में बंटवारा करना पड़ेगा. लेकिन इसके लिए खासकर JVM तैयार नहीं होगी. क्योंकि पिछले चुनाव में उसे 8 सीटों पर जीत मिली थी.
कम से कम पांच सीटें ऐसी हैं जहां बड़ा पेंच फंस सकता है, क्योंकि इन सीटों पर पहले और दूसरे नंबर पर महागठबंधन के ही सहयोगी दल रहे हैं. ये सीटे हैं - पाकुड़, जरमुंडी, डाल्टनगंज, शिकारीपाड़ा और धनवार. और भी कई सीटें है जिन पर साथियों में झगड़ा हो सकता है.
वैसे माना जा रहा है कि JMM 41 सीटों पर दावा कर रही है तो इसके पीछे दबाव की राजनीति है. इतनी सीटें मांगने के पीछे रणनीति ये है कि कम से कम 30-35 सीटें मिल ही जाएं. ये भी याद रखना चाहिए कि 41 वो आंकड़ा है जिससे राज्य में सरकार बनती है.
सियासी गलियारों में ये भी चर्चा है कि JMM चुनाव बाद अपने लिए विकल्प खुले रखना चाहती है और इसलिए सीटों को लेकर अड़ गई है. लोकसभा चुनाव में बुरी गत और दुमका जैसी पारंपरिक सीट गंवाने वाली पार्टी में महागठबंधन के नफे-नुकसान को लेकर अब भी एकराय नहीं है.
असमंजस की स्थिति इसलिए है क्योंकि राज्य में विधानसभा और लोकसभा चुनावों के नतीजे अलग संकेत देते हैं. पिछले विधानसभा चुनावों में महागठबंधन को बीजेपी से कम सीटें मिलीं. सरकार भी एनडीए की बनी लेकिन वोट शेयर के मामले में महागठबंधन के दल बीजेपी और एनडीए दोनों से आगे थे. तो विधानसभा चुाव का मैसेज ये है कि महागठबंधन के दल साथ मिलकर लड़ें तो बीजेपी को चुनौती दे सकते हैं.
2019 लोकसभा चुनाव में 14 में से 12 सीटें जीतकर अकेली बीजेपी, महागठबंधन के सभी दलों पर भारी पड़ी. गठबंधन के सारे दलों का वोट शेयर 35% रहा जबकि अकेले बीजेपी 50% पार कर गई. ऐसे में घटक दलों के बीच महागठबंधन के औचित्य को लेकर असमंजस भी है.
अगर आने वाले विधानसभा चुनावों में भी महागठबंधन के दलों का प्रदर्शन लोकसभा चुनाव जैसा ही रहा तो राज्य में उनके अस्तित्व को खतरा पैदा हो सकता है. एक तरफ महागठबंधन के दलों में सीटों पर स्यापा है, तो दूसरी तरफ बीजेपी मिशन 65 पार के लिए जुट गई है. PM मोदी ने हाल ही में अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में हजारीबाग जिले के एक सरपंच की चर्चा की तो पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष ने हाल ही में झारखंड पहुंचकर 25 लाख नए सदस्य बनाने के अभियान पर ताकत दी. समझने की बात ये है कि जब महागठबंधन की पार्टियां मिलकर भी बीजेपी का मुकाबला नहीं पा रही हैं तो अकेले क्या करेंगी? यही एक सवाल है जो आने वाले विधानसभा चुनाव की बिसात तय करेगा.
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